पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८१

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७४ . जयशाल-जयसिंह और ५ फुट मोटो प्रस्तर-प्राचीर है। पूर्व और पथिममें | मेनापति करीमखां लदो लूट कर विखार प्रदेशको दोहार बने हैं। ध्वंसावशेष देखने से विदित होता है | तरफ चल दिये। कि किसी समय वह नगर बहुत समृद्ध रहा । दक्षिणमें वोरवर जयगाल महाममारोहसे यादवराजसिंहामन एक पहाड़ पर किला है। इस पहाड़में बहुतसे घर और पर अभिषिक्त हुए । उन्होंने राजा होने के बाद देखा कि , बचाव बने हैं। नगरकी और एक दरवाजा लगाया गया। लदोर्वा नगर सुरक्षित नहीं है, सहजहीमें शत्र उस पर है। दुर्ग के भीतर महारावलका महल खड़ा है । किले.! आक्रमण कर सकते हैं। इसलिए १२१२ सम्बन्में लदोवा . के जैन मन्दिर बहुत अच्छे और १४०० वर्षके पुराने हैं। मे५ कोम दूरी पर उन्होंने अपने नामका दुर्ग भोर . : ___ मगरमें हिन्दी भाषाको पाठयाला भो है। नगर स्थापित किया घोर सुद भो वहीं रहने लगे। उनके जय गाल-जयशालमेर नगर और दुर्ग के प्रतिठाता, यदु, समयमें भटिजातिके प्रधान शत्र, चनराजपूर्तीने खादाल पति दुमाजके जेष्ठपुत्र । जाप्ठपुत्र होने पर भी इन्हें । प्रदेश आक्रमण किया था। परन्तु महावीर जयशालने पिताको मृत्यु के बाद राजसिंहासन नहीं मिला था। इसका यथेट प्रतिफल दिया था। उता घटनाके पांच दुसाजको मृत्युके उपरान्त सामन्तो ने मेवाड़-राज- वर्ष बाद १२२४ सम्वत्में इनका देहान्त हुमा था। नन्दिनीक गर्भ से उत्पन्न, दुसाजके ३य पुत्र लञ्जविजय दो पुत्र घे-एक कल्याण और दूमरे शालिवाहन.। . को सिंहासन पर विठाया था। महावीर जयमाल अपने जयशाल प्रवल पराक्रमो पाहुजाप्तिमसे मन्त्री सुनते स्वत्वसे वञ्चित होने के कारण जन्मभूमि छोड़ कर चले थे। ज्येष्ठपुत्र कल्याणा उन मन्त्रियों के विरगभाजन गये । वे पिटसिहासन अधिकार करने के लिए तरकोवें होने के कारण उन्हें भो राजा न मिला, पाखिर ये भी सोचने लगे। थोड़े दिन पीछे राजा लक्षविजयको मृता मल्लियों द्वारा निर्वासित किये गये थे। जयथालको होने पर उनके पुत्र भोजदेव राजगहो पर बैठे। इन। मृताके उपरान्त उनके कनिष्ठपुत्र शालिवाहन राजा भोजदेवकी ५०० सोलही राजपूतों द्वारा सर्वदा रक्षा हुए थे। की जाती थी, इसलिए अयशाल इनका कुछ भी न कर जयश्री (स. स्त्रो. ) १ विजयलक्ष्मी, विजय । २ तालके सके। इस समय गजनीपति साहबउद-दीन ठप्रदेश मुख्य साठ भेदो मॅसे एक ' ३ देशकार रागमे मिलती अधिकार कर पाटनको तरफ जानेका उद्योग कर रहे | जलतो सम्पूर्ण जातिको एक रागिणी । यह सन्ध्याके थे । जयगानने दूसरा कोई उपाय न देख पाखिरको दो | समय गायी जाती है । बहुराम इसे देशकारको रागिणी सो असमसाहसी अखारोहियों के साथ पञ्चनदराजाम प्रा मानते हैं। कर साहब-उद-दीनगोरीसे साक्षात की। लयशाल जानते | जयसमन्द-राजपूतानाके उदयपुर राजाका एक झील। पे कि, मनहिलवाडपत्तन मुसलमानों द्वारा पाशान्त | इसका दूसरा नाम टेनर है। होने पर भोजदेवका शरीररक्षक सोनोगण अवश्य हो | जयसिंह-१ मेवाड़के प्रसिद्ध राणा राजसिंहके पुत्र । इनके .. साह छोड़ कर अपनो जन्मभूमिको रक्षार्थ गान करेंगे जन्मनेसे कई एक घण्टे पहले भीम नामका एक सही. पौर घे भो ठमो मौके पर मरवली अधिकार कर दर हुआ था। समय पर दोनों भाईयों में राजगद्दीको बैठेगे। यहा पा कर जयगालने अपने मनका भाव ले कर झगड़ा होगा, यह सोच कर एक दिन राया गजनीपतिमे कहा। साहम-उद-दीनने उन्हें यादरके राजमिचने अपने जो पुत्र भीमको बुलाया और उसके माघ ग्रहण किया और सहायताके लिए कई हजार सेना! हाय तलवार देकर कहा-"यदि तुम्हें निष्कपटक प्रदान की । उस ययन सहायतामे जयशामने | राना करना हो, तो इस तलवारसे तुम अपने भाई जय. सदोया पाक्रमण किया । भीषण समरमें भोजदेव निहत सिंहका मस्तक धड़मे अलग कर दो।" सदाशय भीमने हुए। पातिरको महिमेनाप्रोमो जयमालकी वश्यता छमो समय उत्तर दिया-"मामान्य राजाके लिए मैं अपने , स्वीकार करनो पढ़ो। जयगाल के सहगामी मुसलमान | प्राणाधिक सहोदरया पनुमात्र भो पनिट मधी कर ..