पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८१२

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झालापति मान्ना-झालावाड,
पूतानाम ला कर प्रभूत सम्मानसे भूपित किया था। जिम मे ०६१५ पू०में अवस्थित है। यह राज्य हरवतो और

समय अकबर बादशाहको शक्ति उक प्रातःस्मरणीय राज•| टङ्ग एजेन्मोके निरोक्षणमें भासित होता है। तीन परस्पर • पूत वोरके विरुद्ध नियोजित थी. उस समय एक माना विच्छिन्न प्रदेश ले कर झालावाड़ राज्य संगठित हुआ . वीरपुरुष अपने अनुचरों सहित प्रतापके अनुगामो हुए है। धड़े खण्डके उत्तरमै कोटाज्य, पूर्व में सिन्धिया .थे । प्रतापसिंहने कृतज्ञतास्वरूप उन्हें अपनी कन्या दै कर राज्य पोर टरराज्यका एकांग, दक्षिण में राजगढ़ नामक मम्मानको पराकाष्ठा दिखाई थी तथा उन्हें अपने दक्षिण-| क्षुद्रराज्य, सिन्धिया और होलकर राज्यका प्रदेश, देव 'पार्श्व में स्थान दिया था। किन्तु वर्तमान राजगगा | रान्यका एकाश और जावरा राज्य एवं परिममें सिन्धिया - झालाओंके साथ विवाह-सम्बन्ध करनेमें शरमाते हैं। इन | ओर होलकर राजका अधिकृत विच्छिव भूभाग है। इसो झालाओंके नामानुसार गुजरात के एक विस्तीर्ण प्रदेशका | बुगड में राजधानी झालरापाटन अवस्थित है। दूमर - नाम झालावाड़ हुआ है। इस विभागके नगरीमसे खण्डके उत्तर, पूर्व और दनिपमें ग्वालियर राज्य एवं घाँकानेर, हलबूड़ और ट्रांट्रा प्रधान है। झालाओंक | पयिममें कोटा राज्य है। इस खण्डका प्रधान नगर शाहा- प्राचीन इतिहास विल्कुल नहीं मालूम है। कोटा | वाद है। कपापुर नामक तीसरा खण्ड उत्तर-परिममें के फौजदार और कोटा राज्यके एकांगभूत झालावाड़ी अवस्थित है और यह पायतनमें बहुत छोटा है। इसके

गजगण झालायशीय हैं।

उत्तरमें सिन्धिया राज्य, पूर्व दक्षिण ओर परिममें झालापति माया-झालाकुलोद्भव एक राजपूत वीर । मेवाड़ (उदयपुर) राज्य है। समस्त राज्यका भूपरि- इन्होंने चिरस्मरणीय . हलदोघाटके युधमें भारत-नृपः | माण ८१० वर्गमील है। शहर और ग्रामीको संख्या । कुलगौरव सूर्य वशीय महावीर राणा प्रतापमिहके | प्रायः ४१० है। महायताके लिए प्राणत्याग कर अक्षयकीर्ति पाई है। झालावाड़ राज्यका बड़ा विभाग एक ऊँचो माल- . युद्ध के समय प्रताप जब नितान्त असहाय हो गये. | भूमि है। इसका उत्तर भाग समुद्रपठसे प्रायः १.०० उनके प्रायतम . तथा उनके साथ महाव्रती राज फुट और दक्षिण भाग क्रमायः १५०० फुट ऊँचा है। इस .. यूत-धीरगण जब चारों तरफ पतित होने लगे और खगड़का अधिकांश पर्वताको है। उपत्यका प्रदेशमै सइमा अगण्य मुगलसेनान राणाके मस्तक पर राज-चिड़ नदी बहुत तेजीमे वहती है। समस्त पर्वत क्षणादि- देख कर जब उनको घेर लिया, उस समय वोरयर | से परिपूर्ण है। कहीं कहीं पर्वतके मध्य लम्बी चौड़ी -झालापति मानाने इन विपत्तियोंको उपस्थित देख अपने झोल गोभा दे रही है। प्रवमिट भूमिमें प्रसुर शस्य सिर्फ देड़ सो पनुचरोंके माथ प्रतापका राज चित्र अपने | और फलोको उपज होतो हे तया उसमें कई एक बन्दर मस्तक पर धारण कर-रणसागरमें कूट पड़े। मुग- हैं। शाहाबाद विभाग भो एक केची मानभूमि तथा . लोन कनक तपनके ममान उमवीरको राणा समझा कर अगलप है। राज्यको भूमि प्रधानतः उवरा है तया .घर लिया, झालापति अतुल विक्रमके साथ युद्ध करके | उसमें अफोम और अन्यान्य मूल्यवान् फसल उपजती है। . रणस्थलमें सदाके लिए सो गये। इधर राणा प्रताप राज- यहाको जमीन तीन भागों में विभता ६-१ काली, २ , पूर्ती हारा स्थानान्तरित कर दिये गये। इस स्वार्थत्याग माल, ३ यान्ति । इनमेंसे कालो मटो हो सबसे उबरा है। पौर प्रभुपरायणताके कारण राजपूत इतिहासमें झाला. दूसरे प्रकारको जमोन कुछ कुछ पाण्डव'को है पौर पतिका नाम स्वर्णाक्षरों में चमक रहा है। मालाके वंश- उसमें फसल भी पहनीसो उपजती है। तोसरे प्रकारकी - घर सभी मेवाड़ के रामाका राजचित वहन कर राणा जमोन सबमे प्रभुबर है। के दलिपपारख में भासन पाते पाये हैं। . . • पारयान नदो इस राज्यके दक्षिण-पूर्वी धर्म प्रवेश , झालावाड़-१राजपूतानेके.अन्तर्गत एक देशोय राज्य ।। कर प्राय: ५. मोल लाने के बाद कोटा राज्यमें प्रविष्ट होता ....यह पक्षा९,२३४५ से २४४१ उ० पोर देगा. ०५ २८ है। रास्ते में नेवाज नामको एक दूसरी घड़ो नदी इसमें Vol. VIII. 126