पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८२२

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मिरक कराची जिलेके अन्यान्य स्थानोंकी नाई है। पूर्व और होते है। समस्त शस्यक्षेत्रके प्रायः शमें धान रोपा उत्तर-पथिम भाग छोड़ कर और सब जगहको जमीन | जाता है। प्रवशिष्ट अंशमें समयानुसार दूसरे टूमरे दलदल है। जङ्गली जन्तुषों में शृगाल, नेकड़ा, दरहा, अनाज उपनाये जाते हैं। मन और पटसन भी यहाँ कम वनमिलाय और चीताबाध आदि देखे जाते हैं। कगा | नहीं उपजता । सिन्धुनदो तथा समस्त झोलोंमें मालो सार मृग कभी कभी पर्वत पर नजर आता है। पक्षियों। पकड़ी जातो है। . . में तरह तरहके हम, जगालो हंस, सारम, यगला, हड़। ___ कोटि नगरसे कृषिजात द्रश्य विदेगको भेजा जाता गिला, तीतर यादि हैं। है। अन्यान्य स्थानों में भो रफतनी मध्य कृषिजात ओर .: उक्त पक्षियोंके डैने बहुत सुन्दर होते हैं। चर्म प्रधान है । वस्त्र, भनेक प्रकारकै धातुद्य, फल, 'यहाँ साप और भाल भी बहुत पाये जाते हैं। सिन्ध- चौनी, ममाले पौर प्रनाको प्रामदनी होती है। पहले प्रदेशके कुत्ते बड़े और ऐसे भयानक होते हैं, कि हे को छोंट और मट्टी के बरतन मगहुर धै। प्रभो उमका अपरिचित व्यक्ति पर टूट पड़ते हैं। प्रज्ञामरोको मधु आदर विलकुल जाता रहा। उपविभाग कई स्थानोंम मक्षिकाका मधु अत्यन्त उत्कट होता है। ये जलजात । प्रायः ४० मेले लगते हैं। गुल्मादि पर छत बनाती हैं। यहां पन्दूरको मण्या | इस उपविभागमें लगभग २६० मील तक लम्बी इतनी अधिक है, कि वे समय समय पर शस्य नेवमें बहुत सड़क गई है। हत् मामरिक पथ कराचो ठहामे हानि पहुंचाते हैं। ये मिट्टो के नीचे अनाज जमा कर कोटरा तक झिरफ उपविभागके उत्तर हो कर गया है। रखते हैं। दुर्मित होने पर कृपक मिट्टो ग्वोद कर अनाज यहां २० धर्मशाला और ३३ नदो पार होने के घाट हैं। बाहर निकाल लेते हैं। यहां के ऊँट परब देशके ऊंटोमे सिन्धुरीतपय इम उपविभागके ६३ मोल नक गया है। , 'धहुत छोटे, किन्तु कर्मठ मोर शीघ्रगामी होते हैं। इसके छह सृजनो नाम ये है-रणपेथानी. बनगाही, "परस्यमें प्रधानत: बबूल के पेड़ है, जो १९८५से १८२८ जोनाबाद, झिमपीर, मटि और बोलारी। । ई के मध्य तानपुरके मोरीके प्रयत्नमे लगाये गये थे। झिरक उपविभागमें प्रवतत्त्वविदोंको कौतूहल मछली पकड़ने के यहां २० स्थान हैं. जो प्रतिवर्ष नोलाम- आकर्षक बहुतमो प्राचीन कोर्ति विद्यमान है। जिनमें मे में बेचे जाते हैं। ७वीं शताब्दीके प्राचीन भाम्बोर नगरका वसावगेप, अधिवासियों का प्राचार-बावहार योर रौतिनोति । १४वीं शताब्दीका बनाया हुआ मारि-मन्दिर, १५वीं कराची जिले के दूसरे दूसरे स्थानों के अधिवासियों सरोखा] शताब्दीका कालानकोट तथा उसी स्थान पर पंवस्थित है। मुसलमानको सख्या हिन्दूसे प्राय: ८ गुना अधिक प्राचीन टुगे प्रधान है। किन्तु उहाले निकटवर्ती माकलो है। मिखको मख्या भी कम नहीं है। पसभ्य जाति, पर्वतस्य प्राचीन कब्रिस्तान सबसे कोतूहल और विस्मय- ईमाई, यहदो और पारमौकी संख्या बहुत कम है। । नना है । यह कब्रिस्तान पर्वत पृष्ठ पर प्रायः 'गासन और राजस्व विभागमें एक डेपुटो कलेकर | वर्ग मोज स्थान तक फैला हुआ है और उसमें १२वीं और प्रथम येणोके मजिष्ट्रेट, दूमरे ये गोके मजिस्ट्रेटके | शताब्दोसे ले कर पाज तक दश लाखसे पधिक समाधि समतापव ३ मतियार, २ कोतवाल पोर २० तप्पा विद्यमान है। इसका अधिकांय तहम नहम हो गया है, दार यो प्रावकारो कर्मचारी हैं। पोर जो कुछ बच भो गई है, वह अधिक दिन तक १८८७०को यहां फौजदारी पदालत और २४ , ठहर नहीं सकतो । माधुनिक कमि १७४३१ में मृत थाने घे। . . . | एडवर्ड कुक नामक किमो अंगरेज रेगमञ्चयमायोका - झिरक, 'ठ और कोटि नगरमें दातव्य घोषधालय | समाधि मन्दिर प्रधान है। . . , . . मोहनिसिपालिटोह....... । २ बम्बई प्रदेशके अन्तर्गत सिन्धुविभागमें कराची धामवीर संयमीक्षा प्रारक अनौजवहावत्पदी मिलेको शत झिरक उपविभागका एक गहरयष्ट