पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४ नयशाल-जयसिंह और ५ फुट मोटो प्रस्तर प्राचीर है। पूर्व और पथिममें ! सेनापति करीमखां लदो लूट कर गिवार प्रदेशको दो हार बने हैं। सावशेष देखने से विदित होता है | तरफ चल दिये। कि किसी समय वह नगर बहुत समृद्ध रहा । दक्षिणमें । बोरवर जयशाल महासमारोहसे यादवराजसिंहासन एक पहाड़ पर किन्ना है। इस पहाडमें बहुतमे घर और पर अभिषिक्त हुए। उन्होंने राजा होने के बाद देखा कि बचाव बने हैं। नगरको ओर एक दरवाजा लगाया गया। लदोर्वा नगर सुरक्षित नहीं है, सहजहीमें शन, उस पर है। दुर्ग के भीतर महारावलका महल खड़ा है । किले. अाक्रमण कर सकते हैं। इसलिए १२१२ सम्बदमें लदोर्या. के जैन मन्दिर बहुत अच्छे और १४०० वर्षके पुराने हैं। से ५ कोम दूरी पर उन्होंने अपने नामका दुर्ग और मगरमें हिन्दो भापाको पाठशाला भो है। मगर स्थापित किया और सदमो वहीं रहने लगे। उनके जयमाल-जयशालमेर नगर और दुर्ग के प्रतिठाता, यदु समयमें भटिजातिके प्रधान पत्र, चन्नराजपूतीने खादाल पति टुमाजके जेष्ठपुत्र । जाष्ठमुत्र होने पर भी इन्हें प्रदेश भानामग्य किया था। परन्तु महावीर जयगानने पिताको मृत्युके बाद राजसिंहासन नहीं मिला था। इमका यथेष्ट प्रतिफल दिया था। उक्त घटनाके पांच दुसाजको मृत्युके उपरान्त सामन्तों ने मेवाड़-गज- वर्ष बाद १२२४ मम्वत्में इनका देहान्त हुपा था। नन्दिनी के गर्भ से उत्पन, दुसाजके ३य पुत्र लञ्जविजय । दो पुत्र थे~एक कल्याण और दूसरे शालिवाहन.. . को सिंहासन पर विठाया था। महावीर जयशाल अपने जयशाल प्रवल पराक्रमो पाहुजातिममे मन्त्री सुनते खत्वसे वञ्चित होनेके कारण जन्मभूमि छोड़ कर चले | थे। ज्येष्ठपुत्र कल्याण उन मन्त्रियों के विरागभाजन गये । वे पिटसिहासन अधिकार करने के लिए तरकीबें | होने के कारण उन्हें मो राजा न मिला. आखिर वे भी सोचने लगे। थोड़े दिन पीछे राजा लक्षविजयको मृतुर| मन्त्रियों द्वारा निर्वासित किये गये थे। जयगालको होने पर उनके पुत्र भोजदेव राजगद्दी पर बैठे। इन | मृताके उपरान्त उनके कनिष्ठपुत्र शालिवाहन राजा भोजदेवकी ५०० सोलकी राजपूतों द्वारा सर्वदा रक्षा हुए थे। की नाती थी, इसलिए अयशाल इनका कुछ भी न कर जयश्री (स स्तो.) १ विजयलक्ष्मी, विजय । २ तालक सके। इस समय गजनीपति साहवरद-दीन उद्यप्रदेश मुख्य साठ भेदो मेंसे एक । ३ देशकार रागसे मिलती अधिकार कर पाटनकी तरफ जानका उद्योग कर रहे जलती सम्म पूर्ण जातिको एक रागिणी। यह सन्ध्याके .थे । भयगालने दूसरा कोई उपाय न देख पाखिरको दो | समय गायी जाती है। बहुत से इसे देशकारको रागिणी सी असमसाहसी अखारोहियोंके साय पश्चनदराजा पा मानते हैं। कर साहब उद दोन गोरीमे साक्षात की। लयशाल जानते | जयसमन्द-राजपूतानाके उदयपुर राजाका एक झील। ये कि, पनहितवाडपत्तन मुसलमानों द्वारा प्राकान्त इसका दूसरा नाम ढेघर है। होने पर भोजदेवका शरीररसक मोलमोगप्प प्रयश्य हो | जयसिंह-१ मेवाड़ के प्रसिद्ध राणा राजसिंहके पुत्र । इनके साहें छोड़ कर अपनो जन्मभूमिको रक्षार्थ गमन करेंगे! जन्मनेसे कई एक घण्टे पहले भीम नामका एक महो। और ये भी उसो मौके पर मरुस्थली पधिकार कर दर हुआ था। ममय पर दोनों भाईयो में राजगद्दीको बैठेगे। यहाँ पा कर जयगालने अपने मनका भाव ले कर झगड़ा होगा, यह मोच कर एक दिन राणा गजनीपतिमे कक्षा। साहब-उद-दोनने उन्हें पादरके राजमिहने अपने जाठपुत्र भीमको बुलाया और उसके माय पण किया पौर सहायता के लिए कई हमार सेना हाथमें तलवार दे कर कहा-"यदि तुम्हें निष्कपटक प्रदान की । उस ययन सहायताले जयशालने राना करना हो, तो इस तलधारसे तुम अपने भाई जय- सदोर्या पाक्रमण किया । भीषण समरमें भोजदेव निहत सिंहका मस्तक धड़ से अलग कर दो।" सदागय भीमने हुए। पाखिरको महिमेनापोंको जयगालको यध्यता सो समय उत्तर दिया-"मामान्य राजाले लिए मैं अपने स्वीकार करनो पड़ो। अयशाप्त के सहगामो मुसलमान | प्राणाधिक सहोदरका अनुमाव भो पनिट नहो कर