पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८५

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०६ जयसिंह ३य-नयसिंह मौर्जा पीछे इन्होंने सोमनाथ पोर गिरनार पर्वतके नेमिनाय | सागर के साथ सार यह पार मोहटियो अधिकारमें या मन्दिर के दर्शन, वाम ग और याचकों को दान, महस्त्र गया। इम बाद १८२६ ई में प्रप्पा मानको विधवा लिङ्गसरोवरका खान, नानाम्यानों में देवमन्दिर, सदायत ! महिपोने रुक्माबाईको रहने के लिए यह गाय दे दिया। भोर गाम्नचर्चा के लिए विद्यालय बनवाया था। यहां थाना, डाकघर, मदरसा और हाट लगता है। ११५३ ई० में महाबोर सिद्धराशने इष्टदेव पाद ज्यसिह मिय-चण्डोस्ततके एक टोकाकार। पामें मन लगा कर तथा अनगनत ( समाधिमाग ) जयसि मोर्जा-अम्बर ( भामेर )के एक प्रसिद्ध राजा, .. अवलम्बनपूर्वक इम नम्बर भरोरको छोड़ा । प्रमिड राजा महासिइके पुत्र । महामिहको मृत्यु के उपरान्त .. वोर जगदेव परमार इनके सेनापति थे । जयमङ्गल प्रादि आमेरराजाके उत्तराधिकारौके विषय घान्दोलन चल. चहुतमे यावि उनको ममान रहते थे। प्रसिद्ध जैनाचार्य रहा था। उस समय जगन्मिइके पौत्र महायोर जय. . हेमचन्द्र मो पहले इनको सभामें रहते थे। इने योधाबाई के पास राजा पानेको भागा व्या को ___ काश्मोरके एक प्रमिह राजा, सुखदेव के पुत्र । योधाबाईक अनुरोध सम्राट जहागोरने जयसिएको हो । आपने १.२६, ११५. ई० तक राजा किया था। भामेरका सिंहासन दिया । परन्तु इससे नूरजहाँ भत्यन्त असन्तुष्ट हो गई। कविघर महने इन्हीं के घाययम रह पार ख्यातिलाम को यौरयर जयसिंह मि हासन पर बैठ कर अपनी तोरण । थी । काश्मीर देखा। बुदि ओर वोर्य बलमे राजा विस्तार करनेको प्रवृत्त । ___४ बावरोके एक राजा। थाप सिदान्ततत्त्वसर्व स्व. हुए। बाद गाहने उनके प्रति सातुट हा कर उन्हें 'मोर्मा' रचयिता गोपोनाय मोनोके प्रतिपालक थे। उपाधि दो। ५ सम्बाट, मरम्मदशाहको ममयके घागरके एक ___ जब दिलाके मयूरासन पनि के लिए दारापोर पोरण- सूबेदार । इन्होंने मागरेके चारों तरफ सहरपना जेदमें झगड़ा हुआ था, तब पहले इन्ही ने दारामा पन पर्यात् अंघो भीत बनवाई घो; जिसमें बहुत से तोरण लिया था, विन्तु पछि विश्वासघातकता कर पारगजेबको थे, मम मिर्फ दो हो तोरण रह गये हैं। तरफ मिल जाने के कारण दासको सामाजामानिका जयहि श्य-जयपुर के एक कच्छवाह राजा। इनके पाभा पर पानी फिर गया। पिता जगमिएको गाय के बाद ये पैदा हुए थे । १८८१ जर्याइने पौरङ्गजेनका वास्तविक उपकार किया मम्बत् ( १८३४ ई.) में कामदार जटाराम द्वारा विप था। बादशाहने उन्हें छ हजारा सेनाका अधिनायक प्रयोगमे इनको मृत्यु हुई थी। जयपुर देयो। बनाया था । जिस समय महाबोर पिवानाके प्रभ्यु दयो जयमिह कवि-हिन्दी भाषाके एक कवि। इनको मुगल साम्राज्य एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्त तक कांपने लगा शुभारमको कविता प्रशे होतो धी।। था, जिनके प्रताप मुगल सेनापति पुनः पुनः परास्त हुए ' जयसिंहदेव-जयमाधवमानमोमास नामक संस्हातग्रन्यके | थे, जिनके भयमे सम्राट पोरगजेब तक सर्वदा सहित रचयिता। रहते थे, उन पोरकुमतिलक शियाजीको एकमात्र मायर. भयसिंहनगर-मध्यप्रदेगके सागर जिले का एक ग्राम राज जयमिइनको परास्त करके बन्दी कर पाया था। यह पता० २३.३८ उ० घोर देगा. ७३७ पूमें। परन्तु जयसिंहने मायोर शिधागोका कमोमा पपमान मागरमे २१ मोल दक्षिणपथिममें पपस्थित है। यहाँको नहीं किया था. गिवाजोको कैद कर दिनी सात समय : . लोकसंख्या तीन बार होगो।। गि प्रतिमा को यो कि, बादशाह नशा गान भो । करीम १९८.२० भागरके गामनकर्ता जयसिंहने पां नहीं कर सकेंगे। किन्तु जब देखा कि, पार जेव यायाम यसाया था। उन्होंने माममा पाकमायगे इम गियासोको मुट्ठो पा कर उन्हें मारनको घटा कर ग्रामको रचाके लिए पर्दा एक किला बनवाया घा, जिम रहे, तब जयसिने धन्द भागनेका रामौता दे पपनो .. का सुइटर पर भी मोद। १८१८ में प्रतिमाको रक्षा की। शिकामी येतो। ।