पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८६

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__ . जयसिंह सवाई 69 जयसिंहको अपनी वीरताका कुछ गई या। वे दर-। विनयमिको मणि, माणिक्य. होरा आदि जवाहरात वारमें सबके सामने स्प के साथ कहा करते थे कि, "मैं दे कर वादगाहके पास भेज दिया। किन्तु सम्राट ने चाई तो सतारा या दिक्षीका अधःपतन कर सकता है।" उन्हें मीठो बातो सन्तुष्ट कर सैयद हुमेनपतोखाको बादशाह औरङ्गजेबने उनको यह बात सुनो धो, किन्तु अबरराजाका फौजदार बना कर भेज दिया। वे भी जयसिपको डरते थे. इसलिए प्रकाश्य वे इनका | इस समय जयसि ई कुछ दिनों के लिए भो सिंहासन कुछ न कर मकते थे। उन्होंने जयसिह पुत्र चोरोद पर न बैठ पाये थे, इसलिए उनके उदय में मुसलमानों के महको भामेर राजाका लोभ दिखा कर उनको पिट ऊपर दक्षिण विषयदि जलने लगा । रात दिन वे दसौ. प्याके लिए उत्तेजित किया। निबोध छोरोदसिइने | चिन्ता में रहते थे कि किस तरह वे राज्ञा कर सकेंगे। 'धुर्त की बातमें आ कर प्रफोमके साथ जहर मिला कर जिस ससय (१७०४ ई में ) बहादुरशाहने भाई पिताको मार डाला। किन्तु चोरोदसिइको पापका कामबमको दमन करने के लिए दाक्षिणात्यको तरफ फत हाथो हाथ मिल गया. उनके जाट भाता राम यात्रा को, उस ममय जयप्ति हने मारवाड़के राजा मि' ही पिटसि हासन पर अभिषिक हुए। अजितसिंह के साथ मिल कर मुसलमान फौजदारको • जयसिंह सवाई-जयपुरके एक प्रसिद्ध राजा और भगा दिया और खुद सिंहासन पर बैठ गये। अजित. भारतके एक अहितीय जोतिर्विद । ये अम्बरके राजा सिंहको कन्या सूर्य कुमारीके साथ जयसिहका जयमिह मौर्जाके प्रपौत्र पौर विष्णुसिंहके पुत्र थे। विवाह हुआ था । इन्होंने वैमात्रेय भाई विजयसिंह प्रचएनमे हो ये विद्यानुरागी थे। सम्बत् १७५५में ये को मन्तुष्ट रखने के लिए उनको प्रार्थनानुसार उन्हें राजप्ति हासन पर बैठे थे। राजाधिरोहण के बाद ही अम्बर राजाके भीतर प्रतीय उर्वरा यसवा प्रदेश दे ये दाक्षिणताकी तरफ युद्ध करने गये । उस युइम | दिया परन्त इससे विजयको माताको सन्तोष न हुआ। जय प्राप्त कर ये बादगाह के प्रय साभाजन हुए थे। उन्होंने विजयको राजालाभका लोभ दिखाकर पुनः मम्राट ने इन्हें पहले डेढ़ हजारो और पोछे दो हजार उत्तेजित किया। विजयसिने दिल्ली ला कर प्रधान मवारका मनसबदार बनाया था। प्रधान प्रमोगको अर्थ हाप वशोभूत किया और ओष्ठ औरङ्गजेबको मृत्यु के बाद जिस समय सामाजाको भ्राता जयति विरुह बहुत से अभियोग लगा कर ले कर बादशाह झुमारोंमें ममरानल जल उठा था, घे पुनः राज्य पाने के लिए कोशिश करने लगे। रिश्वत उस समय जय महने आजिमगाहके पुत्र कुमार वेदार खा कर सम्राट के प्रधान मन्त्रो कमर उद दोनखनि भौ यसका पक्ष अवलम्बन कर बहादुरशाइके विरुद्ध युद्ध | विजयसिंह पञ्चका समर्थन किया। किया था। इसलिए बहादुरगाहने दिनो तरङ्ग पर कमर-उद्दीनने बादशाहके पास जा कर कहा- बैठते ही अम्बर राजा.जन्त कर लिया। पीछे अम्बरका "विजयसिंह मरावर इम स्लोगों के साथ सापहार करते शासन करने के लिए एक शासनकर्ताको भो भेजा था। भाये हैं। परन्तु चतुर जयसिंह हमेशा हम लोगों के - इस समय जयसिंहके छोटे भाई विजयमिहने भी राजा) विरुव रहते हैं। ऐसी दशा परसरका राज्य विजय- पानिको कोगिण को। जिस समय जयसिंहने पाजिम सिंहको हो देना ठोक है। विजयमिको रामा करनेमे थाहका पक्ष लिया था, उम समय विजयसिह बहादुर के पांच करोड़ रुपये देने को तयार हैं। इसके सिवा शाहको तरफसे लड़े थे। इसलिए बहादुरपाइने उन्हें | जरूरत पड़ने पर पांच जार तक पवारोही मेना भेजते ही तीन हजारोका मनसबदारी प्रदान को। . रहेंगे।" मन्त्रीकी बात सुन कर सम्राट ने पूछा- विजयसिहको माता जयमिहको विमाता थी। "विजयसिंह अपने वचनके अनुसार ही कार्य करेंगे, इसलिए वे चाहती थी कि, जयमिह किसी भी तरह | इसका क्या ठीक है?कोई जामिन है?" मन्त्रीने तर राजा न कर म इसलिए, उन्होंने मोका देख कर! दिया-"मुझे हो उनका प्रतिमू समझिये।" इस पर Vol. VIII. 20