पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८७

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'नयसिंह सवाई मादशाहने विजयमिइके पक्षकी सनद इनाने के लिए कर राजमाताके पागमनको प्रतीक्षा कर रहे थे। एक पाशा दे दो। दूतने मा कर उनके पानेका समाचार सुनाया तो मो रख दौरान नामक एक प्रधान प्रमोरके साथ जयसिंहने प्रासादको तरफ दौड़े गये। मामादमें जयसिंह और. पगड़ो बदल कर उन्हें अपना मित्र बना लिया था । अव | विजयमिह दोनों भाईयो का मिलन हुा । जयामाने उन्हीं अमौरने गुपचुप रक्त वृत्तान्तको सुन कर जय. विजयके हाथ पर बमवाको मनद रख कर स्नेहमे सिके दरबारस्थ वकोल कपारामसे कहा और कृपाराम कहा-"यदि तुम्हारी इच्छा पम्बराना लेने के लिए धारा शोघ्र ही यह सम्याद जयसिहके पास भेजा गया। हो, तो वह भो मैं दे सकता है।" जयमिइके स्नेह रूपारामका पत्र पा कर जयसिंह भी चिन्तित हुए। भरे वाक्यसे दुष्टमति विजयमका मन भी पघल गया, .. उनके भाई भो मुगल सेनाके साथ उनके विरुद्ध आवेगे.. उन्होंने जबाघ दया-"भाई! मेरी मम प्राशाएं पूरी इसीलिए उन्हें चिन्तामें पड़ना पड़ा था। दूसरा कोई । हो गई।" होता तो उन्हें कुछ भी पर्वाद नहीं होती। उन्होंने शोध इसके कुछ देर बाद एक नौकरने पा कर कहा कि, ही अम्बरके समस्त सामन्तीको बुला कर शोघ्र ही चान "राजमाता श्राप दोगों से मिलना चाहते हैं। इस पर वालो विपतिकी बात कही। सामन्तों ने उनको अभय | सामन्तों से अनुमति ले कर दोनों भाई अन्तःपुरमें घुसे । दान दिया और विजयसिइके पास अपने अपने मन्त्रियों । प्रवेशद्वार पर एक खोजा रहा था, जमिहर्ग उसके को भेजा तथा यह कहला भेजा कि, "पापको वसवा | हाथमें तलवार दे कर कहा-'माता पाम मध्य प्रदेश ले कर ही मन्तुष्ट रहना चाहिये । व्याप्ठ भ्राता | जानेको क्या जरूरत ।" यिनप्रतिनी ज्येष्ठ माताकी साथ पापका झगड़ा करना न्यायतः और धर्मत: उचित देखादेखो तलवार यहीं छोड़ दो और भीतर घने नहीं। पाप जिससे सम्मान के साथ बसवा पदेशका भोग गये। कर मके', उसके लिए हम सभी प्रतिमायद रहेंगे।" भीतर घुमते ही माता हालिएनके बदले विजय बहुत अनुनय विनय करनेके उपरान्त विजयमिहने । मि पर महिमामात उग्रमेन का कठोर अाक्रमणमा इम बातको मंजूर किया। मामन्तगण यह भी कोशिश, और ये बन्दी हो गये ।मुह और हाथ पैर प्राटि बाँध करने लगे कि, जिसमे दोनों भाईयो में मेल-मुलाकात कर उन्हें महादोमामें डाम्न गुप्त रोतिमे प्रमर राजाको हो कर मौहार्द उत्पन्न हो जाय। निराय हुपा कि, राजधानी में लाया गया। मभौने समझा कि, राजमाता प्रधान मामन्तकी राजधानीम दोनों भाईयों का मिलन | मामादको लौटो जा रही है। घर जमि' की एक होगा। इस पर दोनों पक्ष के लोग चमू नगरमें उपस्थित | धगटा बाद कर एक प्रसधारो मनिकीक माथ बाहर हुए। इमो समय खबर पाई कि, "महाराजो दोमो निकम्ते। उन्हें पकेले पाते देख ममो पूछने नारी- भाईयो के नयनानन्ददायक मिलनको देखना चाहती। "विजयमिह कहां है।" चतुर मोसित जयमिहने "| सामन्तगण भी महाराजोको इच्छाके विरुण बाछ । उत्तर दिया-"मेरे पेटमें। अगर पाप सोगाका यंह म कर सके। मबोंको अनुमलिक पनुमार उसो ममय अभिप्राय हो कि, विजयसिंह को राजा हो तो मुझे महाराशीका महादीना. पोर.पुरमहिलापों के लिए तीन मार कर उमे निशान लें। या नियमझिये कि, मौ रथ समाये गये । परन्तु महादोनाम राजमाताके पदाले विजय मेरा और पाप मोगों का है। कमो.न कमो. मामन्तवीर उग्रसेन पौर पम्यात प्रत्येक रपमे स्त्रियों के यह गानों को पावरमें ता कर हम ममोको मरवा यदले दो दो मगर मैनिक पठाये गये। मामन्तगण | डालता रममें मन्देश नहीं !" ममो मामन्त पारायंगे पहने ही अमिहके माप चल दिये थे, वे इस पड़यन्ध दंग रह गये। टूमग कुछ उपाय न देव पुपमाप का बिन्दु विमर्ग तक नहीं जानते थे। दल गये । जय विजयसिंह पम्घर पाये थे, तब कमर । भयसिंहपौर मामन्तगण पहलेडीमे मांगानेर पाउद-दीनपाने उनकं माय एबादल मुगम पारोको