पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८८

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जयसिंह संवाई . सैन्य भेजी थी। विजयमिनके लौटने में देरी होते देख त्याग कर जयोतिषको चर्चा प्रारम्भ की। उन्होंने क्या उस सेनाके नायक उनके विलम्बका कारण पूछा । जय- यूरोपीय और क्या देशीय समस्त प्राचीन और प्राचीन 'सिंहने उत्तर दिया-"तुम्हें कारण जाननेको कोई वैज्ञानिक ज्योतिम्रन्योका मग्रह कर उन्हें पढ़ना जरूरत नहीं। यहां अभी कूच कर दो, नहीं तो तुम प्रारम्भ किया। उनकी म नुएल नामक एक पोत गोज लोगों के घोड़े छोन लिए जायेंगे।" यह सुन कर तमाम पादरोको भेट हुई। यूरोपमें जयोतिविद्याको कहां मुगल सेना भाग गई । इस प्रकारसे चतुर राजनीतिज्ञ तक उबति हुई है यह जानने के लिए जयसिइने उता महाराज जयसिंहने अपनो और जन्मभूमिको रक्षा की। पादरीके साथ कई एक विश्वस्त भादमिया को पोर्तुगल- विजयसिंह अम्बरके किले में कैद रहे। के अधोखर एमानुएलको सभामें भेज दिया। पोर्तुगलके बादशाह अम्बरराज जयसिंहके इस व्यवहारसे अत्यन्त राजाने पामेरपतिके पास जेमियर डि. सिलभा नामक क्रुद्ध हुए। किन्तु अकस्मात् लाहोरमें उनकी मृत्यु हो। | एक सम्धान्त जोतिविदको भेजा था। डि. सिलभाने ‘जानसे उस समय जयसिंह दिनोवरके प्रबल आक्रमण से यहां श्रांकर जयसिंहको पोतुगलमें डो० सोहायर द्वारा · · साफ बच गये। . प्राविष्कत कई एक यन्त्र दिये थे। इसके सिवा जय- • बहादुरशाहको मृत्युके बाद फरुखशियर दिलीके | सिइने तुकी के जयोतिर्विदों द्वारा व्यवहत और समर. सिंहासन पर बैठे । उनके साथ जयसिंहका विशेष सद्भाव कन्द पर स्थापित कई एक यन्त्रों तथा बहुतमे वैचा. था। उन्होंने जयसिंह पर सन्तुष्ट हो कर उन्हें 'महा. निक शास्त्रों का संग्रह किया था। वास्तवमें उन्होंने राजाधिराज'को उपाधि प्रदान की थी। उस समयके प्रचलित प्रायः सम्पूर्ण जयोतिष-समुद्र सम्राट, फरुखशियर मो बहुत दिन राज्य नहीं मन्यन कर प्रक्षत जयोतिषामृत पान किया था । दुनिया- कर सके । वे धूर्त सैयद मायकी क्रीडापुत्तलो बन के तमाम इतिहास पढ़ डालिये, किन्तु राजाम गये । परन्तु वे इनके कबलसे निकलने के लिए चेष्टा मी जयसिह नेसे जातिर्विद दूमरे न मिलेंगे। यह कहना कर रहे थे। उनके इस अभिप्रायको सेयद हुसेन अलोने । अत्युक्ति न होगा कि, · जयसिइने भारतमें वास्तविक ताड़ लिया और वे दाक्षिणात्यमे बालाजो विश्वनाथको । जयोतिषशास्त्रोंके उद्दार करनेके लिए भरपूर प्रयत्न किया अधीनस्थ बहुत मो महाराष्ट्र सेना ले पाये। उस समय था और उन्होंने अनेक शाम सफलता भी पाई थी। - महाराज जयसिंह भी बादशाहको रक्षाके लिए दिल्लो • अप्ति हने अपने बनाये हुए "जोज महम्मदशाहो' 'उपस्थित हुए थे, किन्तु कायर फरुखशियार सैयद ! नामक ग्रन्यमें लिखा है कि, उन्होंने लगातारं सात द्वारा परिचालित महाराष्ट्र सेनाओंका डरसे अन्तःपुरमे । वर्ष तक जोतिषशास्त्रों का अध्ययन किया था । जा छिपे। इस विपत्तिकालमें जयसिंहने बारबार बाद इनके जरोतिष शास्त्रम असाधारण पाहित्यको देख कर शाहको कहलवा भेजा कि - "आप बाहर निकल कर हो बादशाह महम्मदयाइने इनसे उस समयमें प्रचलित अपनी सेनाओं के सामने खोल कर कहिये कि, दोनों । पत्रिकाका सभोधन कराया था और इसीलिए बाद- सैयद राजद्रोहो है इसमे पाप पर किमो तहको शाहने इनको "सवाई" अर्थात् 'समस्त राजकुमारों से विपत्ति न आयेगो, सभी प्रापको सहायता करनको येष्ठ, यह उपाधि दो धो। सो समय (१७२८ ई.में) 'तयार हैं, में भो पापको जो जानसे सहायता दूंगा।" | जयसिंहने अपने मन्त्रो ओर जयोतिर्विद विद्याधरके किन्तु भौर फरुखगियारने हितपो जयसिंहकी बात ! परामर्शानुसार वर्तमान जयंपुर नगर बसाया था I . पर जरा भी ध्यान न दिया, आखिर वे अन्तापुरमें ही . . . . जयपुर देखो। कैद कर लिए गये। धोरे धोर संवाई जयमिइको ममितिमाम हिन्दु इसके उपरान्त महम्मदगाह बादशाह हुए। उनके स्तानमें फेन गई। इनकी सभाम नाना स्थान प्रधान राजत्वकालमें पहले जयसिहने राजनैतिक संभव प्रधान जयोतिविद और मास्त्रविद पण्डितगप पाने