पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/९०

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जयसिंहसूरि-जयसेना ८१ या । इसीलिए राजपूतानामें गिशु हत्या प्रचलित घो। सोलहवें स्वर्ग में महावन नामक देव हुए । महामन भो 'किन्तु जयसिंहम राज्यके सभी प्रधान प्रधान व्यक्तियोंको । कालान्तरमें उमो स्वर्ग में मणिकेतु नामक देव हुए । बुला कर नियम बना दिया कि, विवाहके ममय कोई भी स्वर्ग में दोनों ने यह निराय किया कि. "दोनो मेमे जो दहेजके लिए दावा न कर सकेगा, जितना खर्च करने पर कोई पहने च्युत होगा, उसको यहां रहने वाला दूसरा याद हो सके उतनेहो या कार्य करना होगा, देव उपदेश दे कर मसारमे विरत कारेगा।" फिजूलमें कोई धादा खर्च न कर सकेगा और जो ) ___अनुक्रममे कान बीतने पर महावल ( जयमेनका करेगा. वह दण्डनीय होगा । यह कहना व्यर्थ है कि, | जीव ) स्वर्ग मे चयन कर अयोध्या नगर इक्षाव भोय इससे समाजका बहुत कुछ उपकार हुपा था। इसके । राजा ममुद्रविजयके (गनी सुबालाके गर्भ से ) मार सिवा रहने पथिकों के लिए जगह जगह धर्मशालाएं, नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ३६ लाख पूर्व व्यतीत होने पर हाट और पच्छो सड़कें बनवा दो थौं। "एक्रश नयगुण । इन्होंने भारत सके छहों खगड़ पर विजय प्राप्त की अयसिंहका" नामक एक ग्रन्यमें जयसिंहको गुणगरिमा- | अर्थात् चक्रवर्ती ही गये। मणिकेतु देवने पा कर रहें का काफी वर्णन किया गया है । कई बार समझाया, पर इन्होंने राज्य छोड़ कर दीक्षा जगत्प्रसिद्ध राजज्योतिर्विद् ऐतिहासिक और न लो । अन्तमें इनके पुत्रों के उता देव हारा अकस्मात् ममाज-संस्कारक महाराजाधिराज सवाई जयसि'हने मारे जाने पर इन्होंने मुनि दीक्षा ले लो। धारावती १७४५ ई०के सेम्बर मासमें इहलोक त्यागा था। देखो। (जैन उत्तरपुराण, पर्व ४८ ) इनकी मृत्युसे मिर्फ जयपूरका हो नहीं, किन्तु ममस्त २ अाराधनसार काकोप नामक जैनगन्य में वर्णित भारतका एक अमूल्य रख खी गया। इनकी तीन प्रधान | एक जैन राजा! -महिषी भी इनके साथ एक चिता पर सदाके लिए मीयो पालेश्वर नामक नगरके राजा। ये जैनधर्माव थी। इनकी मृत्यु के उपरान्त कहौके पुत्र ईश्वरीसिह लम्बी थे । इनवी रानीका नाम जयमेना था। जयपुरको राजगद्दी पर बैठे थे। जयसेना देस।। जयसिंहरि-एक विख्यात नैयायि, महेन्द्रके शिष्य । जयसेन प्राचार्य-एक दिगम्बर प्राचार्य। इन्होंने होने न्यायसाग्दोपिका रचना की है। नाटकसमयसार, प्रवचनमार और पञ्चाम्तिकाय इन तीन जयसेन (स.पु. ) जययुक्ता मेना पस्य. १ मगध एक | अन्योंको टीका रची है। राजाका नाम । २ प्रायुप वशके अहोन राजाके पुत्र। जयसेना-अालेन्डरपति राना जयसेनको प्रधान महियो। ३ साब मौम गजाके एक पुत्र । ४ एक दिगम्बर जैन | भलामरकथा नामक जैन ग्रन्थ इनका विवरण इस प्रत्यकर्ता। इन्होंने प्रतिष्ठापाठ और धर्मरत्नाकर मामके | प्रकार लिखा है- दो अन्य प्रणयन किये है। | राजा जयसेन जैन धर्मावलम्बी थे और उनको मरियो जयमेन-१ एक जैन राजा। ये पूर्व विदेहको सोता | जयसेना जैनधर्म प्रतिकूल प्राचरण करती थीं । एक नदीके दक्षिण तट पर स्थित वत्सकावतो नामक स्थानके } दिन ज्ञानभूषण नामक मुनिराज उनके घर पाहार के अन्तर्गत पृथ्वीनगरके अधिपति थे। इनको पटरानीका लिए पाये । तपयर्या करने से उनका भरोर अत्यन्त बम नाम जयसेना था। इनके दो पुत्र थे, रतिपय और धृतिः। हो गया था। राजाने उन्हें श्राद्वान पूर्वक भतिशय या घेण। किसी कारणवश रतिषणको मृत्यु हो गई, निमसे भक्तिके साथ पाहार कराया । परन्तु महारानो अयमा इन्हें अत्यन्त शोक पा । उन्होंने तिपयको राज्याभिः । को यह अच्छा न लगा। वेभानम पण मुनिराजको पित कर यशोधर मुनिके निकट जा दोक्षा ले ली। साथ / निन्दा करने लगी और मन ही मन ऐसा विचारने को इनके साले महारतने भो दीक्षा ग्रहए की थी। लगों-"महाराजको कोसो पन्धमति है, वे सभ्य गुरु- भाबुके समान होने पर जयमेन मुनि प्रयुत नामक | ओंको छोड़ कर निष्ण नग्न असभा मानों की प.जा Vol. VIIL 21