पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/९२

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जयापुष्प-जयेश्वर पौड़की मृत्यु के बाद ७५१ ई० में ये राजगद्दी पर बैठे । मस्य व, मशायर्या दोधः ततो डोप । १ कुमारानुदर थे। ये जब राजा हो कर दिग्विजय करने के लिए मेना माटभेद, कार्तिकेयको एक माटकाका नाम, ! २ माहित बाहर गये, तब इनके श्यालक राजसि हासन | रागिणीविशेष, एक संकर रागिणो। यह धवलश्री, अधिकार कर धैठे। इन्होंने कई एक दिन बाद कुछ दूर और मरस्वतीके योगसे बनती है। जा कर देखा कि, उनको बहतसौ सेना रातको दल | जयावतो-१ पोदनपुराधिपति राजा प्रजापतिको प्रधान छोड़ कर भाग गई है। यह देख कर इन्होंने अपने महिषो और प्रथम बलदेव विजयको माता । ये भगवान् करट राजाओंको अपने अपने देश लौट जानिके लिए श्रेयोसनाथक समः कहा और खुद कई एक अनुचरों और भागे हुए मनि. २ चम्पापुराधिपति इक्ष्वाकुप शीय राजा वसपूजा- , 'कोके घोड़े ले कर प्रयागधाममें उपस्थित हुए। इस क्रो प्रधान महिपो और बारहवें लोथ हर भगवान् वास. जगह इन्होंने एक स्तम्भ बनवाया और ब्राह्मणीको पूजाको माता । ( मैन-आदिपुराग ) 2222 अव दान दिये । इम स्तम्भ पर लिखा है कि, जयावहा (म० स्त्री० ) जय' प्रावहतीनि प्रा-व-अच् । "मैंने एकोनलक्ष अश्व ब्राह्मणोंको दान दिये हैं। यदि १ भद्दन्तोवृक्ष । २ नीलटूर्या, हरीदूव। . कोई १ लाख अश्व दान कर सके तो दम स्तम्भको तोड़ | जयाशिम् ( स० स्त्री०) जयका आशीर्वाद । जयाथया ( म स्त्रो०) जय आश्रयति प्रा.यि पच टाप् । 'अमन्तर ये पुनः अपनो समस्त सेनाको लोट जानका जड़रीटगा, अहड़ो घास । प्रादेश देकर रविके समय यहाँसे चल दिये। घूमते जयाव ( स० पु०) विराट-गजाके एक भाईका नाम । फिरते ये गौड़ राज्यमें पहुंचे, जहां जयन्त नामक राजा | जयावा (स. स्त्री०) जयस्य प्राधा पाख्या यस्याः । भद्र- राज्य करते थे। गौड़को राजधानी पौगड पईन नगरमें । दन्तीका वृक्षा पहचने पर कमला नामक एक वेश्याने राजा समझ अयिन (स.वि.) जेतुं शोलमस्य जिनि । जयशील, कर इनका स्वागत किया। ये उसीके घर ठहर गये। विजयी, फतहमद । वेश्याने इनमे अपनो इच्छा प्रगट को, इस पर जयापोड़-जयिष्णु (म.वि.) जि-शोलार्थ पूष्णच । जयशोल, जो ने उत्तर दिया- "जब तक मेरी दिग्विजययात्रा समाप्त | जीतता हो। न होगीः तम तक स्त्रियों में मेरा कुछ भी सम्बन्ध नहीं।" जय स (संवि०) जि-उंसि। जयशोग्ल, जोतनेवाला! एक दिन उस नगरमें एक सिह घुस पड़ा और प्रजा का | जयेत् ( स० पु.) पुरिया और कल्याण योगसे उत्पन्न विनाश करने लगा। जयापोड़ को माल म होते हो । एक मकर रागिणो। इसमें पंचम स्वर नहीं लगता। उन्होंने बड़ी धोरतामे उसे मार डाला। दूसरे दिन जब यथा-"ग म . ध नि सा ऋ" ( संगीतर.) राजाने मार्गमे सिंहको मरा पाया, तो उन्हें बड़ा | जयेती (सस्त्री०) रागिण विधेय, एक प्रकारको सकर पाथर्य हुआ। उन्होंने सिंहको उठवाया तो उसके नीचे गगियी। यह गौरी और जयतथोयोगसे उत्पन्न होती एक आभूषण पड़ा मिला, जिस पर "नपापोड़" लिखा है। यह सामन्त, ललित और पुरिया अथवा तोदी साहाना ' था। राजाको बड़ी खुशी हुई, उन्होंने घोषणा को कि, और विभाम योगसे भी उत्पन्न हो सकती है। 'जो जयापीड़को टूट कर ला देगा, उसे आशातीत पुर• (संगीतर० ) स्कार दिया जायगा."-जयापोड़का पता लग गया। जयेन्द्र (मपु०) काश्मोर- विजयके पुत्र! इनको राजाने इन्हें निमन्त्रण दे करघर बुलाया और अपनी बाहें इतनी बड़ी थी कि वे घुटने तक पहुंच जाती पुषी कस्याणदेवीका उनके साधं विवाह कर दिया। थी। इनके मन्त्रीका नाम मन्धिमति था। इन्होंने ३७ वर्ष जयापुष्प (स.सी) जवानी तक राज्य किया था। काश्मीर देखो। जयावती ( नो०) जयः विद्यते ऽस्या.. अस्त्यर्थे मतुप, जयेश्वर (सं. पु० ) एक प्राचीन शिवलिङ्गः। , . ..