पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/९४

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जरत्कारु, जरयस्त्र ८५ क्षपयामास तीमेण तपसेत्यत उच्यते । । स्वेच्छापूर्वक मुझे मिक्षा-स्वरूप दान दें, तो मैं उसके जरत्कारुरिति ब्रह्मन् वामुभगिनी तथा ॥" साथ यथाविधि विवाह कर उसके गर्भ से सन्तानोत्- (भारत ११४३-४)। पादन करूंगा।" इतना कह कर वे अभीष्ट स्थान पर जरा शब्दका अर्थ है क्षय, और कार भन्दका अर्थ चले गये। एकदिन वनमें प्रवेश कर उन्होंने तीन बार दारुण। इन महर्षिका शरीर अतिशय दारुण था, इन्हों. उच्च स्वरसे मिचा स्वरूप कन्या मांगी। एनके उस मिता. ने कठोर तपस्या के हारा शरीर क्षय किया था, इसी वाक्यको सुन कर नागराज वासुकिने अपनो बहन लिए इनका नाम जरत्कार पड़ गया था। जरत्कारुको ला कर महपिके सुपर्द को। इन्होंने भी जरत्कार ऋषि प्रजापति समान ब्रह्मचारी और स्वनाम्नी जान कर विधिपूर्वक उनसे विवाह कर तपारायण थे। ये मर्वदा व्रत धनुष्ठान और उग्र तप. लिया। विवाह करते समय यह निश्चित हो गया कि, स्यामें लगे रहते थे, ये किसो ममय अवनीमण्डल परि महपि पर दूनकै भरणपोषणका भार मी रहेगा और भ्रमय के लिए निकले । जहां शाम होतो थो, वहीं ये पत्नी यदि इनके प्रति भमिय आचरण करें गो, तो ये ठहर जाते थे। इस तरह बहुत दिनों तक पाहार निद्रा उन्हात् न्याग देंगे। कुछ दिन पोछे नागकन्या परित्याग और इधर उधर पर्यटन करते रहनेसे इनका जरकार महवि के सयोग गर्मि नो हुई । एकदिन ये शरीर अत्यन्त पोर्ण हो गया था। तो भी ये वायुमात्र पानोको गोदमें मस्तक रखकर सो रहे थे, ऐसे समयमें भक्षण कर कठोर वृतानुठान करते थे। एकदिन भ्रमण सूर्य को अस्त होते देख, स्वामोको कियालोप होनेको करते करते इन्होंने कहीं पर देखा कि, कुछ लोग याशद्धासे इनकी पत्नीने इन्हें जगा दिया। इससे महर्षि उल्टे जमीनमें गड़े हुए हैं। इन्हें दया आ गई। जरत्कारुने कुपित हो कर कहा-"तुमने पाज मेरा होने उनमे पूछा--"आप लोग कौम हैं। क्यों आप | अपमान किया है, इसलिए मैं तुम्हें जन्म भरके लिए लोग में विकच्छिन्नमल उपौरस्तम्ब मात्र अवलम्बन कर परित्याग करता तुम अपने भाईसे कह देना कि, अधोमुख हो इस गड़हे में पड़े हो ?" उत्तर मिला वे मुनि चले गये हैं। इसके सिवा यह भो कह देना "हम लोग यायावर नामक ऋषिके वंशधर है । सन्तान | कि, तुम्हारे जो गर्भ रह गया है, उससे प्रदीप्ततेजा सय होने के कारण अधापतित होते हैं। हम लोगों के दुर्भा- एक पुत्र उत्पन्न होगा। इनना कह कर मुनि चल दिये। ग्यको मौमा नहीं है। हम लोगोंका जरत्कारु नामक पत्रोने बहुत कुछ अनुय विनय किया; किन्तु इन्होंने एक प्रभागा पुत्र है, जो बिना दारपरिग्रह किये हो जरा भी ध्यान नहीं दिया। ( भारत भादि) दिन-रात सिर्फ तपस्या हो लीन रहता है। इसीलिए (स्त्रो०) २ नरकारको पत्नी, भास्तिकी माता, कुलक्षय होते देख हमलोग पौधेमुंह गड़हे में पड़े हैं। वासकिकी बहन, मनसादयो । मनसा देखो। हमारे वंशवईन जरत्कापके रहते हुए भी हमलोग __"आस्तकस्य मुनेर्माता भगिनीषाकिस्तथा । भनाथ और दुष्कतों को तरह पड़े हैं। तुम कौन हो। जाकामुनेः पत्नी मनसादेवी नमोऽस्तु ते।" पौर किस लिए तुम बान्धों को तरह अनुमोचना कर रहे हो?" जस्तकारने उत्तर दिया-"मैं ही प्राप- जरत्कारुप्रिया (म'• स्त्रो०) जरत्कारो खनामख्यातस्य लोगोंका प्रभागा पुत्र जरत्कारुई। अब क्या मुमैः प्रिया, ६-तत् । मनसा देवो। करू, पाप लोग पाना दीजिये ।" यह सुन कर लोगों जरथस्त्र-पाचोन पारसिक धर्म प्रचारक। ये ग्रोकोके को बड़ी खुशो हुई, वे बोले-"वत्स ! दारपरियइ कर पास ज़रस्वदेस (Zarastrades) या जोरोभी स् ( 20 सन्तानोत्पादनपूर्वक हम लोगों को रक्षा करो।" जरत्-roastres ), रोमकों के यहां जोरोप्रस्तार (Zoronster) कापने कहा-"मैं प्रतिज्ञा करता है-यदि कन्याके नाम (यूरोपमें भी इसी नामसे प्रसिद्ध हैं) और वर्तमान पार- से मेरा नाम मिल जाय और उसके वधुवान्धवगण से। सियोंके यहां जरदोस्त नामसे प्रसिद्ध है। परन्तु पारसी Vol. VIIL 22