पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

... जरथुस्त्र... .. आतिक प्राचीनतम ग्रन्थों में "जरथुस्त्र" नाम हो पाया पहिले के माल म होते हैं। किन्तु प्रसिद्ध पारसिक धर्म... 'जाता है। शास्त्रविद मार्टिन होगं लिखते हैं यिा.-"ईरानी के प्रनादः इम समय जरथुस्त्र या जरदोस्त कहने से सिर्फ एक | मूलक वोम्तास्प और ग्रीकवाणित इयम्तस्पैम दोनों एक आवस्तिक-धर्म प्रचारकका ही घोध होता है। किन्तु व्यक्ति नहीं थे। वोस्तास्प किस समय हुए हैं, मका - पूर्व काम्नमें कई एक जरथुस्त्र थे, अवता ग्रन्यमें उनका अभी तक कुछ निर्णय नहीं हुआ । पारसिक धर्म शास्त्री. , उमेख है। उक्त ग्रन्थ के देखनेसे ज्ञात होता है कि. उम्म को पर्यालोचना करनेसे नरय स्त्र को ईसासे १००० वर्ष और ज्ञानमें जो सबसे प्रधान और पद होत थे, उन्हींको पहले के सिवा बादका नहीं कहा जा सकता।" । अरथु स्त्र कहा जाता था। वैदिक जरदंष्ट शब्द के साथ | पारमिकों के धर्म ग्रन्थों में जरथ स्वके विषय में बहुत इम जरठ स्त्र शब्दका बहुमकुछ सादृश्य है। सी अलौकिक घटनाओं का उल्लेख है, उनमें जरथ को इस ममय जैसे "दस्त र" कहनेसे अग्न्य पासक ! अमाधारण देवातीत गुणमम्पन्न ईश्वरतुल्य व्यक्ति यत. पारसिक पुरोहितोंका बोध होता है, 'पहले जरथुस्त्र लाया गया है। किन्तु प्राचीनतम ग्रन्थों में उन्हें मन्त्र काहनसे भो ऐसा हो बोध होता था। पाठक, वक्ता, बहुरमज टुका दूत और उन्हों के पादिष्ट धर्म प्रचारक जरथुस्त्र भी पहले इसी तरह एक | उपदेशादिका प्रचारक, कहा गया है। नवम याने इन्हें "दस्त रं" थे। इनके पिताका नाम था पोरस्प। . एयनयए जो अर्थात् पायनिवासमें प्रसिद्ध और बन्दिदाद. सितमवंशमें इनका जन्म हुआ था, इसलिए प्राचीन में इनको बाख धो (वाहीक) मर्तमान वाला नामक प्रन्यों में इनका स्थितमजरथुस्त्र नागमे उल्लेख है। स्पितम. स्थानके रहनेवाला बतलाया गया है। वश"एचडस्प" नाममे भी प्रसिद्ध है। इसीलिए ___ जरथ स्त एकेश्वरवादी थे। जिस समय देवधर्मा. 'धर्म वीर स्पतम जरथुस्त्रको 'कन्याका यन नामक यलम्बी भारतीय पार्यों और असरमतावलम्यो पारमिको ग्रन्य में 'पौरुचिष्ट हएचस्पाना स्पितामोनामसे वर्णन का परस्परमें विवाद हुआ था, तथा जिस समय अधिकांग किया गया है। पारसिक विविध देवियों को उपासना और कुसंस्कारीक किसी शिमो ग्रन्यमें "जस्थ स्वसेमी" अर्थात् श्रेष्ठतम जाल में फंस गये थे, उस समय जरथ बने एकेश्वरवादका और मोचारय स्त्र, सानामसे भी अभिहित हैं। इस प्रचार किया था। पारसियों के प्राचीनतम गाथा और . से जाना जाना है कि ये वर्तमान दस्तुर ए दखरान्'को यशग्रन्यसे इनके द्वारा प्रवर्तित जान और धर्मतत्त्वाको तर सबसे प्रधान प्राचार्य थे। जान सकते हैं । ये देतवादी अर्थात् प्राध्यामिक और मासत । अन्यान्य माचीन धर्मवीरोंकी तरह जरथुस्त्रका जगत्के दो म लकारणों को खोकार यारते थे ! . धाक . वास्तविक इतिहास नहीं मिलता है। मन और कर्म इन तीनों योगी पर इनकी धर्म नीति . ग्रीकों में लिदियावामी जन्थोम (४७• ई०से पहलाने स्थापित थी। जिस समय ग्रोकोंने वास्तविक ज्ञानमार्ग .. सबसे पहले लिखा था कि, जरदोस्त व्ययुक्षके सात मो- पर विचरण करना नहीं मीग्वा था, महामा अटोमो वर्ष पहले जीयित थे। पारिष्टटल और इनडोक्सस जय गूढ़ आध्यात्मिक तत्त्वको नहीं समझ सके थे, उसमे : घंटोमे छह हजार वर्ष पहले इनका पविभीष दुपा! बहुत पहले जरघु बने भान और धर्म के विषय मु.. था। मिनिक मतमे-ट्रय-युइंसे ५ हजार वर्ष पहले जर. युक्तिपूर्ण तत्वों को प्रगट किया था। पहनति गाथा... दोस्तका पाविधि हुपा था। इधर भग्ना पासक पारसी में जरथ स्त्रका मत उडत है। उसके पढ़ने में मालम गण कहा करते हैं कि, मजन्दमयस्ता में जिनका कव- होता है कि, उस समयको तथा उससे भी बहुत शताप्दो वोस्ताम्प नामसे वर्णन है, ये हो पारस्यराज दमयमके | बादके भावुक भानियोंको अपना कहीं अधिक अगेक "पिसा हयमास्पेस थे। पीक समयमै जरदोस्त पावि- गभोर तव उनके उदय में उदित हुए थे। इन्हीं के प्रभाव... भूत हुए थे। ऐसी दशा में जरथ बास्त्रीमे ५५० वर्ष । मे अब मो पारमिकगण उस प्राचीन भासिक धर्म की .