पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१०३

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मुमुचान-मुमताजपहल मुमुचान ( सं० पु०) मुञ्चति जलं इति मुच्-( मुचियुधिभ्यां । गङ्गाक्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्रके मध्य जिस किसी सन्वच्च । उण २६१) इति आनच कित्, सन्वञ्च ।। स्थानमें प्राणत्याग करनेसे गङ्गा-मृत्युका फल होता है ।। १ मेध, वादल । २ वह जो मुक्त हो गया हो, वह जिसका मरण और मृत्यु शब्द देखो। मोक्ष हो गया हो। मुमताजमहल-सम्राट शाहजहांकी प्रियतमा महिपी । मुमूर्वा ( सं० स्त्री०) मतुमिच्छा मृ सन्, अ-टाप । मर इसका असल नाम आर्जु मन्द बानो बेगम था। लोग णेच्छा, मरनेको अभिलापा। इसे कुदसिया कहा करते थे। इसका पिता वजीर मुमूर्षु (सं० त्रि०) मत्त मिच्छुः मृ-सन् तत-उ। आसन्न | आसफ नूरजहाँका भाई था। १५९२ ई०में यह पैदा हुई मृत्यु, जो मर रहा हो। और १६१२ ई० में सम्राट शाहजहांके साथ ध्याहो गई। "व्यक्तं त्व मत कामोऽसि योऽतिमात्रं विकत्थसे। इसके गर्भसे अनेक सन्तान उत्पन्न हुई थीं। दक्षिण- मुमूर्पणां हि मन्दात्मन् ननु स्युविक्लवागिरः ॥" | देशके वुहानपुरमें रहते समय इसकी छोटी लड़की जीवके मुमूर्षु काल उपस्थित होने पर शालग्राम दहरा आरा १६३१ ई०की ७वीं जुलाईको पैदा हुई । इस- शिलाके निकट उसे ले जाना चाहिये और वहां तुलसी- के कुछ घंटे बाद ही इसका देहान्त हुआ। जैनावादके वृक्ष स्थापन कर उसे भगवन्नामामृत श्रवण कराना | सुरम्प उद्यानमें इसकी लाश पहले दफनाई गई थी। चाहिये। क्योंकि, जहां शालग्रामशिला रहती है, वहां कुछ वर्ष वाद वह कङ्कालमय देहतरु आगरानगर लाया ख्यं भगवान् विष्णु विराज करते हैं। उस जगह और वहीं गाड़ा गया। सम्राट शाहजहाँ अपनी प्रिय- जीवके प्राणत्याग करनेसे वह विष्णुपदको पाता है। तमा महिषीके प्रति ऐकान्तिक अनुराग दिखानेके लिये जहां शालग्रामशिला रहती है, वहांसे एक कोसके मध्य | उसके मकवरेके ऊपर विचित्र मर्मर पत्थरका वना • यदि जीव प्राणत्याग करे तो वह स्थान कोकट (मगध) देश एक सुरम्य और अत्याश्चर्य स्मृतिस्तम्भ स्थापन भी क्यों न हो, तो भो जीवको वैकुण्ठकी प्राप्ति कर अपनी प्रीति और अनुरक्तिका जाज्वल्यमान निद- होती है। . र्शन छोड़ गये हैं। यही पृथिवीको मनुष्यकीर्तिका __ तुलसीकाननमें यदि जीवका प्राणत्याग हो, तो उस भाश्चर्य स्मृतिमन्दिर ताजमहल है। इसके बनानेमें के सभी पाप दूर होते हैं तथा वह विष्णुलोकको जाता है। मुमूर्घकालमें जोवके मुखमें तुलसीदल और गङ्गा तुलसीकानने जन्तोर्यदि मृत्युभवेत् क्वचित् । जल देना उचित है। इससे उसके सभी पाप नष्ट होते स निर्भत्स्य यम पापी लीलयैव हरि विशेत् ॥ हैं और अन्तमें उसे सद्गति होती है। प्रयाणकाले यस्यास्ये दीयते तुलसीदलम् । मुमूर्ष काल उपस्थित होने पर उसे गङ्गाके किनारे निर्वाणं याति पक्षीन्द्र पाएकोटि युतोऽपि सः॥ ले जाना उचित है। क्योंकि, गङ्गामे प्राणत्याग करनेसे कूर्मपुराणम्- मोक्ष होता है। काश में जल वा स्थल जिस किसी स्थान-[. गङ्गायाञ्च जले मोनो वाराणस्या जले स्थले । में मृत्यु होनेसे जीव मोक्षको पाता है। सागरसङ्गममें जल, जले स्थले चान्तरीक्ष गङ्गासागरसङ्गमे । स्थल और अन्तरीक्ष कहों पर मृत्यु क्यों न हो, मुक्ति गङ्गायां त्यजतः प्राणान् कथयामि वरानने । अवश्य होती है 12 गङ्गातटसे दो कोस तकका स्थान कर्णे तत्परमं ब्रह्म ददामि मामकं पदम् ॥" "शालग्राम शिक्षा यत्र तत्र सन्निहितो हरिः।

  • तथा-

'तीरात् गन्यूतिमात्रन्त परितः क्षेत्रमुत्त्यते। तत्सन्निधौ त्यजेत् प्रायान याति विष्णोः परं पदम् ॥ अत्र दानं जपो होमो गङ्गायां नात्र संशयः । लिङ्गापुराण- अत्रस्थाखिदिव यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवाः ॥" शालग्रामसमीपे तू क्रांशमा समन्ततः। (शुद्धितत्त्व मुमघुकृत्य) कीकटेऽपि मृतो याति गैकुण्ठभवनं नरः ॥" कोकटो मगधः