पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१०६

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मुरलोगन-मुराद (श्य सुलतान) २०३ "बादयन मुरलीं कृष्णः शृङ्ग वेनु तथा परम् । । मुरहा (हि: वि०) १ जो मूल नक्षत्रमें उत्पन्न हुआ हो। कात्यायनीं नमस्कृत्य हरिः पद्मदलेक्षणः ॥" ऐसा वालक माता पिताके लिये दोपो माना जाता है। (राघातन्त्र) | २ जिसके माता पिता मर गए हों, अनाथ। ३ उपद्रवी, २ आसाममें होनेवाला एक प्रकारका चावल।। नटखट। मुरलीगञ्ज-विहार और उड़ोसाके भागलपुर जिलान्तर्गत मुरहारो (सं० पु.) मुर दैत्यको मारनेवाला विष्णु वा एक नगर। यह दाउस या कोशो नदोके किनारे वसा श्रीकृष्ण । हुआ है। यहां नमक, चीनी, रुई, सोरे और लोहेका जोरों मुरा (स' स्रो० ) मुरति सौरभेन वेष्टयति मुर इगुपध- वाणिज्य चलता है। नदो तीरवती घाटोंका सौन्दर्य | त्वात् क टाप् च । १ एक प्रसिद्ध गंधद्रव्य जिसे एकाङ्गो बड़ा ही मनोरम है। या मुरामांसो भी कहते हैं। पर्यायः-तालपणी, दैत्या, मुरलीधर (स० पु०) धरतोति धृ-अच, मुरल्याः धरः। गन्धकुटी, गन्धिनी, गन्धकटो, सुरभि, शालपर्णिका। श्रीकृष्ण । गुण-तिक्त, शीतल, स्वादु, लघु, पित्त और वायुनाशक, "वैकुण्ठदक्षिणे भागे गोलोकं सर्वमोहनम् । ज्वर, असृक, भूनादिदोष तथा कुष्ठ और कासनाशक । तत्र व राधिका देवी द्विभुजो मुरलीधरः ॥" ( तन्त्रसार) | इसका मन गुण-अलक्ष्मी, रक्ष और ज्वरनाशक । २ मुरलीधर-एक कवि, कालिदास मिश्रके पोत्र । कवीन्द्र कथासरिसागरके अनुसार उस नाइनका नाम जिसके चन्द्रोदयमें इनका नामोल्लेख है। इनकी कविता वड़ो | गर्भसे मनन्दके पुत्र चन्द्रगुप्त उत्पन्न हुए थे। . . ललित होती थी। उदाहरणार्थ एक नीचे देते हैं। | मुराड़ा (ह. पु०) जलती हुई लकड़ी, लुभाठा । . तू मेरे नित राम नाम मन रे | मुराद ( अ० स्त्रो०) १ अभिलाषा, इच्छा। २ अभिप्राय, गोकुल गरुड़ स्वामी गिरिधर रे। आशय। नरोत्तम निरञ्जन निराकार तू दर दर मुराद (१म सुलतान)-तुरुष्कका ओसमान वंशीय तीसरा दर दर दरनजा मुरलीधर का नित तू बर रे॥ सम्राट। यह मुराद खां गाजी और स्वावादगार रूम मुरली मनोहर (स० पु० ) श्रीकृष्णका एक नाम । नामसे मशहूर था। १३५६ ई० में पिता अर्खानके मरने मुरलोवाला (हिं पु०) श्रीकृष्ण । पर यह तुर्क सिंहासन पर बैठा ! यह कठोर प्रकृतिका मुरवा ( हिं० पु० ) १ पैरका गिट्टा, एडीके ऊपरको हड्डी आदमी था। अपने पुत्र और अधीनस्थ कर्मचारियों के क चारों ओरका घेरा । २ एक प्रकारको कपास जो तान | प्रति यह निष्ठुरताको पराकाष्ठा दिखा गया है। चार वर्ष तक फलती है। यह एक विख्यात योद्धा था। ३७ युद्धोंमे जयलाभ मुरवैरो ( स० पु० ) मुरस्य वैरो। मुरारि, श्रीकृष्ण । करके इसने मुसलमान साम्राज्यका विस्तार किया था मुरवत (अ० स्त्रा०) मुरोवत देखो। १३६० ई०में दलवल के साथ यूरोप जा कर पडियानोपल- मुरशिद (म. पु०) १ गुरु, पथदर्शक। २ पूज्य, मान में राजधानी वसाई। अङ्गरेजो इतिहासमें यह आमु. नीय। ३धूत्ते, चालाक। राय रूम नामसे मशहूर है। १३८६ ई में जब इसकी मुरसुत (सपु०) मुर दैत्यका पुत्र वत्सासुर। उमर ७१ वर्षकी थी तव रणक्षेत्रमें एक योद्धाके हाथसे मुरस्सा (अ० वि०) जाड़त, जड़ा हुआ। इसकी मृत्यु हुई। यह (किसीके मतसे इसका पिता) मुरस्साकार ( अ० पु०) वह जा गहनोंमें नग या मणि जानीसारी नामक दुई मुसलमान सेनादलको स्थापन जड़ता हो। कर गया है। मुरस्साकारो (अ० स्त्री० ) गहनोंमें नग वा मणि जड़ने- मुराद (श्य सुलतान)-तुरुष्कका एक सम्राट् । पिता वाला, जड़िया। १म महम्मदकी मृत्युके वाद १४२२ ई०में यह तुर्कके मुरहा ( स०१०) मुर हन्ति हन क्विप। विष्णु, कृष्ण सिंहासन पर बैठा। इसने ही सबसे पहले रणक्षेत्र में