पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१०९

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मुरादाबाद देख मोरटको भागा । उसके दश दिन बाद बरेली। यहां अवध रोहिल खण्ड रेलवेके रहने तथा चन्दौसो ब्रिगेड मुरादाबाद पहुंचा। उन्होंने स्थानीय विद्रोहियों- विलावी, कुण्डारखि, खरगपुर, मुरादावाद, मोगलपुर, को साथ ले दिल्ली पर चढ़ाई की। जून मासके अन्तमें ; मुस्ताफापुर और काण्ड आदि नगरों में स्टेशन होने के • रामपुरको नवाबने अंग्रेजों की ओरसे इस जिलेको शान्ति । कारण रेलपथ द्वारा वाणिज्यकी बड़ी सुविधा हो गई रक्षाका भार ग्रहण किया। किन्तु विद्रोहियोंके ऊपर वे , है। इसके सिवाय मोरठ, वरेली, अनुपशहर और नैनी. अपना प्रभुत्व जमा न सके । मजू खां नामक एक ताल आदि स्थानों में जाने आनेके लिये पक्की सड़क है। विद्रोहि-नेता यथार्थमें मुरादाबादका शासनकर्ता था। चन्दौसीसे अलीगढ़ तक रेलवे लाइन दौड़ गई है। • १८५८ ई०में जेनरल जोन्सके अधीनस्थ ब्रिग्रेड सेनादल इस जिले में १५ शहर और २४५० ग्राम लगते हैं। के पहुंचने पर यहां शान्ति स्थापित हुई। पीजे अहारेजों। जनसंख्या १० लाखसे ज्यादा है। शहरों में मुरादावाद, को देखरेख में इस स्थानकी बहुत कुछ उन्नति हुई है। चन्दौसी, अमरोहा और सम्बल प्रधान है । यहाँको _मुरादाबाद नगर यहाँका विचार सदर है। अलावा, " मुख्य उपज गेहू, जुआर, वाजरा, धान, ईख, कपास, इसके अमरोहा, चन्दोसी, सम्बल, सराइतरणी, हसनपुर, ' । तेलहन और पटसन है । विद्याशिक्षामें यह जिला वछरौन, मौनगर, मिर्सा, ठाकुरद्वार, धानवारा, अघवनपुर, बहुत पीछा पड़ा हुआ है । अभी कुल मिला कर मोगलपुर और नरोलो नगर आदिमें स्थानीय वाणिज्य , '. ३५० पवलिक और ३०० प्राइभेट स्कूल हैं । मुरादा- । बाद शहर में शिक्षकके लिये नारमल स्कूल है। स्कूलके को बहुत कुछ उन्नति देखो जाती है। अलावा १५ अस्पताल भो हैं। गङ्गा और रामगङ्गा नदी में बाढ़ आ कर कभी कभी २ मुरादावाद जिलेकी तहसील । यह अक्षा० शस्यादिको नष्ट कर देती है। अङ्ग्रेजोंके दखलमें आने २८ ४१ से २६८३० तथा देशा० ७८ ४२ से ७६ पृ. के बादसे ले कर आज तक यहां छः बार दुर्भिक्ष हुआ है। के मध्य अवस्थित है। रकवा ३१३ वर्गमोल और १८०३ ई० में यहां प्रथम बार दुर्भिक्ष हुआ । जलाभाव- | आवादी ढाई लाख के करीब है। इसमें ३ शहर और रूप प्राकृतिक दुर्घटना इसका मूल कारण नहीं थी। इस | २९२ ग्राम लगते हैं। समय महाराष्ट्र सेनादलने यहां ऊधम मचाया था जिससे ३ मुरादाबाद जिले का प्रधान शहर। यह अक्षा० 'अनाजको वड़ी क्षति हुई थी। इसके बाद पिण्डारी २८ ४१ उ० तथा देशा० ७८.४६ पू०के मध्य अवस्थित डकैत-सरदार अमार खांके अत्याचारसे भो इस स्थान है। यह शहर कलकत्तासे रेलवे द्वारा ८६८ मोल और को दुरवस्था दूनी बढ़ गई थी। अनन्तर १८२५ और बम्बईसे १०८७ मील दूर पड़ता है। जनसंख्या दिनों दिन १८३७. ८ ई०में यहां द्वितीय और तृतीय बार दुर्भिक्ष बढ़ रही है। अभी कुल मिला कर ७५ हजारसे ऊपर दिखाई दिया। सिपाहीविद्रोहने देशको और भी है जिसमें मुसलमानोंको संख्या ज्यादा है। १६२४ ई०में उजाड़-सा बना दिया। १८६४ ई० में चौथी बार दुर्भिक्ष- सम्राट शाहजहान द्वारा नियुक्त केतरके शासनकत्तो रुस्तम देव फिरसे उपस्थित हुए । इस समय मुरादावादकं खाने युवराज मुराद बफ्लके नामसे इस नगरको वसाया। अधिवासियोको आमको गुठली खा कर प्राणधारण | रोमगङ्गाके किनारे रुस्तम खां एक दुर्ग बना गया है। करना पड़ा था। इसके सिवा १६३४ ई०मे निर्मित जुम्मा मसजिद और इसके बाद १८६८-६६ और १८७७ ७८ ईमें फिरसे शासनकर्ता अजमउल्ला खांका मकबरां देखने लायक दुभिक्षका सूत्रपात हुआ। गवर्मेण्टके बहुत यत्न करने हैं। शहरमें एक म्युनिसिपल हाल, एक तहसीली भालागाका अन्नकष्ट दूर नहीं हुआ। इस समय अस्पताल और एक गिरजा है। १८८१ ई०में स्टेशनके अर्थ और खाद्य सामग्रोके अभावसे राजपूताने आदि समीप एक अनाथालय और कुष्ठाश्रम खोला गया है। दूर देशवासी बहुतसे लोग यहां आये जिससे यहांके | शहरमें हाई स्कूल, सिकेण्डो और प्राइमरी स्कूलके दुभिक्षने और भी भोषण आकार धारण किया। सिवाय शिक्षकोंका एक ट्रेनिङ्ग स्कूल भी है।