पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/११०

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३०७ . पुरादी-मुरारिदानं . मुरादी (फा० पु०) वह जो कोई कामना रखता हो, मुरारिगुप्त-चैतन्य महाप्रभुके एक शिष्य। ये वैद्य. आकांक्षी। वंशीय और श्रीचैतन्य महाप्रभुके एक देशवासी थे। चैतन्य मुराफा (फा० पु० ) छोटो अदालतमें हार जाने पर वड़ी! भागवतमें लिखा है, कि मुरारिका घर श्रीहट्टमें था। अदालतमें फिरसे दावा पेश करना, अपील। ___ मुरारि उच्च शिक्षा पानेके लिये नवद्वीप गये और मुरार ( हि० पु.) कमलनाल, कमलकी जड़। । धीरे धीरे वहांके अधिवासी हो गये। मुरारि और मुरार-हिन्दीके एक कवि, हास्यरसकी यह बहुत-सी निमाई पण्डित वचपनमें गङ्गादास पण्डितके टोलमें एक कविता लिख गये हैं जिनमेंसे एक नीचे देते हैं। ही साथ पढ़ते थे । वैष्णव अन्धमें मुरारि और निमाईके मोरे भोरे ही आये हैं सैंयां। सम्बन्धमें बहुत सी गल् लिसो हैं। में दौर झरटके परि हू यां ____ठाकुर नरहरि जिस प्रकार सबसे पहले गौरलीला. डार फिरों गर बहियां ।। का पद रच कर यशस्वी हो गये हैं, मुरारिने भी सबसे बहुत दिनन पाछे पायों में सैंया । पहले उसी प्रकार गौरलीलाका आदि ग्रन्थ लिखा है। नित उठ लेहों बलैया । । उस ग्रन्थका नाम 'चैतन्यचरित' है जो संस्कृत भाषामें ... हाहा करत हूं कर जोरत । १४३५ शकमें रचा गया है। हूँ-अब न यिसारो गुसैयां ॥ "चतुदर्शशताब्दान्त पञ्चविंशतिवासरे। अन्तकाल जिन तो। गुसयां आषाढ़े सितसप्तम्यां ग्रन्थोऽय पूर्णतां गतःn" जैसे गही मोरि बहियो । (चैतन्यचरित) • मुरार पिया अब लाज राखिया श्रीचैतन्यदेवकी उमर जव २८ वर्ष थी उसी समय __सन एक ही ठयां ॥ | मुरारिने उक ग्रन्थ लिखा था। वे वचपन होसे महाप्रभु. मुंगरई-ङ्गालके मुर्शिदाबाद जिलान्तर्गत एक बड़ा | के साथी थे, प्रभुको जो सब अद्भुत घटनाएं इन्होंने गांव। यह अक्षा०२४२७१५उ० तथा देशा० ८७ । आंखों देखी थी उन्हींका अधिकांश इस प्रथमें लिखा ५४ पू०के मध्य विस्तृत है। यहां इष्ट-इण्डिया रेलधेका। , गया है। इसलिये ऐतिहासिक मशगे इस ग्रन्थका मोल एक स्टेशन है। । ज्यादा है। मुरारि ( पु० ) मुरस्य अनिः। श्रीकृष्ण । • "मुगः क्लेशे च सन्तापे कर्मभीगे च कर्मिणाम् । लोचनदास ठाकुरका चैतन्यमङ्गल प्रधानतः इसी 'दैत्यभेदेऽप्यरिस्तेषां मुरारिस्तेन क्रीर्तितः॥" , ग्रन्थके आधार पर लिखा गया है। वे अपने प्रन्धमें (ब्रह्मवैवर्तपु० श्रीकृष्णजन्मख. ११० अ०। इस वातको खोकार कर गये हैं। मुर शब्दका अर्थ क्लेश, सन्ताप, कर्मियों का कर्मभोग मुरारिदान-हिन्दोके एक प्रसिद्ध कवि । ये जोधपुरनरेश और दैत्यभेद है। भगवान् विष्णु इन सबके नाश करने के माश्रयमें रहते थे और उनके राज्य के एक ऊंचे कर्म: वाले हैं, इसीसे इनका नाम 'मुरारि' पड़ा। इस मुरारि चारी भी थे। इन्होंने यशवन्त यशोभूषण नामक अल- नीमका स्मरण करनेसे जीवके क्लेश और सन्ताप आदि कारका एक उत्तम तथा भारो अन्य ८५१ पृष्ठोंका संवत् गति शीघ्र नष्ट होते हैं । वामनपुराणकं ५३ ५८ अध्याय १९५० के लगभग बनाया । यह ग्रन्थ संवत् १९५४ ई०में में भगवान् विष्णु द्वारा मुर नामक राक्षसके मारे जानेका | प्रकाशित हुआ। आप संस्कृत के एक अच्छे पण्डित थे और अलङ्कारों के शुद्ध लक्षण निरूपण करनेमें आपने अच्छा २ अनर्घ राघव नामक ग्रन्थ के प्रणेता। इस प्रश्वका श्रम किया है तथा उत्तम पाण्डित्य दिखाया है। करीव नामोल्लेख नवम शतकके रत्नाकर कविने अपने हरविजय २५ वर्ष हुए, भाप इस लोकसे चल बसे । आपको कविता नामक काव्य में किया है। | सरस होतो थी, उदाहरणार्थ एक नीचे देते हैं।