पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१११

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मुरारिदासजी-मुराद "कैसी अलीको मली यह बानि है देखिये पीतम ध्यान लगाय के। बड़े बड़े प्रतापी राजा हुए हैं जिन्होंने सम्वत् ५४० से छोक गुलाव मधूयॊ मुरारि सु वेलि नवेलिनमें विरमाय के॥ ७८४ तक चित्तोरका शासन किया। चित्तोरके मौर्यवंशीय खेलत केतकी जाय जुहीन मैं केलत मालती वृन्द अधाय के। । महाराज मानको वाप्पा रावलने जिसकी माता प्रमार और आनफों जोवत खोवत दौस पै सोवत है नलिनी संग माग के ॥" पिता गहलोत थां, अन्य सामन्तोंकी सहायतासे गद्दोसे मुरारिदासजी-एक कविराज । ये सूरजमल कविराजके उतार कर स्वयं राज्य करना प्रारम्भ किया। आज कल दत्तक पुल थे। इनका संवत् १८६५में 'दी में जन्म हुआ। मुराव लोग इन्हों मौर्य महाराजाओंके वैशज हैं। मृत्यु-संवत् १६६४ । ये संस्कृत; प्राकृत, डिंगल मुराव नामनिरुक्तिके सम्बन्ध मतभेद देखा जाता तथा हिन्दी भाषाके अच्छे ज्ञाता और कवि थे। इन्होंने है। ब्रक साहव मूली शब्दसे मुराव नामकी उत्पत्ति ● दोनरेश रामसिंहजीकी आज्ञासे वंशमास्करको पूरा बतलाते हैं, पर इसे थे लोग युक्तिसंगत नहीं समझते। किया जिस पर इन्हें बड़ा पुरस्कार दिया गया। इन्होंने क्योंकि मूलीको खेती प्रायः सभी जाति करती हैं। फिर वंशसमुच्यय तथा डिंगलकोष नामक ग्रन्थ वनाये। इन- कोई कहते हैं, कि चौहानवंशमें मुरारि दास आगरेको की कविता प्राकृत-मिश्रित ब्रजभाषामें होती थी। . राजा था और उसके बंशजोंका नाम मुराव हुआ। परन्तु मुरारिभट्ट (सं० पु०) १ सारसंग्रहके प्रणेता। २ तर्क यह भो ठीक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि इससे मुरावं भाषाटीकाके रचयिता। ये गङ्गाधरके पुत्र और तर्क | जाति चौहानोंको शाखा ठहरती है। भाषा प्रकाशिकाके प्रणेता कौण्डिल्यके गुरु थे। ___इन लोगों का कहना है, कि "मुराव लोग मौर्य । मुरारिमिश्र (सं० पु०) १ शङ्कराचार्यके एक प्रतिद्वन्द्वी। सम्राट महाराज चन्द्रगुप्त होके वंशज है और माधवकृत संक्षेप शङ्करजय ग्रन्थमें इनका उल्लेख है। २ यह मौर्य-चंशज ही देशमें भिन्न भिन्न स्थानों में फैल कर व मानत न्यायकुसुमाञ्जलिक एक टोकाकार | ३ भिन्न भिन्न नामोसे प्रसिद्ध हो गये। मौर्य शब्द देखो | अङ्गत्वनिरुक्ति नामक मीमांसा ग्रन्थके रचयिता । ४ । फर्फ खावादके समीप ही संकोसा नामका एक प्राचीन इष्टिकालनिर्णय, पर्वनिर्णय, पारस्करगृह्यसूत्र मन्त्रभाष्य, स्थान है। वहां मुरावोंके पूर्वज राजा शाक्यने तपस्या प्रायश्चित्तमनोहर और शुभकर्म-निर्णयके प्रणेता । शेषोक्त की थी। वही राजा शाक्य विद्वानों द्वारा शाक्यमुनि प्रन्थ इन्होंने राजा त्रिविक्रमनारायणकी सभामें रह कर कहे जा कर सम्बोधन किये गये हैं और उन्हींकी संतान लिखा था। आज कल 'शाक्यवंशी मुराव' याने 'सकसना मुराव'-का मुरारि श्रीपति सार्वभौम-पदमारी नामक संस्कृत अभि- एक भेद है। वहां राजा शाक्यमुनिका आश्रम था। धानके प्रणेता। मेवाड़ राज्यके अन्तर्गत वित्तीर भी मौर्य वंशजोंका मुरारी (सं० पु० ) मुरारि देखो। वसाया हुआ है। इसीके समीप चन्द्रगुप्त को "मौर्य मुरारे ( सं० पु०) हे मुरार। न यानशाला' थी जहांके कारखाने में 'मौर्ययान' बनते थे। मुराव (मौर्य )--कृषिजीवि जातिविशेष । ये लोग | यहां ही मौय्यराजे विशेष रूपसे रहते थे। यह स्थान अपनेको सूर्यवंशी क्षत्रिय वतलाते हैं। मुराई, पहले मौर्णयानके नामसे प्रसिद्ध था, पर अभी 'मोरवन' मुराऊ और मोरी आदि शब्द इसके रूपान्तर कहाता है।" हैं। शुद्ध संस्कृत शब्द 'मौर्य है जो देश देशकी भाषा और भिनभिन्न वोला कारण पूर्वी बोली में परिणत हो। मुरावों के भेद-जाति अनुसन्धानकारियों के मतसे कर 'मुराव' हो गया है। अग्निकुलके प्रमारवंशको ३५ मुराव, काछो और कोइरो यह तीनों जातियां एक हो शाखाएं हैं जिनमेसे एक मौर्य नामकी शाखा है। इस हैं, केवल नाममात्रकी भिन्नता है । यह सब एक ही वंश- की शाखाएं है। यह तीनों जातियां अपनी चाल ढाल मौर्यवंशमें सम्राट चन्द्रगुप्त और अशोक आदि चक्रवती और रीति रिवाजके कारण एक प्रतीत होती हैं। इनमें राजे हुए है। उनको राजधानी पाटलीपुत्र (पटना)मे थी। गहलोत-वंशके राजाओंसे पूर्व चित्तोरमें भी इस वंशके' दूसरेके साथ विवाह तथा खान-पान आदिका