पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/११२

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मुरीसा.-मुरैग संम्बन्धं होता है । इन जातियों के भेद और उपभेद । धर्मविषयमें घे लोग बहुत सावधान रहते हैं । मैथिलं प्रायः एक हीसे हैं। कुल मिला कर २३८ भेद हैं, । ब्राह्मण इनकी पुरोहिताई करते हैं, इसीसे इन्हें समाज- जैसे, भदोरिया, भगत व भक्त, हरदियां, काछी, ' का निन्दाभाजन नहीं होना पड़ता। छोटे देवतामें कन्नौजिया, कछवाहा, शाक्प्रसेनी ( सक्सेना ), उकुरिया। वन्दी, परमेश्वरी और पांचपोरं हो प्रधान हैं। जहां सनराहा, वागवानं, वकन्दर, मोठा, भुंकरवाल, पूर्विया, ठाकुरपूजा होती है, उस घरको ये लोग गोसाईघरं बहमन, ठक्कलिया, सक्टा, पछवाहा, मालिकपुरी कहते हैं। जव कभी जरूरत पड़ती, तब उस स्थानका श्रादि। गोवरसे लीप पोत कर फेल, पान और मिष्ठानादिसे सूर्यावंशमें महानन्दके पुत्र अत्यन्त पराक्रमी चन्द्रगुप्त ' देवताकी पूजा करते हैं। नामक राजा हुए। वे श्रेष्ठ धर्मका अवलम्बन करने । मरियारि लोग प्रायः कुर्मियोंके जैसे हैं। ब्राह्मण वाले, गुणझं कृतज्ञ और वेदशास्त्रवेत्ता थे। चन्द्रगुप्त और इनके हाथका जल और मिष्ठान्नादि ग्रहण करते हैं। प्रियदशी देखो। इन्हीके वंश आज कलकी मुराव जाति' खाद्यादि हिन्दुओं सा है। जो केवल नाव खे कर अपनी अपनी गुजर करते है वे ही लोग शराब पीते हैं। भागल. मुंरासा (हिं० पु. ) कर्णफूल, तरकी। पुरके मुरियारि अपनेको मुन्नाव कहते हैं और खेतीवारी मुरासापुर---अयोध्या प्रदेशके प्रतापगढ़ जिलान्तर्गत द्वारा जीविका निर्वाह करते हैं । धीरे धोरे इनको एक नगर । यह रायबरेलीसे माणिकपुर जानेके रास्ते । संख्या बढ़ती जा रही है। आरा जिलेमें इनको संख्या - पर अवस्थित है। यहां स्थानीय उत्पन्न अनाजों-, वहत ज्यादा है। मुर, भागलपुर, पूर्णिया, मालदह की विक्रीके लिये एक वड़ो हाट है । प्रति वर्ष दुर्गापूजाके । और सन्थाल परगने आदि स्थानों में इन लोगों का समय एक मेला लगता है। सूती कपड़े की छौंट तैय्यार करेगा । होनेके कारण यह स्थान प्रसिद्ध है। । मुरीद ( अ० पु.) १ शिष्य, चेला । २ वह जो किसीका मुरासा रकम-लखनऊबासी एक मुसलमान कवि । इसका, अनुकरण करता गा उसके आज्ञानुसार चलत हो, अनु-- असल नाम मीर महम्मद आता हुसेन खां था। नवाव । यायी। मनसूर अली खाँ सफदरजङ्गाके आश्रयमें रह कर इसने मुरु (सं० पु०) १ देशभेद, एक देशका नाम । २ लौह- जराइत अगरेजी तारीख, काशिमी, इनसाए तहीमन और नौतरज-मुरासा तथा १७७५ ई०में नवाव मासक विशेष, एक प्रकारका लोहा । ३ गुल्मभेद, एक प्रकारकी झाड़ी। उद्दौलाके राजत्वके प्रारम्भमें उर्दू भाषामें चहार-दरवेश- की रचना की। " | मुरुआ (हिं० पु० ) पड़ोके ऊपरका घेरा, पैरका गड़ा। ' मुरियारी-विहारकी मल्लाह जातिकी एक श्रेणी। कोई मुरुकुटिया (हिं० वि० ) मरकट देखो। कोई इन्हें केवट जाति कहते हैं। प्रवाद है, कि इनके मुरुण्डक (सं० पु० ) उद्यान के अन्तर्गत पर्वतभेद पूर्वपुरुष कालिदास दक्षिण देशसे विहार में आये थे। मुरुतानदेश (सं० पु०) देशभेद, शायत मूलतान । इनमें वाल और यौवन दोनों प्रकारका विवाह प्रचलित | मुरुदेश (सं० पु० ) देशविशेष, शायत मरदेश। है। साधारणतः वचपनमें ही कन्याका विवाह हुआ मुरेठा (हिं० पु०) १ पगड़ी, साफा | २ मुरैठा देखो। करता है । वहुविवाह अवस्थाके अनुसार प्रचलित | मुरेर (हि० स्त्री० ) मरोड़ देखो। है। जो जितनी पल्लियोंका भरण पोषण करने में समथ मुरेरना (हि० कि०) मडोरना देखो। है वह उतने ही विवाह कर सकता है। सगाईके मतसे मुरेरा (हिं० पु० ) १ मुंडेरा देखो। २ मरोड़ देखी। विधवा-विवाह प्रचलित है। मृत स्वामीकं कनिए भाई. मुरैठा (हिं पु० ) नावको लम्बाईमे चारों ओर धमी के रहते विधवा उसोसे ध्याह करती है। इनमें विवाह- हुई गोट जो तीन वार इञ्च मोटे तख्तोंसे बनाई जाती हैं च्छेद या तल्लाक देनेका दृष्टान्त नहीं है। । और गूढाके ऊपर रहती है। Vol, XVIII. 28