पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/११४

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मुर्मि निषिद्ध गोत्रको कन्यासे विवाह करे, नो वह उसी समय है। लांमागण सभी धर्म कार्योंमें पुरोहिताई करते हैं। समाजसे वहिष्कृत और जातिच्युत होता है । नेपालमें पूर्वकालकी लुप्त प्राय देवदेवीके मध्य दो एकका नाम इससे और भी कठिन दण्ड देनेकी प्रथा है। विवाह करने देखा जाता है। प्रस्तरमय देवता थङ्गबलझो आज भी वालेको पकड़ कर दासरूपमें भिन्न जातिके हाथ वेव पूजे जाते हैं। इस प्रतिमाको नये कपड़े से ढक कर लिया जाता है अथवा कभी कभी उसका सिर काट लिया और उसके ऊपर बावल छिड़क कर पूजते हैं। प्रतिवर्ष जाता है। मुर्मिगण भोटिया, लेप्चा, निमुस, खामुस, : भांद्रमासमें वकरे और मुरगेको फाट कर उसका रक यक्ष, मङ्गन, गुरु और सनोयरों के साथ 'मिथ' (मिताली), उस प्रतिमा पर ढाला जाता है। ठीक इसी प्रकार वा भ्रातृत्व संस्थापन कर सकते हैं। पुर्भुज देवता वा धनाधिष्ठात्री देवताको पूजा होती है। इन लोगोंके मध्य यौवन-विवाह प्रचलित है। विवाह- यह वृक्ष पर वास करते हैं। इन लोगोंका विश्वास है के पहले पुरुष और स्त्रीके एकल सहवास करनेसे कोई । कि जो उस देवताको पूजा नहीं करता उसे ज्वर और दोष नहीं माना जाता। किन्तु इस समय यदि कोई वातव्याधि खूब सताती है। दुर्गा पूजाके समय मध्यम कुमारी गर्भवती हो जाय, तो उसे गर्भोत्पादकका नाम पाण्डव भोमकी पूजा होती है। इस पूजामें मैं से, करे, कह देना पड़ता है। पोछे वह गर्भोत्पादक नगद ५० या ' मुरगे और हंस आदिकी वलि दी जाती है । अन्य देवता- ६० रुपये तथा अलङ्कारादि दे उस गर्भवतीसे विवाह के मध्य 'सेरकिझों' 'गिय' 'चांग्रेसी' प्रधान हैं। अलावा करता है। कन्याके घरमें रातको विवाहकार्य सम्पन्न : इसके वहुनसे छोटे छोटे ग्राम्य देवता भी हैं। उनकी होता है। लांमागण पुरोहितका काम करते हैं तथा वर-। संख्या कितनी है, ब्राह्मण लोग आज तक भी स्थिर न कन्याके कपालमे धान और दहीका तिलक दे कर आशी कर सके हैं। र्वाद देते हैं। उस समय वर कन्याकी मांगमें सिन्दूर। इनके मध्य जो धनी हैं, वे शवदेहको जलाते हैं और लगाता है। पोछे लामा पुरोहित दोनोंके कपालको एक टुकड़े हड्डोको किसी निभृत गुहामें गाड़ देते हैं। सटा देते हैं। यही विवाहका प्रधान अङ्ग समझा जाता साधारण लोगोंकी लाश गाडी जाती है। कत्रमें लाश- है। बहुविवाह प्रवलित रहने पर भी अवस्थाके अनु-1 के सिरको उत्तरकी ओर करके मुहमें आग देते हैं। पीछे सार लोग प्रायः यह काम नहीं करते । विधवाओंका : कनके चारों ओर एक पत्थरको दीवार खड़ी की जाती नियमपूर्वक विवाह नहीं होता, उसे रखेली तौर पर है। उसके ऊपर एक पताका रहती है। सिर्फ सात दिन रखा जाता है। इससे उत्पन्न सन्तान विवाहिता स्त्रा' तक ये लोग अशौच मानते हैं। अशौचकालमें कोई भी के पुत्रोंकी तरह उत्तराधिकारिरूपमें गिनी जाती हैं। नमक नहीं खाता । आठवे दिन मांस, चावल, अंडे, व्यभिचारिणो और अप्रियभापिणी होनेसे सभी स्त्रोत्याग केले और मिष्टान्नादि ले कर कत्रके समीप श्राद्धकर्म कर सकता है। पति परित्यक्ता स्त्रोसे फिर कोई विवाह ! करते है । पीछे स्वजातीय व्यक्तियोंको भोज दिया नहीं कर सकता। । जाता है। मृत व्यक्तिके एक खण्ड कपड़े को घरमें रखते पुत्रगण समानभावमें सम्पत्तिके अधिकारी हैं।। हैं। छः मास तक प्रति दिन मृत व्यक्तिके पुत्रको उस , पुत्रके नहीं रहने पर कन्या सम्पत्तिकी हकदार होती' कपड़े में प्रेतके लिये भोजन देना होता है। छः मासके है। पतिपुत्रहोना विधवाका भरणपोषण सभीको करना, वाद लामा आ कर सपिण्डोकरण करते है। पड़ता है। मुर्मि लोग प्रधानतः खेतीवारी द्वारा अपना गुजारा . धर्मसम्वन्धमें इन्हें कोई निर्दिष्ट संज्ञा नहों दो जाती। चलाते हैं। बहुतेरे पुलिसका तथा गुर्खा सेनादलमें हिन्द और बौद्धधर्मके मेलसे इनके धर्मको उत्पत्ति काम करते हैं। नेपालमें ये लोग योद्धजातिके मन हुई है । इनके लामा धर्म में हिन्दूप्रभाव दिखाई | गिने नहीं जाते। ७० वर्ष पहले जङ्ग वहादुरने मुर्मियों- देता है। सभी पताकाओंके ऊपर "ओम्" लिखा रहता | को ले कर किरान्ति सैन्यदलका संगठन किया था।