पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/११७

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११४. मुर्शिदकुली खां मुर्शिदकुली खाँने उसी समय दोवानखाना लौट कर अभी उसे बंगालमें मिला लिया तथा अपने जमाई सुजा सरकारी कर्मचारियोंको विद्रोही सैन्यकी यह घटना उद्दोन खाँको उड़ीसाका नायव दीवान बना कर भेजा। अच्छी तरह लिए रखनेको हुकुम दिया। पीछे उन अभी चे विश्वासी हिन्दू अमलाओं के द्वारा प्रत्येक चकले लोगोंका वाकी वेतन चुका कर सैन्यश्रेणोसे उन्हें अलग और मौजेके राजख वन्दोवस्तके लिये वद्ध-परिकर हुए। कर दिया तथा इन सब घटनाओंका सरकारी कागज-पत्र | आप भी राज्यका अधिकांश स्थान देखने लगे। अनेक सम्राट के निकट भेज दिया। इसके बाद ढाका में रहना हिन्दू जमींदारोंको इन्होंने कैद किया और फिसो किसो- अच्छा न समझ कर दीवानखानाके कर्मचारिवृन्द तथा को थोड़ो थोड़ी वृत्ति दे कर उनको जमिंदारी जन्त जमीदार कानूनगो आदिके साथ सलाह करके इन्होंने कर ली। चूनाखाली परगनेके मुकसुदावाद नामक स्थानमें राज ____इन्होने भूपतिराय और किशोर राम नामक दो धानी वसानेका संकल्प किया । क्योंकि, यह स्थान वङ्ग- विश्वस्त ब्राह्मणोंको कोषाध्यक्ष तथा मुंशी ( Private का केन्द्रखरूप था। Secretary) के पद पर नियुक्त किया था। इन्होंने ही मुर्शिदकुलो खाँ अव विना आजिम उस्सानको सलाह- वस्तुतः वङ्गदेशमें मुसलमान-शक्तिको जड़ मजबूत की के सभी काम काज करने लगे। वे दीवानखाना और थी। छोटे छोटे हिंदू जमिंदारों को वे तरह तरहका तत्संश्लिष्ट सभी कर्मचारिशोंको मुकसुदावाद उठा कट दे कर उनसे राजख उगाहते थे। लाये। इस समय १७०७ ई० में औरङ्गजेषको मृत्यु हो जाने- __ औरङ्गजेव इस समय दाक्षिणात्यमें रहते थे। यह से दिल्लीका सिंहासन ले कर आपसमें विवाद खड़ा सव हाल जव उन्हें मालूम हुआ, तव वे आजिम उस्सान हुआ। भाखिर सम्राटका मध्यम पुत्र आजिम शोह पर बड़े विगड़े और उसे विहारमें आ कर रहनेके लिये | सिंहासन पर बैठा। माजिम उस्सान यह संवाद पा पत्र लिखा। कर अपने लड़के फर्रुख-सियरको बङ्गालका प्रतिनिधि मुर्शिद कुली खाँ मुकसुदावाद आनेके एक वर्ष वाद बना पिताके लिये सिंहासन पानेको इच्छासे दिल्लीको कागज पत्न तय्यार कर तथा जागोरसे काफी राजकर रवाना हुआ। उसका पिता मुयाजिम महम्मद शाह वसूल कर दाक्षिणात्यमें वाद साहके शिविरमें आये ।। आलम हो औरङ्गजेवका वड़ा लड़का था । युद्धमें वङ्गालसे ऐसी मोटी रकम कभी भी वादशाहके समोप, आजिमशाह परास्त हुआ। शाह आलम वहादुरशाह' नहीं भेजो गई थी। इस समय सम्राट को भी रुपयेका) नामसे दिल्ली के सिंहासन पर बैठा । १७०७ ई में पिता वहुत दरकार था। अतएव उन्होंने मुशिंदकुटीकी कार्य- के कहनेसे आजिम उस्सान दिल्ली में रहने लगा। इधर कुशलता पर अत्यन्त प्रसन्न हो उन्हें उत्कृष्ट खिलमत, मुर्शिद कुली बंगाल, बिहार और उड़ीसाके सर्वमय वादशाही पताका, जयड का सम्मानसूचक परिच्छद शासनकर्ता हो उठे तथा बङ्गदेशमें तमाम मुसलमान और सेनानायकका पद दे कर बङ्गाल, विहार और प्रभाव फैलाने लगे। उड़ीसाका दीवान तथा डिपटी नाजिमके पद पर नियुक्त इतने पर भी वे वीरभूम और विष्णुपुरके जमिंदारों- किया। इसके साथ साथ मुर्शिदकुलीने 'मुतिमुल-उल- का कुछ विगाड़ न सके। इनमैसे आमद उस्सा नामक मुल्क आला आजवाले जाफर खाँ नासिरो नासिरजङ्ग' की एक धर्म परायण पठान सरदार झाड़खण्डके पहाड़ी उपाधि पाई। प्रदेशमें स्वाधीन भावसे राज्य करता था। वह आयका मुर्शिदकुली खाने वडाल लौटते ही अपने नाम पर भाधा रुपया दीन दरिदोके दुःख दूर करने, भूखोंको अन्न मुक्सुदावादका 'मुर्शिदावाद' नाम रखा तथा टकसाल देने आदि नाना प्रकारके सत्यकार्योंमें खर्च करता था। खोल कर सिक्का चलाना शुरू कर दिया। मुर्शिद कुली खाँ इसे अपने अधीन न कर सके। पहले मेदिनीपुर उड़ीयाके अन्तर्गत था, मुर्शिदकुलीने दूसरे विष्णुपुरके वीर जमिदार दुर्जनसिंह झाड़-