पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१२३

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मुर्शिदाबाद देखनेसे मालूम होता है, कि यह स्थान अत्यन्त पुराना , ओलन्दाजोंके वाद अङ्रेज लोगोने कासिमबाजार 'है। पुराने सिके और अस्त्रादि यहां पाये गये हैं। कुडके। आ अपनी कोठी वनाई । कलकत्तेको व्यापारिक उन्नति- पेटमें आधी गड़ी हुई देवीमूर्ति दीख पड़ती है । यही के पहले १७वीं और १८वीं शताब्दीमें कासिमबाजार कुडकी अधिष्ठात्री देवी है। कुछ समय पहले कुंडसे बङ्गालका सबसे बडा वाणिज्य स्थान था। रेशम, कुछ दूर एक विशाल पत्थरका टुकड़ा दिखाई देता था रूई. रेशम और सिरके कपड़ों, मलिन और हाथी जिसे लोग सुरंगका दरवाजा समझते थे। दांतस बनी अनेक वस्तुओं के व्यवसायकं लिये कासिम जोयत्कुडिसे तीन मोल पूरय महाशाल नामका वाजारका नाम एशिया और यूरोपके सभी मुख्य मुख्य गांव है। यहां भी एक बड़ा तालाव है। हुसेनशाहके,एक बन्दरगाहोंमे प्रसिद्ध हो गया था। ई० सन्की १८वीं दरवारी मंगलसेनका यहां मकान था। अभी भी उसका सदीके अन्त तक कासिमवाजार एक स्वास्थ्यप्रद स्थान खंडहर दीख पड़ता है। हुसेन शाहका यहां सिक्का पाया | समझा जाता था । १६वीं सदीके शुरूसे कासिम- गया था। मंगलसेन महाशालके चौधरी वंशके आदि वाजारके भाग्यने पलटा खाया। इसके नीचेकी भागी- 'पुरुप थे। कितने लोग समझते हैं, कि मंगलसेनके नाम रथोकी धार १८१३ ई०में बंद हो गई तथा साथ हो पर मंगलपुर परगनाका नाम पड़ा है। व्यापार और स्वास्थ्य भी जाता रहा। समयके फेरसे मुर्शिदावादक वैष्णव समाजमे श्रीनिवासाचार्यका अब कासिमबाजारके चारों ओर जङ्गल ही जङ्गल है और वड़ा प्रभाव दीख पड़ता है। प्रसिद्ध वैष्णव कवि गोविन्द- अब यहां मलेरियाका अड्डा हो गया है । यहांके राय दास और रामचन्द्र कविराज तेलियाधुरि गांवमें राजवंशके लोग इसका नाम किसी तरह जीवित रक्खे हुए हैं। अंग्रेज रेसिडेन्सी, उसके पासके समाधि . सेरपुर परगनेके अताई नगरमें एक मजबूत किला स्थान, दो एक पुराने शिव मन्दिर और जैन लोगोंके था। यहां राजा मानसिंह सदलबल पहुंचे थे। नेमिनाथके मन्दिर आदिके पुराने खण्डहर इसकी पुरानी यहां मुगलों और पठानीका घोर युद्ध हुआ। इस युद्धमें | स्मृतिको रक्षा कर रहे है। जीतनेके वाद मानसिंहको कृपा सविता राय पर पड़ी।' १६६५ ई० में बादशाह औरङ्गजेवसे सनद पाकर सविना रायका भाग्योदय हुआ, इन्हें फतहपुर परगनो अरमनियाके घ्यापारिपोने सैदाबाद आ आनी कोठी मिला। वर्तमान जमुभा-कान्दिका राजवंश सविताराय- खोलो। पलासो-युद्धके वाद उन्होने एक विशाल गिर्जा- का वंशज है । -इस वंशकी कीर्ति इस परगनेके अनेक घर वनाया जो अभी तक सैदावादमें वर्तमान है। 'स्थानों में बिखरी पड़ी है। उनके वाद फ्रान्सवालोंने यहां आ कर कोठी बनाई। · , इस जिलेके प्रसिद्ध मोतीझील के पूरची किनारे पर १८२६ ईमें सड़क बनने के समय यह कोठो ढाह दी गई। 'कुमारपुर या कोयांरपाड़ा गांव है। यह वैष्णवोंका यह स्थान आज कल फरासडंगा नामसे विख्यात है। इतिहास। प्रिय स्थान है। जीवगोखामोको प्रिय शिष्या हरिप्रिया ठाकुरानीने वृन्दावनसे कुमारपुर आ यहां राधामाधवको . यह जिला बहुत दिन पहले शूर और पालवंशीय 'मूर्ति स्थापन की । उनका वनवाया हुआ पुराना मन्दिर राजाओंका कर्मक्षेत्र था तथा इसके भिन्न भिन्न स्थान- • टूट गया, अभी एक नये मन्दिर में मूर्ति स्थापित हैं। में भिन्न भिन्न जातिके राजाओंका उत्थान और पतन • बङ्गालमें यूरोपके व्यापारी लोग आने लगे और | हुमा । तो भी इसका वास्तविक और शृङ्खलावद्ध मुर्शिदावादमें उनकी कोठियां बनने लगी । आलन्दाजीने | इतिहास ई०सनकी १८वीं शताब्दी के प्रारम्भसे ही ही सबसे पहले कासिमवाजारके पश्चिम कालिकापुरमें सिलसिलेवार मिलता है। मुर्शिदकुली खां १७०३ ई०- 'अपनी कोठी वनाई । अभी कालिकापुरमे उनके समाधि- में मुकसुदावाद आया । इसने वर्तमान निजामत किला- क्षेत्रको छोड़ और कोई दूसरा चिह्न नहीं है। के 'पूरव कुलुड़िया नामक स्थानमें दावान खाना