पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१२६

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मुर्शिदाबाद था। अन्त नबावके मरने पर सिराज हो बङ्गालका। १७६५ ई में जव अयोध्याके वजीरने अंगरेजोंसे हार स्वाधीन नवाव हुआ। अलोवनीके समय हिन्दू और खा कर, कम्पनीको पूरी अधीनता खीकार कर ली, तव मुसलमान दोनों ही एक समान राज्यके ऊचे पद पर इलाहाबाद और कोराको छोड़े उसके सभी स्थान लौटा नियुक्त किये गये थे। राजा जानकीरामका पहले ही दिये गये। कम्पनीने वादशाहको ये दोनों स्थान उल्लेख हो चुका है। १७५३ ई० में उसकी मृत्यु के वाद : दे, इसके बदलेमें वादशाही फरमानके अनुसार बंगाल, उसके चारों लड़कोंको अटीवी खिलअंत मिली थी। विहार और उडिसाको दोवानी प्राप्त की। उन दिनों उसका लड़का राजा दुर्लभराम सेनाविभागका प्रधान नवाव बादशाहको प्रतिवर्ष २६ लाख रुपये उपहार भेजता दीवान था। राजा रामनारायण पटनेका नायव नाजिम था। अंगरेज लोगोंने उसे देनेका भी भार लिया तथा थी.।. रायरायां चिन्मय राय तथा आलमचांदके लड़के प्रति वर्ष वे निजामतके खर्च के लिये ५३८६१३१) २० देने में ऊंचे ऊंचे पद पर नियुक्त हुए थे। उच्च पदस्थ हिन्दू-। भी सहमत हुए । कर्मचारी हो मनसबदार ( सेनानायक ) बनाये जाते थे। १७६६ ई०में नजमउद्दौलाको मृत्यु हुई । पीछे उसका अलीवीके ऐसे हिन्दून मके ही कारण हिन्दू-मुसलमान १६ वर्षका भाई सैफ उद्दौला नवाव हुआ । उसके साथ सेनानायक लोग अविचलित उत्साहसे नवावकी जय.' अंगरेज लोगोंकी एक सन्धि हुई और उसका वेतन पताकाके नीचे डटे रहे । शत्रु लोग बाहर से आ कर कुछ । घटा कर ४१८६१३१) रु० कर दिया गया। १७७० भनिष्ट न कर सके। ई० सैफउद्दौला चल वसा और उसका भाई मुवारक अलीवीके गुण सिराज न थे अतएव इसका | उहीला नवाव हुआ। उसके साथ भी एक सन्धि हुई प्रभाव लोगों पर न पड़ सका। इसके बुरे आचरणसे तथा उसकी वृत्ति ३१८१६६१ रु० कर दी गई । मुर्शिदा- अधिकांश सेनापति और प्रधान प्रधान हिन्दू कर्मचारी : वादके नवावके साथ यही अन्तिम सन्धि है । इसके इससे विरक्त हो उठे। इस कारण पूरी सहायता और वाद सूबेदार' नाम रहने पर भी सारी शक्ति अंगरेज- सम्पत्ति रहते हुए भी इसको राजलक्ष्मो कुछ ही दिनों में सरकारके हाथ आ गई। १७७२ ई० अगरेज-सरकारने विमुख हो गई। पलासीकी लड़ाईसे इसके भाग्यने पलठा निजामतके खर्च के लिये अधिक रुं०को जरूरत न समझ खाया तथा इङ्गलैण्ड के गोरोंका भाग्योदय हुआ । सिराज- केवल १२ लाख रु० निश्चित कर दिया । अभी तक यही उद्दाला और कम्पनी शब्दमें सविस्तार वर्णन देखो। वृत्ति निश्चित है। मीरजाफरके नाममात्रको नवाबी पद पाने के बाद मोर- मुबारक उद्दौलाके बाद क्रमशः दिलवर जङ्ग, सैयद कासिम कुछ समय तक पुराने गौरवको लौटाने की चेपा जैन उल आदुन खाँ (अली जा), सैयद अहमद अलो खाँ करता रहा, लेकिन उसका राज्य नष्ट हो गया और अन्तमें (काला जा), मुवारक अली खां (हुमायू जा) तथा उसका उमे संन्यास लेना पड़ा । मीरजाफर और मीरकासिम देखो।। लड़का मनसूरअली खां मुर्शिदावादका नवाव नाजिम हुआ मीरकासिमके वाद बूढ़ा मोरजाफर अगरेजोंको कठ- मनसूर अलो खाके समयमें १८७८ ई० में निजामतमे वड़ो पुतलीकी तरह मुर्शिदावादके सिंहासन पर कुछ दिन गड़बड़ो मनो जिससे नवावको बहुत कर्ज हो गया। . बैठा। २७६५ ई०में उसके मरने पर उसका लड़का। इसके पहले ही नवावके होरा जवाहिरात सरकारकी देख. उत्तराधिकारी हुए। उसके साथ भी अंगरेज लोगोंको भालमें रक्खे गये थे। नवावने उन्हें बेच कर अपने नई सन्धि हुई। इस सन्धिके फलस्वरूप अंगरेजी | कर्ज चुकाने की प्रार्थना को। सरकारने एक कमीशन कम्पनीने मानो शासनकार्य अपने हाथमें ले लिया। । बैठाया। कमोशनन्दे विचार कर निर्णय किया, कि संधिमें यह भी निश्चित हुआ कि बड़ा लाटसे परामर्श , नवाब नाजिमको किसी प्रकार ऋण करने का अधिकार ले एक नायव नियुक्त करना होगा और बिना उनकी ; नहीं है । अनुमतिके वह नायव हटाया नहीं जा सकता। । . १८८० ई०को १लो नवम्बरको मत्तसूर अलोने नवाव .