पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४०

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मुसलमान १३७ मुगल, तुर्क, वलूच, अफगान, अग्निकुलराजपूत, जाट और। युक्तप्रदेशके रोहेलखण्ड रोहेले अफगान, मेरटमें आर्योपनिवेशके पूर्व भारतमें ओये मुगलोंकी शाखा- कौओं, भूपाल, मन्दसोर और जौरामें अफगान; अयोध्या- जातिसे इस्लाम-धर्म ग्रहण करनेके वाद भारतीय मुसल- में सैयद ; हैदरावाद (सिन्धु) में वलूच ; हैदरावादमें मान-सम्प्रदाय वढ़ा हुआ था । आर्यावर्त भूमिमें मुगल, (दक्षिण ) सैयद। भारतके अफगान प्रायः अपने हो अफगान, पाठान और विशुद्ध अरवो मुसलमान शेख कहे | देशीय वंशोपाधि या जातीय संज्ञासे पुकारे जाते हैं। जाते हैं। जैसे-युसूफजै, वराकज, मेहसून आदि । उपरोक्त मुसलमान सन्तान महमूद, चङ्गज खाँ, दाक्षिणात्यके कर्नाटक राज्यमें जिस वालाजा-वंशने तैमूरलङ्ग, वावर, नादिरशाह, अहमदशाह और अन्यान्य राष्ट्रविप्लवकी विश्ललतामें राजकार्यका निर्वाह किया भारत-आक्रमणकारी अथवा उनके सङ्गो साथियोंने था, वह अपनेको खलीफा (६४४) उमरके वंशसे उत्पन्न भारतमें आ कर धीरे धीरे दिल्ली, हैदरावाद, अर्काट, लख- होना स्वीकार करते हैं। इस वंशके लोग पहले समर- नऊ, रोहेलखण्ड आदि स्थानों में उपनिवेश कायम कर कन्द फिर कर्नाटकमें आ कर बसे। लिया है। वर्तमान अगरेजी राज्यके सैनिक विभागमें दाक्षिणात्य सुवेदार और हैदरावादके सैयदवंशके भी वहुतेरे मुसलमान भत्ती हुए हैं और कार्य कर रहे हैं। प्रतिष्ठाता निजाम दक्षिण भारतीय मुसलमान-राजशक्ति- __भारतके पश्चिम सीमान्त पर पञ्जावप्रदेशमें और के श्रेष्ठतम है। इस वशने भारतमें आ कर भी मुसल- सिन्धुनदके तीरवत्ती राज्योंमें विशेषतः मुगल, तुर्क, मान-प्रभावको कायम रख कई जातिके लोगों पर अपना अफगान और बलूच घंशीय मुसलमान दिखाई देते हैं। आधिपत्य जमाया था। अरय, निग्रो, हवशी, उत्तर-भार- सिवा इनके वहां राजपूत, जाट और अन्यान्य हिन्दू सम्प्र- तोय हिन्दू, कनाड़ी, तैलङ्गी, मराठा. गोंड़ और कोल आदि दायसें उत्पन्न मुसलमानोंको वस्तो देखी जाती है । पनाव- सभ्य और असभ्य जातियोंसे सैनिक चुन कर निजाम में भी रेकनादोयाव और सिन्धुसागर अन्तर्वेदीमें मुल- दाक्षिणात्यमें अपने शासनदण्डको परिचालना करते तानी, भट्टी, खुरुल. अवन् आदि जिन मुसलमानोंकी वस्ती मद्रास प्रेसिडेन्सोके दक्षिणमें मोपला, लवाई, नओ- हैं; वे यूनानो वंशके हैं । वहवलपुरका दाऊद-वंश, शाह- आइति नामसे तोन तरहके मुसलमान दिखाई देते हैं। पुर जिलेके तुवाने, गुड़गांच जिलेके मेवाती और गुज- इनके पिता अरवी और माता देशी हैं। जव भारतमें रातो मुसलमानोंने उत्तर भारत के विविध प्रदेशोंमें अपने आ कर अरवी मुसलमान वाणिज्य करने लगे थे, उस अपने उपनिवेश स्थापित किये थे। उक्त दाऊद-वंशीय समयसे मुसलमान वणिक और मल्लाह पश्चिम-भारतीय मुसलमान अपनेको बुगदादके अल-अव्वास-वंशीय | किनारे पर आ कर निकृष्ट जातिकी स्त्रियोंक सहवाससे खलीफों (७४६-१२५८) के खान्दानके वतलाते हैं। सन्तान उत्पन्न करने लगे। ये सब वर्णसङ्करः पुत्र दाऊद नामक एक व्यक्ति द्वारा इस वंशको स्थापना हुई | | मोपला (मापिल्ला ), लव्वाई, जोनङ्गी, जोनकर आदि थी, इसीसे इसका दाऊदवंश नाम पड़ा था। कुछ नामसे विख्यात हुए। पिता मुसलमान होने पर माता लोगोंका विश्वास है, कि ये वलूच जातिके हैं। बहुत हिन्दू नारी होनेके फलसे इनके कर्म हिन्दू जैसे दिखाई दिनों तक सिन्धु-प्रदेशमें रह जानेके कारण ये बहुत बदल देते हैं। मा-पिल्लाई (मातृपुत्र )-का अर्थ मपला या गये हैं। इन्होंने वहवलपुर छोड़ कर प्राचीन लुङ्ग और | मोपला होता है। मलवार प्रदेशमें इनकी वस्ती अधिक जोहिया जातिको जीत कर शतद्रु के किनारोंके प्रदेशों | देख पड़ती है। लब्बाई अरवी लवक (प्रार्थना ) शब्दसे पर अधिकार कर लिया। इन लोगोंके प्रयत्नसे कृषि- उत्पन्न हुआ है। ये अरवी वणिक या मल्लाहके औरस कार्यको उन्नति के लिये कितनी ही नहरें खुदवाई गई और देशी माताके गर्भसे उत्पन्न हुए हैं। नोआइति थीं। कोरेसी, किस्मानी, गोवीसे सेवाजी आदि उपाधि ! अर्थात् नवागत प्रायः तीन सौ वर्ष हुए वे कार्यके लिये रहनेसे अनुमान होता है, कि ये अरवके रहनेवाले हैं। । भारतके कोकण प्रदेशमें आये थे। Vol, XVIII. 35