पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४२ मुसलेपान वादशाह आलमगोरके राज्यकालमें शाहद्दौला नामक | ठित कितने ही आचारोंके साथ अपने अपने देश-प्रच- एक महापुरुषका आविर्भाव हुआ। ये अपने अद्भुत लित कितने ही नित्यनैमित्तिक कम काण्ड बना लिये शक्ति वलसे हिन्दू-मुसलमानोंके चित्तोपहरण करनेमें | हैं। मूलधर्मके व्यतिक्रमसे जैसे स्थान-विशेषमें मूर्ति- समर्थ हुए थे । उक्त दोनों सम्प्रदायोंको धन-सम्पत्ति पूजा प्रचलित हुई है। वैसे ही देशमें भी अपने अपने द्वारा इन्होंने छोटे गुजरात नगरको सौधमालाओंसे | सामाजिक ओर नैतिक औचारादिकी बहुत सी विल. विभूषित किया था। यदि मुसलमानोंके इतिहास प्रसिद्ध | | क्षणतायें दिखाई देती है। हातमताई होते, तो इनकी वदान्यतामें उनकी यशोरश्मि ___भारतीय मुसलमानोंमें जातकर्म आदि सामाजिक धीमी पड़ जाती। पद्धति विशेषरूपसे हिन्दू प्रथाकी भित्ति पर बनाई गई है। सिवा इसके इलाहाबाद के सैयद शाह जुदूर, बक्सर यह महम्मदी पद्धतिके अनुसार निष्पादित होने पर भी के शेख महम्मद अली हाजो जिलानी आदि अद्भुत उसमें हिन्दुओंके चिर-प्रचलित कर्मकाण्डोंका पूरा पूरा कर्मा महात्मागण भी हिन्दुओं के चित्ताकर्षणमें समर्थ | समावेश दिखाई देता है। प्रायः एक हजार वर्ष हुऐ थे। इस समय अब्दुला कादिर (गिलानी पोर इ | तक हिन्दुओंकी वासभूमि भारतमें रह कर मुसलमानोंने पोरां और पोर-इ-दन्तगीर ) और बदीउद्दीन आदि अपने अनुकरण प्रियता-गुणसे हिन्दुओंके आचारका पक्ष- सिरियावासो महापुरुषों के नाम उल्लेख-योग्य है । सिवा पातो हो कुरानके द्वारा निर्दिष्ट किया-पद्धतिके अनुष्ठेय इनके वङ्गालके अन्यान्य स्थानों में भी प्रसिद्ध पोरोंके मक अङ्गविशेषका समाधान कर लिया है। वरे दिखाई देते हैं। उनमे पूर्व बङ्गके खुलना जिलेके वालिकाके ऋतुमती होने पर उसके पुष्पोत्सव और वाघरहाटके खाँ जहाँ आली फकोरके मकवरेको हिन्दू | गर्भाधान क्रिया समाधान के समय हिन्दू शास्त्रीय व्यवस्था- पूजते हैं। यहां कई बड़े बड़े जलाशय है। लोगोंका | का सम्यक पन्थानुवर्तन करने पर और साथ ही मूो- कहना है, कि इस फकीरके तपके प्रभावसे हो यह कीर्ति की तरह गीत वाद्यादिको तय्यारी कर पवित्र कार्यमें दिखाई देती है। वीभत्स कार्य करते हैं । अनुकरण-प्रिय भारतीय मुंसल. __ भारतीय मुसलमानोंकी सामाजिक क्रिया । मान भी ऐसे अवसरों पर नाच-गाने कराते हैं। किन्तु पहले कह चुके हैं, कि मुसलमान-सम्प्रदायके वाहु- बड़े बड़े मुसलमानोंमें यह उत्सव प्रकाशरूपसे बलसे अटलाण्टिक महासागर प्रान्तसे प्रशान्त महासागर नहीं किया जाता ; वरन् गुप्तरूपसे यह उत्सव मनाया के द्वीपमाला तक मुसलमानोंकी साम्राज्य-सीमा फैली जाता है। थो। इसीके साथ उस देशके रहनेवाले सभी मुसल- गर्भिणी स्त्रोके अन्तिम दिनमे 'सतवास' और मान-धर्मके अनुसार आचार-व्यवहार करने लगे थे। उनके नवम मासके पहले 'सानुक फतिहा' उत्सवकी विधि है। आचार-व्यवहारको पालोचना करनेसे यह वात यह हिन्दुओंके कच्चा और पक्का साध-भक्षणकी तरह है। स्पष्ट विदित हो जाती है। इस विषयमें जरा भी संदेह | इस दिन गन्ध द्रव्य या पुष्पमाला तथा नये वस्त्रभूषण नहीं, कि उस धर्मके अवलम्बो विभिन्न जातिके आचार- पहना कर स्त्रीको सुशोभित किया जाता है । सात माससे व्यवहार आदि सामाजिक जीवनने, जातिके विभिन्नता - नवे मासके आरम्भ तक गर्भिणीको नये वस्त्र पहनने- के अनुसारसे और देशभेदसे विभिन्न भाव धारण | की मना हो है। उक्त दिन दोनों कुटुम्बके लोग निम- किया था। मुसलमानोंक कुरानके आयतों में जो सब 'खित किये जाते और गर्मिणोके साथ भोजन करते हैं। आचार-विचार लिखे हैं, 'देशभेदसे आचारभेद' इस | । सूतिका-गृहमे प्रवेश और सन्तान पैदा करने पर ध्यवहार वाक्य याथार्थ्य उपलब्ध कर विभिन्न प्राम- | प्रसूतीको नाड़ी सुखानेके लिये हिन्दुओंके अनुसार ही वासो मुसलमान उस पवित्र सत्य-मार्गकोकी उलङ्घन | पाचनादिका प्रयोग किया जाता है। नाल काटनेके कर विकल्पसे और अनुकल्पसे महम्मदी, धर्मके प्रति- । वाद दाई उत्पन्न शिशुको वनसे ढांक कर 'पुरुष-महल'.