पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४६

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पुसलमान में ले जाती है। इसी समय खतीव जोरसे शिशुके दाहने | तथा पुरुष चिट्ठी भेज कर निमन्त्रण दिया करते हैं। कानमें आजान और वायें कानमें तकविर पढ़ते हैं । जन्म जो स्त्रियां इलायची ले जाती है, वे निमन्त्रित होनेवाले दिनको अथवा सप्ताहके भीतर उसी दिनका नामकरण लोगोंके जब वह निमन्त्रण स्वीकार कर लेते है) गलेमें, किया जाता है। विशेषतः जन्मकालके ग्रह और नक्षत्र पेटमें और पोठमें चन्दनका लेप कर देती हैं। पीछे उनके नामका विचार कर तथा उसके पहले अक्षर पर हो शिशु मुखमें मिश्री, इलायची और हाथमें पानका वीड़ा दे कर का नाम रखा जाता है। कभी कभी वंशानुगत, पितृ चली आती हैं। यदि कोई स्त्री निमन्त्रण स्वीकार नहीं पितामह, साधुपुरुष कुरानके किसी एक पृष्ठका पहला करती तव केवल उसकी देहमें दासी चन्दन लगा और अक्षर अथवा कई नामोंको लिख कर उनमें एक चुन कर हाथमें पानका वीड़ा दे कर चली आती है। पीछे निम- शिशुका नाम रखा जाता है। सिवा इस दिनके अनु न्त्रण स्वीकार करनेवाली स्त्रियों के लिवा लानेके लिये सार भी शिशुका नाम रखा जाता है। तीसरे दिन पट्टो | पाल्को भेज दी जाती है। और छठवें दिन पष्टि-उत्सव होता है। छठवें दिन निमन्त्रण पा कर जव लोग आमन्त्रणकारीके घर स्नान करा कर नया वस्त्र पहनाया जाता है। साधारण जाते हैं, तब उनको साथमें कुछ उपढौकन ले जाना लोगोंका विश्वास है, कि इस दिन छठी देवी आ कर | पड़ता है। गहना, धोती, साड़ी या कोट, कुरता, पुष्प, वालककी तकदीरको रचना करती हैं। कभी कभी | इन आदि मिठाई, पान, सुपारी आदि सब तरहको चीजें ७वे और नवें दिन छठोका उत्सव मनाया जाता है। ध्यवस्थानुसार देनी पड़ती है। मुसलमान-सुराके अनुसार ४०वें दिन गर्भिणोका ____जब वालक एक वर्षका होता है, तव सालगिरह या अशौचान्त होता है। ये उत्सव 'चिल्ला' नामसे मशहूर वर्षगांउका उत्सव मनाया जाता है। यह हम लोगोंके है। इस दिन रमणियां कुरान छू कर पवित्र हो कर जन्मोत्सवकी तरह जन्म दिनको हुआ करता है। ४ वर्ष मसजिमें जाती हैं। अशौचकालमे मसजिदमें | ४ महीना और ४ दिन पर वालकको विस्मिल्ला शुरू जानेका गीर खुदाको इवादत करनेका इनको | कराया जाता है। यानी विद्याका श्रीगणेश होता है। अधिकार नहीं। इस दिनको या दूसरे दिन खुदाके | आमन्त्रित व्यक्ति सन्ध्यासे पहले ही आ जाते हैं। जब नाम पर वकरको वलि दो जाती है। इसको उकीफा | सव कोई एकत्र होते हैं, तब गुरु आ कर. एक तखती पर कहते हैं। इसका पोलाव पका कर घर घर बांटा चन्दनसे "विसमिल्ला हिर्रहमाने रहीम" चन्दनसे लिखता जाता है। है और यह लिखा हुआ शब्द वालकको चटाया जाता ___४०वें दिन था उसके बाद ही वालकका मस्तक मुडन है। यह हम लोगोंके विद्यारम्भोत्सवको प्रतिच्छाया- किया जाता है। यह हिन्दुओंके चूडाकरणके अनुसार | मान है। इसके बाद लड़का मकतव या स्कूल में पढ़ने- ही किया जाता है। मनौत रहने पर माथेमें शिखा भी । के लिये भेजा जाता है या मौलवी आ कर अक्षराभ्यास रखी जाती है। कराने लगता है। सातसे चौदह वर्णके भीतर लड़का ४०वें दिन सूतिका-गृहसे निकलनेके दाद दिनमें ही 'सुन्नत' करा दिया जाता है। चिल्ला उत्सव सम्पादित होता है। सन्ध्या समय वालक वालक और वालिकाओंके कुरानकी शिक्षा समाप्त को सुला कर स्त्रियां अपने नृत्य-गानमें रात विताती हैं। | होने पर उसको परीक्षाके लिये 'दादिया' · उत्सव किया इसको 'गहवारा' कहते हैं। कभी कभी ४०वें दिनके जाता है। यह उत्सव हमारे गुरु दक्षिणाके उत्सवकी भीतर भी यह उत्सव देखा जाता। तरह है। इस समय भी शुभ दिन मनोनीत कर कुटु- सिवा इसके चौथे मासमें "लडडू वनाना" दांत- वियोंको निमानित किया जाता है। निमंत्रित पुरुष निकलने पर कान छिदाने पर भी कुटुम्योको, आमन्त्रित स्त्रीके सामने लड़का अपने गुरुके पास बैठ कर कुरानी कर उत्सव मनाते हैं । मुसलमानिनें इलायची भेज कर आयत पढ़ता है । इसके बाद गुरुको दक्षिणा-स्वरूप वस्त्र