पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४७

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१४४ . मुसलमान और रुपया वालक देता है। सिवा इसके कुरानके ३० | स्तोत्र ), ४ मगरवका नमाज ( सायं सन्ध्या ), ५ ऐशा- परिच्छेदोंमें एक एक परिच्छेद समाप्त होने पर दादिया | मा नमाज (रात्रिको प्रार्थना)। इन फर्जीके सिवा उत्सव मनाया जाता है। कभी कभी कुरानके एकांश. | और भी कितने ही सुन्नात् नाफिल हैं। इसलामधर्म- द्वितीयांश, तृतीयांश और चतुर्थाश या समाप्तिके वाद | भक्त नाममात्र हो १ नमाज-इ.इसराक (सवेरे ७॥ बजे- चार वार उत्सव किया जाता है। की प्रार्थना ), २ नमाज-इ-चास्त (६ वजेको प्रार्थना ),

वारहसे चौदह वर्गके भीतर वालिका जव प्रथम | ३ नमाज-इ-तहज्जुद अर्थात् आधी रातसे ऊपाकालके

ऋतुमतो होती है तब यह वालिग और नापाक कहलातो | भीतरकी प्रार्थनां और ४ नमाज इ तरावी. (प्रत्येक दिन है । यह वालिका.किसी पवित्र कार्यमें भाग नहीं लेती। प्रातः ८ वजेकी प्रार्थना ) इन नफोलोंका पालन किया इस दिन ७ या. : विवाहिता स्त्रियां आ कर उसकी देह करते हैं। मालिश कर एक निर्जन कोठरीमें ले जाती हैं। यहां — मुसलमान वर्षके नवे (रमजान ) महीनेमें. हरेक बालिकाको ७ दिन तक बन्द रहना पड़ता है । सात मुसलमानको रोजा रखना फर्ज हैं। इस उपवासमें दिनके वाद पञ्चपल्लवों द्वारा स्नान कर शुद्ध हो घरके | खाना पीना, स्त्री-प्रसङ्ग, पान खाना, सूर्ती जर्दाका खाना कामोंमें लग जाती है। या नस्य लेनेको भी मनाही है। जो लोग इस वातको .. वालकको भी १२से १८ वर्षके भीतर जब कभी | अवहेलना करते हैं, उनके लिये रोज रोज एक एक गुलाम स्वप्नदोष ( Pollutio nocturna) उपस्थित होता है, मुक्तिदान और ६० भिक्षुओको भोजन करानेकी विधि तभीसे वह वालिग कहाने लगाता है। इसी समयसे | है। यह कर न सकने पर वे दूसरे समय हरेक उपवास वह कलमा, नमाज, भिक्षादान या तीर्थ आदिका अधिः तोड़ने के लिये ६० दिन और एक दिन उपवास करते हैं। कारी होता है। इसके बाद यदि वह खकर्त्तव्य कर्मकी कहीं कहीं देखा जाता है, कि छोटे दरजेकी स्त्रियां अवहेलना करता है, तो दण्डका भागी होता है। . जब कोई व्रतोपवास करती हैं, तब रातके शेष प्रहरमें जिस रातको स्वप्नदोष होता है, जब तक वह गुशल | कुछ खा लेती हैं। इसी तरह मुसलमानों में प्रत्येक रोजा नहीं करता, तब तक वह नापाक रहता है, उस समय | रखनेवाला मुसलमान रातके चौथे पहरमें ( सदरगाही) तक वह न नमाज पढ़ता, न मससिदमें जा सकता है | कुछ खाते पीते हैं। इसके बाद सारा दिन उपवास और न कुरान पढ़नेका ही अधिकारी रहता है। रह शामका नमाज पढ़ पढ़ कर रोजा खोलते है। - गुरुदीक्षा लेनेके वाद प्रत्येक मुसलमानको ईश्वर | दशवें महोनेकी पहली तारोखको रमजानकी ईद पर्व (खुदा ) की पांच आज्ञाओंको मानना पड़ता है- मनाया जाता है। इस दिन बड़े शौकसे खुदाको १ कलमा पढ़ना, २ नमाज पढ़ना, ३ रोजा रखना, ४ | इवादत और खाने पोनेको बहुत बड़ी तय्यारी होती है। जकात देना और ५ हजके लिये मक्के जाना। जो इन | भोख देना और मक्केको हज-याना मुसलमानोंके पांचों. आज्ञाओंका पालन नहीं करते थे खांटी धर्म-| 'लिये एक आवश्यकीय कर्तव्य है। हरेक मुसलमानको विश्वासी मुसलमान नहीं कहे जाते। ... | ही अपने अधिकृत सम्पत्तिसे धन पशु अन्न फल आदि .... "ला-इलाही इल-लाल-लाहो महम्मद-उर-रसुल: | सभी चीजें दान करना पड़ती है। अर्थात् अपने ४० ल्लाहा" अर्थात् एक यथार्थ ईश्वरके सिवा दूसरा कोई | वस्तुओंमें हरसाल एक वस्तु दान करनी पड़ती है। ईश्वर नहीं और पैगम्बर महम्मद उनके दूत हो कर | मक्कमें आ कर काबाका दर्शन कर अपनेसे पहले हरेक- इस धरित्री पर आये थे। यह कलमाका प्रारम्भ हैं। कों जो शुद्धाचार करना पड़ता है, वह "कानून-इ-इस- इसके बाद पांच तखतां नमाज पढ़ना होता है । १ फजर- लाम" में लिखा हुआ है। इस समय यदि कोई तीर्थ- काँ नमाज (प्रातःकालोन प्रार्थना), २ जहरका नमाज | यात्रो 'पाक' 'पहराम' कपड़े को पहन कर स्त्री-चुम्बन जैसे (मध्याह्नको प्रार्थना ), ३ असेसरका नमाज (वैकालिक | दुषित कार्य करते हैं, तो उसके तीर्थयात्राका फल व्यर्थ