पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१४८

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मुसलमान १४५ हो जाता है। हिन्दू-समाजमें भी इसी तरहका विधान | है। इसी समयसे दुल्ह दुलहिनको या दुलहिन दुलह- है। तुलसीदासने लिखा भी है,-"ज्यों तीरथ कर को अपने इच्छानुसार उपढ़ौकनकी चीजे भेजा करते पाप" हैं। महर्रम आखिरी, चहारसम्बा, रमजान, ईद-इ- " हिन्दुओंमें जैसे सात वार दक्षिण करनेका नियम है, कुर्वानी आदि पत्रों पर इस तरहके उपढ़ौकन 'भेजनेका

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वैसे ही मुसलमान जब कावाका दर्शन करते हैं, तब नियम है। 'उनको कावाकी इमारतके चारो ओर घूमना पड़ता है।। दुल्लहके हल्दी लग जानेके एक या दो सप्ताह पहले दुल- इसके बाद वे कदम इ इब्राहिम, शफा और मुळ पहाड़ हिनके फांढमें पानी सुपारी दें कर घरकी स्त्रियां उसकी आदि परिक्रमण कर मीनावाजार, मदीना आदि स्थानोंके-/ देहमें गुप्तरूपसे हल्दी लगाती हैं। इसके बाद जव दुल्लह- तीर्थोंमें प्रार्थना करते हैं। को देहमें हल्दी लग जाती है, तब उसी दिन शामको या इस देश के मुसलमानों में बाल विवाह भी प्रचलित है।। दूसरे दिन दुलहिनके कपालमें प्रकाश्य रूपसे हल्दी प्रधानतः १८ वर्षके दुल्लहसे १३ या १४ वर्षको दुलहिनका लगाई जाती है। सभी सुहागिनियों एक एक करके 'विवाहं हुआ करता है। कभी कभी दोनों पक्षसे वाक् दुलहिनकी देहमें हन्दी छुआती हैं । वरको ओरसे कन्या- 'दानसे ही विवाह संबंध दृढ़ हो जाता है। के घर वड़े छामछुमले पिसी हल्दी और पिसी मेहंदी विवाह । . भेजी जाती है। इसीसे जिलवा तक हर रोज कपालमें विवाहके समय मुदावतनीयां (जिसे हिन्दू लोग | हल्दी छुआई जाती है। इसके बाद आयुर्वृद्धिका भोज 'अगुआ' कहते है ) दोनों पक्षोंसे वातचीत कर विवाह होता है। इसके बाद देशाचार और लोलिक व्ययहार 'पक्का करता है। दुलह और दुलहिनके मां वापके विवा- कर नियत दिनको दुल्लह दुलहिन के घर जाता है। और हादि सामाजिक क्रिया-कर्म और खान्दानी रोतिरश्मीको काजी आकर निकाह* पढ़ा देता है। इस तरह विवाह- जान कर विवाह करनेको तय्यार होने पर मुल्ला आ कर का काम समाप्त होता है। कभी कभी काजी नहीं आता. "ठिकजी' देख कर विवाहका फलाफल कहते हैं । विवाह- लेकिन अपने प्रतिनिधिको भेज कर यह कार्य सम्पन्न को दातचीत समाप्त हो जाने पर वरपक्षस 'थारे पान | कराता है। 'पटना' शोराना, 'मंगनी' 'पूरियां' धयलिज खुन्दलाना | ___ जिलवा या वासी विवाहके दिन तक इनके यहां भी 'नमचूसो आदि काम किये जाते हैं। हिन्दुओंको तरह देहमें अन्तिम हल्दी लगाई जाती है। i. वरको ओरसे कन्याके घर मंगनो ( उपढौवन ) विवाहके वाद दुल्लह दुलहिनको अपने घर लाता है। 'भेजने के बाद कन्याका बाप वरके घर पकवान तय्यार इसके तोसरे और चौथे दिन हिन्दुओंको तरह दुल्लह कराकर भेजता है। इस समय यदि कई महीनेके लिये दुलहिनका कंकण छूटता है। फर्क इतना ही है, कि विवाह रुक जाये, तो धयलिज खुन्दवाना उत्सव शुरू हिन्दुओंका कंकणसूत्र हल्दोमें रंगा और उसमें दुर्वा- हो जाता है। इस समय वर तथा कन्यापक्षो कुटुम्बियों- दल बंधा रहता है। मुसलमानों का कंकण लाल रङ्ग- 'को भोज देना होता है। भावी दामाद अपनी का होता है। और इसमें फुलेना लगा रहता है। तथा सासको जव पहले पहल सलाम करता है, तब रूमाल, | इसमें मोती. फूल और पैसा बांधा रहता हैं। यह सूत्र 'अंगुठी और रुपया उपहार पाता है। किन्तु जब तक विवाह नहीं हो जाता, तब तक दुल्लह दुलहिनके पास * निकाह शब्दसे यथार्थमें विवाह ही समझमें आता है। जाने नह पाता और न किसी तरहको उपभोग्य वस्तुको | इस देशमें मुसलमानोंमें विधवाके दुबारे विवाहको निकाह कहते 'ही खाने पाता है। हैं। स्त्री पुरुषके प्रथम विवाहको सादो कहते हैं। सादी शब्द- नमकचूसी हो जानेके बाद दुलह दुलहिनके घर ! का अर्थ आमोदोल्लास हैं। फारसो भाषामें निकाह शब्द हो आ कर मिठाईके सिवा नमकीन चीजें भी खा सकता | विवाह अर्थबोधक है। . Yal, xvlil 31