पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५४

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मुसलमान १५१ . मान-सेना-सम्प्रदायका अधिष्ठान हुआ था। अतएव । कारा पा जाता था। इस समयमें जाति और समाज- प्रत्येक राजधानी और छावनीके समीप एक एक धर्म- च्युत अनेक हिन्दुओ'ने मुसलमानों का आश्रय लिया प्रचारका केन्द्र स्थापित हुथा। था। उस समय मुसलमानों का ऐसा प्रादुर्भाव था, कि दिल्ली दरवारके हुक्मसे राजकार्य चलानेके लिये प्रत्येक मुसलमानको हो घरके सामने एक वधना लटका वङ्गालमें मुसलमानों के आनेक सिवा यूरोपीय वणिक. रखना होता था। एक बार एक मौलवी एक हिंदू-प्रधान सम्प्रदायके वहुत पहले अरवो और एक वणिक-सम्प्रदाय ; गांवमें गये। वहां किसीके दरवाजे पर वधना लटकता समुद्रपथसे चट्टग्राम आदि बंगालको पूर्वी सीमामें आ देख अपने शागिर्द का घर पा न सके। इस पर उन्होंने कर वस गया था। इसका कोई विशेष प्रमाण क्रोधित हो इस वातकी खवर नवावको दो थी । मौलवी- नहीं मिलता कि किस समयसे यह मुसलमान के इस अपमानका बदला चुकानेके लिये नत्रावने फौज वणिक-सम्प्रदाय चङ्गोपसागरके किनारे आ पहुंचा। भेजी थी और उस प्रामक हिन्दुओं को मुसलमान था। १६वीं शताव्दीके आरम्भमें वार्वोसा जव वङ्गाल बनने पर वाध्य किया। उस समय फकीर मौलवी आदि- देखनेके लिये आये थे, तव उन्होंने किनारेके विभाग-1 की अपमानमें हिन्दुको दुर्गति रोजको घटना शे । में वैदेशिक अरवी, फारसी, हवशो और भारतीय व्यवः पूर्व-वङ्गालके जलालुद्दीन, श्रीहट्टके शाह जलाल, सायियों को बस्ती देखी थी। उन्होंने यह भी लिखा ' आराम दागके महम्मद इस्माइल शाह गाजी और यशोर- है, "बङ्गेश्वर और वहां के मुसलमान हाकिमों के अनु ! के हाकिम खाँ जहां अलीके दीवान पोर अली ( यथार्थ- प्रह लाभको प्रत्याशामें प्रति दिन देशोय हिन्दू अधिः। महम्मद ताहिर) आदि मुसलमानोंने हिन्दुओंको जवर- वासी मूर बन रहे हैं।" । दस्तो मुसलमान बनाया था। भगवान् चैतन्यदेवके सिजर फ्रेडरिक और विसेण्ट लेवान्सने सन् १५७० | अभ्युदयकालके मुसलमानों के अत्याचार और काजियों- ई०में बङ्गालमें रहते समय सन्दोपमें मूर जातिकी वस्ता' के प्रभावका हाल उस समयके लिखे वैष्णव-ग्रन्थों में देखी थी। १६वीं शताब्दीमें अरवी वणिक्-समितिने विद्यमान है। वैष्णव प्रवर ब्राह्मण हरिदासकी मुसल- अपने वाणिज्यके साथ-साथ चट्टधाममें इस लामधर्मका! मान ख्याति तथा शैष्णव-धर्म ग्रहण करनेकी वात वहुतों- प्रचार किया था। को मालूम हो सकता है। सिवा इसके मुसलमानो शासनके साथ सब जगह! महम्मद इ-वस्तियारका विहार आक्रमण और वहां गुलामी प्रथाका भी प्रचलन हुआ। बङ्गालमें अत्याचार चौद्धधर्म याजकोंको हत्याकाण्डके बाद लोगोंको धर्मयाजक और अनाचार और शासनको विश्ङ्खलताक समय बहु-| और उपदेशोंके अभावमें हिन्दुओंको मुसलमान तेरे दरिद हिंदू सन्तान दुःखसे छुटकारा पानेको आशाले | धर्मका अश्रिय लेना पड़ा था। वरिसाल और खुलना मुसलमानों की गुलामी मंजूर कर ली थी। भारा- जिलेके बहुतेरे सम्भ्रान्त व्यक्ति इसी तरह मुसलमान कानो (मग) और आसामी डाकूदलके आक्रमण, दुर्भिक्ष | और मड़क तथा राजविप्लवसे वङ्गालके हिदु सन्तान- विहारके ब्राह्मण और कायस्थसे जो मुसलमान हो को अन्न कष्टके कारण अपने अपने लड़केवालेको मुसल गये हैं वे शेख कहलाते हैं। इनके साथ वैदेशिक शेखों- मानके हाथ वेचना पड़ा । मुसलमानों ने जितने गुलाम | का आदान-प्रदान चलता है। बाभन, राजपूत या मैमन- खरीदे थे, उन सवको मुसलमान बना लिया। सिंह जिलेके उच्च श्रेणोके हिन्दू मुललमान होने पर वलपूर्वक मुसलमान समाजमें लाने के सम्बन्धमें | पैठान कहे जाते हैं और नीच जातिकं हिन्दू नवमुसलिम कितने ही ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। वर्नियरक | समाजमें लिये गये हैं। फिर भी कालक्रमसे वे अवस्था- भ्रमण वृत्तान्तमें लिखा है, कि “हत्याकारी, और व्यभि की उन्नतिके साथ साथ मुसलमानोंमें शेख कहलाने चारी हिन्दू भी मुसलमान बन जानेसे अपने दोषसे छुट- | लगेंगे।