पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५५

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मुसलमान - आज भी मुसलमानोंके नामों में आधे हिन्दू और सैयद अहमद शाहने भारतमें इस मतको चलाया था। आधे मुसलमान नाम दिखाई देते हैं :-काली शेख, सन् १८२६ ई०में उन्हों ने सिक्खों के विरुद्ध जेहादकी व्रज शेख, गोपालमण्डल आदि। इससे अनुमान होता घोषणा की थी। उक्त सैयद महम्मद और उनके शागिर्द है, कि मुसलमान होने पर भी हिन्दुओं पर अभी मुसल- मौलवी महम्मद इस्माइल पटनेमें रह कर विहार और मानो छाप नहीं लगा है या कुरानके तत्वोंकान पर बङ्गाल ओहावी मतके प्रचार करनेमें प्रयासो हुए थे। प्रभाव नहीं पड़ा हैं। फलतः उनका नाम कुछ अंशमें | उक्त सैयद महम्मदसे विलकुल अलग पूर्व बङ्गालमें अभो भो विद्यमान हैं । और उनके नामके आगे जो शेख हाजी शरियत् उल्ला नामका एक जुलाहा मक्केसे लौट उपाधि जोड़ो गई है, वह भी सम्मानसूचक हो है। । कर ओहावी मतका प्रचार करने लगा था। धीरे धोरे ___ केवल बैदेशिक मुसलमानोंके प्रयत्नसे बङ्गालमें फरीदपुर और ढाके में उसके बहुतरे शागिर्द हो गये। देशी हिन्दुओंको मुसलमान बना कर मुसलमानोंकी | इसका लड़का दादू मियां अपने वापका धर्मप्रचार कार्य संस्था नहीं बढ़ी थी वरन् नीच श्रेणीकी हिन्दू-विध | करने लगा। इसने शीघ्र ही ढाका, वाकरगञ्ज, फरीद- वांये समाजको असह्य यन्त्रणाको न सह सकने पर पुर, नोयाखाली, पवना आदि स्थानोम किसान और 'पतिवती वननेको लालसासे मुसलमान बन गई। इससे | नीच जातियों के लोगोंको अपने फिके में शामिल कर भी मुसलमान समाजकी वृद्धि हुई है। सिवा इसके लिया। इसी व्यक्तिने दुर्गोत्सबके लिये अलग कर वसूल कितनो ही हिन्दू-विधबायें मुसलमानोंसे फस जाने पर करना बंद करनेके लिये लठधारी और डाकुओंको ले कर जातिच्युत हो जानेसे वाध्य हो कर मुसलमान हो गई। जमींदारोंसे एक खासी लड़ाई छेड़ दी थी। अन्त अङ्ग- इसी तरहं कितने ही हिन्दु-सुन्दरी मुसलमानों पर आसक रेजोंने इसे दण्ड दिया। सन् १८६० ई०में दादू मियां को हो मुसलमान हो गये हैं, इससे नुसलमानोंकी संख्या मृत्यु हो गई। वढ़ा है। सिवा इसके मुसलमानोंके राज्यमें मुल्ला और हिन्दुओंके देशाचारोंका पालन, हिन्द उत्सवोंमें या मौलवियों के प्रभाव अक्षुण्ण रहनेकी वजह उनके पोरों ताजियोंमें शामिल होना, पोर पैगम्यरोंकी इबादत तथा के यहां आने जाने तथा छुआछूत होनेसे भी कितने ही | जुम्माका नमाज आदिको मना कर हाजी शरीयतने अपने हिन्दू मुसलमान बन गये। मतको चलाया था। हिन्दूधर्मकी प्रतिद्वन्द्विता करना शिया सुन्नी-इन दो फिौके सिवा बङ्गालमें ही इस मुसलमान सम्प्रदायका मुख्य उद्देश्य था। हनीफो, शफाई, मालिक और छम्बली नामसे और भी पटनेके मोहाबो मतका अनुसरण कर जौनपुर के चार नये फिके देखे जाते हैं। इन चार फिौमें विशेष मौलाना करामत अली पूर्ववर्ती प्रचारकोंके मत विस्तार फर्क नहीं । ' बङ्गालमें हनीफो फिके के मुसलमान | करनेमें यत्नशील हुए । पोछे वे हादी-मतको उपेक्षा कर अधिक देखे जाते हैं। इनमें कितने ही अहलीशहा और हनीफी-सम्प्रदायको पोषकता को थी । उन्होंने दाद मियां कितने ही घर मुकल्लिद है। 'का लक्ष्य कर अङ्करेजोंके अधीन भारतको फिर "दारुल- १७वों शताब्दोमें अरवमें ओहावी नामका एक नया हार्व" कह कर घोषणा नहीं की थो। उन्होंने हिन्दुओं फिर्का पैदा हुआ। इनमें कुसंस्कार नहीं था। इस को कुसंस्कारों का पालन करना और शेरोयतो के पूर्व लामधर्मको पवित्रताको रक्षा करने के लिये ही इस फिके. पुरुषों को शिरनी चढ़ाना और ताजिया बनाना आदि और तो क्या कामों को मना किया था। जुम्माका नमाज और पोरोंके 'का जन्म हुआ। यह इमाम्, सुलतान मकबरों पर शिरनो चढ़ाना आदि कह पुरानो बातों को 'महम्मदका हुक्म माननेके लिये तैयार नहीं। नेजद । उन्होंने अपने ओहावी-समाजमें फिर चलाया था। सन् नगरवासी महम्मद ओहावने इस फिके का जन्म दिया | १८७४ ई०में करामत अलीको मृत्यु के बाद उनके लड़के · था। काफरों के साथ युद्ध कर धर्ममतके संस्थापन ही इस सम्प्रदायका प्रधान उद्देश्य है। रायबरेलोके । हाफिज अह्मदने विशेष दक्षताके साथ पूर्व तथा उत्तर