पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५६

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मुसलमान बङ्गालमें मोहावो-मतका प्रचार किया। इस सम्प्रदाय- । कादिर सुहारवी नामके चारों पोर प्रत्येक मुसलमान. के अन्यान्य प्रचारकों में हुगली जिलेके फुरफुरा प्रामके के पूजनीय हैं। ओहावो-सम्प्रदायक सिवा सभी सम्प्र. शाह आवुवकर और मुर्शिदाबाद जिलेके वनौधिया ग्रान दायक मुसलमान पीरों का आदर किया करते हैं। के हजरतका नाम विशेष उल्लेखयोग्य है। मुसलमानों का विश्वास है, कि इस देहको त्याग कर ___उपयुक्त दो अभिनव धर्मसम्प्रदाय फराजी, नमाज ' भी पोरों को आत्मोये मक्का या मदोनेमें रह कर रोज हाफिज, हिदायती सारा आदि नामसे निम्न श्रेणोके ' नमाज पढ़ा करती हैं। वे सूक्ष्म शरीरमें रह कर जीवों मुसलमानों में परिचित हैं। वे पूर्व मतानुवर्ती मुसल' को मगलकामना किया करते हैं । इसीलिये उन,लोगों मान सम्प्रदायको साविको, वेरावो, वैदैवतो, यावेतारा के मकवरे तीर्थ समझे जाते हैं। साधारण लोगों को कहते हैं। दादू मियां का सम्प्रदाय ही यथार्थमे फराजी, पुत्रकी कामनासे पोरों पर शिरनी चढ़ाते. भी देखा कहलाता है। इसमें महम्मदो ताहल इ हादी या रफिया जाता है। शिक्षित मुसलमानों में इस विश्वासका हास द्दीन और ला मजहवी आदि विभाग हैं। उधर करामत । हो रहा है। अलोके शागिर्द और उत्तराधिकारी तायैयून्नी नामसे भारतीय पीर या मुसलमान महापुरुषों में हजरत मुई- विख्यात है। नुद्दीन चिस्त सबसे प्रधान पुरुष हैं। सन् १९४० ई०में दादू मियांके मरनेके वाद करामत अलीके चलाया फारसमें इनका जन्म हुआ । भारतमें आव.र १२३४ धर्म पूर्व-वङ्गालके निम्नश्रेणोके किसानों में प्रचलित ई०में अजमेरमे रहते समय यह मरे । भारतसे दूरके रहने- हुआ। दादू मियां का लड़का सैजुहान खां वहादुर फरोद वाले हिन्दू मुसलमान इस मुसलमान तीर्थका दर्शन पुरयासो किसानों और जुलाहों पर अधिकार जमाने , करने आते हैं। स्वयं रिकारीके भूतपूर्व महाराज रण. पर भो करामत् अलोके शागिर्दोसे पूर्व और दक्षिण । वहादुरसिंह प्रत्यक वर्ष यहां आया करते थे। वङ्गाल भर गया है। उक्त सम्प्रदायके मतैक्यके कारण , सिवा इसके वङ्गालके कई स्थानों में पोरोंका दरगाह कभी कभी महरम पर दोनों सम्प्रदायों में खूब दङ्गा दिखाई देता है । इनमें कितनोंका नाम उल्लेखनीय है । हंगामा हो जाता है। । इन पोरोंके सम्बन्ध विचित कहानियां प्रचलित हुई हैं। इस ओहावा सम्प्रदायके अभ्युत्थानक पहले पूर्व १माचाण्डालो सईफ-२४ परगनेर गङ्गासागर और उत्तर बंगालक निमश्रणोकं मुसम्मान सम्पूर्ण- सङ्गमके निकट। रूपस हिंदू भावापन्न थे , वे दूर्गापूजा और विभिन्न खा जहां गलो--वागेरहाट उपविभागके राम- हिंदू उत्सयोंमें सम्मिलित होते थे। हैजा, चेचक आदि विजयपुरमें । के फैलने के समय शोलला और कालोको पूजा ओर कभी! शाह सुलतान वगुड़ा जिलेके महास्थाननामक कभी धर्मराज, मनसा और विपहराको पूजा वे करते थे। प्राचीन नगरमें। हिन्दुराज परशुरामके यहां भिना मांग अन्यान्य सामाजिक व्यवहारों में भी मुसलमानो मे हि । इन्होंने राजा को राजच्युत किया था। पोछे राजाकी देशाचार प्रचलित था। विवाहादि शुभ कर्मो विवाह | कन्या शोलादेवो फकीरके पझे से निकल करतोया जल- में सिन्दुर देना, वैद्यनाथतीर्थ में गगादक प्रदान, ग्राम्य- में डूब गई। यहां शीलादेवोका बाट एक तोर्थ रूममें हो देवताको पूजा और जन्मकाल में पष्ठापूबा आदि देशा- | गया है। फ कोरके दरमाइमें हरसाल मे का होता है। चार भो उनमें दिखाई देता है। ४ पोर वदर-चप्रामके मल्लाहोंके कुलदेवता। हिदुओं को तरह कोई कुसंस्कारमें पड़ जाने पर हिन्दू, मुसलमान और फिरङ्गो (अङ्गरेज.) मल्लाह एकन वंगालक मुसलमानों में भी प्रायश्चित्त करनेका नियम ही उस पोरको पूजा चढ़ाते हैं । मुसलमान चट्टनाम- है। अब्दुल कादिर जिलानो, आव इसहाकशामी बासो देर उद्दोन नामक मुसलमानको पीत्वदर कहते (चिस्तोवासी), महोउदोन तुकशवन्द और. अब्दुल । हैं। सन् १५४० ई०में इसको मौत हुई ।. पुर्तगालोंका Vol, XVIII. 39