पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१५९

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मुसलमानधर्म भावसे कर्तव्य है। उनको महिमाकी प्रतिनियत देवदूत | अरवदेशकी उस समयकी अवस्थाने महम्मदके धर्म सर्वत्र घोषणा कर रहे हैं। इस परिदृश्यमान सदा विश्व प्रचारमें विशेष साहाय्य किया था। क्योंकि, सरव नाना संसार ही उनके सृष्टित्व और नियन्तृत्वका एकमात्र | प्रकारके मूर्तिपूजक धर्मोंका केन्द्र था। फिर भी ; उन निदर्शन स्थल है। वे ही जगतके कर्ता हैं, वे ही जगत् में कोई भी विशेष प्रभाव सम्पन्न था। केवल तीर्थ पालनकर्ता तथा वे ही जगत्के भाग्याभाग्यके विधाता | स्थानों में एकत्र हो कर प्रकोश्य भोजनके सिवा धर्मको हैं। उन्हीं की शक्ति और आज्ञाले मानव आदि प्राणी- और कोई अङ्गस्फूर्ति दिखाई नहीं देती थो। मक्का ही को जन्म, जरा, मरण आदि मिलता रहता है । इस धर्मा- इन तीर्थों का राजा था। उस समयके मक्काके कावा या वलम्बियों का वीजमन्त्र "ला इलाही इल्लिल ला महम्मद, मन्दिर में ६०० देवमूत्तिा थी। उनमें काले पत्थरको रसूल-इलाह" अर्थात् एकके सिवा ईश्वर द्वितीय नहीं। एक प्रसिद्ध लिङ्ग ही विशेषमावसे उल्लेखनीय है। कहा महम्मद उसोके भेजे हुए । जिनको इस वाक्यका विश्वास गया है, कि यह लिङ्ग स्वर्गसे गिरा था। उस समय के नहीं वे सच्चे मुसलमान नहीं। अरव सर्गशक्तिमान विधाताको "अल्ला" कहते थे। इस इसलामधर्म के प्रवर्तकको सब बातों पर गवेषणा- उस समयकी धर्महीनताको देख कर महम्मदके मन पूर्ण विचार करनेसे वास्तवमें उनको एकेश्वरवादी स्वीकार | एकेश्वरवादकी बात जागरित हो उठी। उन्होंने वाणिज्य- करना पड़ता है। उनके मोमांसित धर्ममत वेदान्त मत-1 के लिये सिरियामें जा कर यहूदी और खप्टानोंको साथ का आभास रहने पर भी उसमें अनेक देशाचार सामा- परिचित हुए और मोजेस, योशुखुटकी महिमा और कीर्ति जिक क्रियाकाण्डको अवतारणा रहनेसे इसने भिन्न रूप] कलाप जान आये। उस समयके खुष्टानोंकी अवस्था धारण किया है। एक समय मुसलमानोंके भुजवलसे वहुत शोचनं य हो गई थी। महम्मदने उस समय एके- जो इसलामधर्म यूरोपके अटलाण्टिकप्रान्तसे एशियाके श्वग्वादके निगूढ तत्वको जनसमाजमें प्रचार करनेका प्रशान्तमहासागर तक फैला हुआ था, उसका विवरण ! सङ्कल्प किया था। महम्मदको मतते यह इस्लामधर्म नीचे लिखा जाता है। ही मनुष्य के पारलौकिक उन्नति और जीवको मुक्तिका धर्ममत। यथार्थ में मूलमन्त्र हो सर्वशक्तिमान ईश्वरके प्रति पकानं वर्तमान सभ्य जगत्में जितने प्रकारके धर्ममत प्रचलित चित्तसे आत्मनिर्भर करना ही मुसलमानधर्मका मुख्य है, उसमें सबसे पीछे का मुसलमान धर्म ही है। प्राचीन उद्देश्य है। इस ऐकान्तिकभक्तिको पैगम्बर 'इमान्' कहते हिन्दूधमंका काल निर्णय करना अत्यन्त कठिन है। है। जनसाधारणके इस विश्वासके वशवों हो कम- बौद्धधर्म ढाई हजार वर्षले प्रचलित है। ईसाईधर्मको भी से दो विभाग कर लिये हैं। १ एकेश्वरवाद और ५ २०वों शताब्दी चल रही है। किन्तु हालका मुसलमान- महम्मद इश्वरके भेजे हुए हैं या उनके अवतार हैं। यह धर्म केवल डेढ़ हजार वर्षसे अपने पुराने सहयोगियोंके विश्वास हो मुसलमानधर्म को भित्ति । "ला-इलाही इ- साथ प्रतिद्वन्द्विता करने में समर्थ हुआ है। ईसाकी छठा लिलल्ला" यह कलमा (गइ) ही मुसलमानधर्मका मूल- शतान्दोमें महम्मदने जन्मग्रहण कर इस धर्मको चलाया मन्त्र है । एक ही समयमें संग्रामक्षेत्र अथवा मसजिद था। धर्मको प्रकृति जानने के लिये प्रवत्त कके कार्योंको के भोतरमें सभी जगह यह वाणी प्रतिध्वनित हो रही उनको शिक्षा दोझाको जानना अत्यावश्यक है। है। हिस्पानियासे हिन्दुस्थान तक मुसलमानधर्मकी महम्मदने ईसाई धर्मप्रचारकपालकी तरह सब जगह मेरो जोरोंसे बज रही है। यहो कहा है,- - मैंने किसो नये धर्मको सृधि नहीं को है, ईसाई लेखकोंका कहना है, कि महम्मदने खुष्टानधर्म- यह प्रचलित पुराना सनातनधर्म है और हमारे पूर्वपुरुषों का अनुसरण कर अपने मतको सृष्टि की है। किन्तु धर्म- ने भी इसी धर्मका अनुसरण किया था। इब्राहिम, पैग- विषयमें साम्प्रदायिकताका अभाव प्रायः दिखाई नहीं म्वर और ईसा भी इस धर्मकी महिमा गा चुके हैं।" | देता। .