पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१६१

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y मुसलमानधर्म करेंगे। कुरानमें लिखा है, कि परमेश्वर स्वयं उनका । मनुष्योको दुष्कार्यमें प्रवृत्ति कराने के लिये उसे छोड़ रखा विचार करेंगे और जिस शरीरको जो आत्मा है, वह है। कयामतके दिन उसका भी विचार होगा। वे हो उनके द्वारा पुरस्कार पायेगी। आस्तिक सुखका भोग मनुष्यों के चित्तमें दुर्मति प्रदान किया करते हैं। ये हो पापाचारिणी स्वर्गीय दूतियों में प्रधान है। उनके अधीन · कुरानमें कई तरहके नरकों (जहन्नुम ) का वर्णन में १६ दूत हैं, वे पापात्माओंको दण्ड दिया करते हैं। आया है । यह भी सात तरहके हैं। प्रथम भागमें धर्म- मुसलमानोंके द्वारा वर्णित स्वर्ग का चित्र बड़ा ही कर्महीन मुसलिमगण, दूसरे ईसाई, तीसरे यदी, चौथे मनोरम है। वहां कलकलनादिनी सुरतरङ्गिणी प्रवाहित सावियान, पांचवें मगी, छठे मूर्तिपूजक, सातवें वैध ) हो रही हैं और अलौकिक लावण्यवती चिरयुवती देव- चित्त-धर्मद्वे पीगण अवस्थान करते हैं ।* वालागण दल बांध कर घूम रही हैं। उनके विजलोकी शिष्योंको भय दिखानेके लिये महम्मदने भी पाप तरह चमकदार रूप सौन्दर्य पर मनुष्योंका नेत्र नहीं ठह. भेदसे नरकोंकी अवतारणा को है। इन सबोंमें पदत्राण- रता। वे मरणान्तमें धर्मात्माओंको स्वर्गमें ले जाती विहीन पाद भागमें रखवाना ही सबसे लघुदण्ड कहा है तथा नकीर और मुनकीर नामको दो देवाङ्गनायें गया है। उत्तप्त तैलपूर्ण कड़ाहमें फेक देना या उसमें प्रेतात्माका विचार किया करती हैं। फैसले के दिन दूती भूज देना नास्तिकोंके लिये निर्धारित दण्ड है। पहले। सिंहासन ढोया करती हैं। जिब्राइल हो स्वगीय दूतोंके नास्तिक रह कर पोछे यदि महम्मदो धर्ममें आ जाय, तो अग्ननायक और पुण्यके मूलप्रकृति स्वरूप है। वे मेरी उसको भी प्रायश्चित्त स्वरूप नरक-यन्त्रणा भोग करनी और महम्मदके सामने मनुष्यके वेशमें उपस्थित हुए थे। होगी। इसके बाद वह उससे मुक्त हो कर स्वर्ग में । महम्मदीय स्वर्ग सप्ततल और सर्वापेक्षा श्रेष्ठतम जाता है। । सुख-धाम है * वहां महम्मद वास करते हैं। इसके उक्त स्वर्ग और नरक नामक सुखदुःखालयमें अराफ " दरवाजे पर महम्मदवापी नामक एक प्रस्रवण है। मुसल- नामक पक लोक है। जिनका पाप पुण्य समान है वे ही, । मान कहते हैं, कि इस प्रस्रवण या जलाशयका एक लोग जा कर वहां वसते हैं। नरकके ऊपरसे "पुलसेरत्" चिल्ल पानी पी लेनेसे जन्मकी तरह पिपासाकी शान्ति नामक एक पुल है । यह वालको तरह पतला तलवार हो जाती है। स्वगीय भूमि केवल कस्तूरो कुङ्कमादि .को धारसे भी तेज है। सब मनुष्यको इस पुलसे | । सुगन्ध द्रव्योंसे पूर्ण, और मुक्का हेकिकवत मणि वहांका पार करना होगा। जो धार्मिक और सत्य है, वे ही | पत्थर है। महलोंकी दीवार चांदी और सोनेको वनी है। हसते खेलते उस पुलसे पार हो जाते हैं। किन्तु पापी और झूठा आदमो इस पुलसे पार होनेको चेष्टा करते ही । उस परसे गिर कर पातालके महानोर नरको पतित! * मुसलमान-धर्मशास्त्रोंमें ६ स्वर्गों का उल्लेख है, उनमें ७ विहिस्त, ८वा कुर्सी या स्फटिक स्वर्ग और नवा उर्श या भग- इवलिस शैतानका प्रतिनिधि है । वह विधाताकी वानके रहनेका स्थान । ७ विहिस्त इस तरह है-~१ दर- पूजा या आदमको इजत नहीं करता । इसलिये वह उल-जलाल (मुक्ता-निर्मित) । २ वर उस सलाम ( चूणी- आलाके हुक्मसे सदा नरकमें वास करता है। कयामत-निर्मित )। ३ जुझात उल्-मारा (रूपदस्ता निर्मित ) । ४ के दिन तक उनको इसी तरहकी नरक-यन्त्रणाका भोग जुन्नात्-उल्-खाल्द (पीले मूंगों द्वारा खचित ) । ५ जुनत् उल. करना होगा। किसी किसोका कहना है, कि विधाताने नाइम ( हीरों द्वारा निर्मित )। ६ जुमत्-उल-फह स (वई. निर्मित )[ ७ दारुल कड़ात् ( कस्तूरी निर्मित ) । सिवा इनके

  • जहन्नुम, सन्जा, हत्तमा, सुईर, शकार, जहीम, हबिया, कुछ लोग जुनत्-उल् आदानको ( इडन-उद्यान या नन्दन-

ये साव नरक हैं। कानन ) पार्थिव स्वर्ग कहते हैं।