पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१६२

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मुसलमानधर्म २५६ वृक्षके डालपत्त सब सोनेके होते हैं। वृक्षों में प्रधान वृक्षः । अधिकांश यहूदी, ईसाई, फारसी, हिन्दू आदि मतोंसे का नाम 'तुवा' अर्थात् सुखतरु है। सम्भवतः हिन्दू- उनके द्वारा संग्रह किया गया है। शास्त्रोक्त कल्पतरुका नाम सुन कर ही इस सुखतरुको महम्मदने दूसरे धर्मवालोंको अपने धर्ममें लानेके कल्पना हुई होगी। यह तरु महम्मदके घरमें अवस्थित , लिये स्वर्गका जो मनसुग्धकर चित्र अङ्कित किया था, वह है। अनार, खजूर, अंगूर आदि उत्तमोत्तम फलके , अनुलनीय है। हिन्दुओंकी कल्पनागठित अप्सराओंसे भारसे उक्त वृक्षकी शाखायें नीचे लटक रही हैं और मह- परिपूर्ण नन्दन काननका प्रलोभन महम्मदके ख्याल में होन- म्मदके चेलोंके घरोंको स्पर्श कर रही हैं। इसी वृक्षको ! प्रभ हैं। महम्मदने नरक (जहन्नुम) का चित्र जिस तरह जड़से अनन्त कोस तक विस्तृत स्थानमें दुग्ध, मद्य, मधु विभीपिकामय चित्रित किया है तथा वर्गको जिस तरह आदि सुपेय द्रव्योंको झोल वहां मौजूद है। उन सब' बढ़ा कर मनमोहन रूप दिया है, उससे अशिक्षित सम्प्र. स्रोतोंसे महम्मदकी वापी भरी रहती है। मरकत मणि दाय शोघ्र ही प्रलुब्ध हो जाता है। तथा होरोंसे उस वापीको सीढ़ियां तय्यार हुई हैं। जिन्होंने विशेषरूपसे कुरान नहीं पढ़ा है उनका साधा. उपयुक्त स्वर्गीय शोभा अप्सराओंके रूपसौन्दर्याके! रणतः विश्वास है, कि महम्मदने सभी धर्माको निंदा की अनुरूप हो गठित हुई है। महम्मदी धर्मके विश्वास है। किन्तु यथार्थमें यह सव मिथ्या है। महम्मद यहूदी रखनेवाले उन अप्सराओंके साथ सुखसम्भोग किया और ईसाइयोंको “एलकिताव" अर्थात् धर्मग्रन्थके अधि- . करते हैं। महम्मदने जनसाधारणको अपने मतमें लाने कारो कहा है। अर्थात् कुरानके मतसे जहां ईश्वरका के लिये शागिर्दोको अपने प्रलोभनयुक्त बचोंसे प्रलुब्ध नाम लिया जाता है, वह स्थान पवित्र है। - प्रत्येक किया है- मुसलमानको उस स्थानको रक्षा करना उचित है। महम्मदने गिरजा आदिकी भी रक्षा करनेका उपदेश "जो मनुष्य इस धर्म ( मुसलमानधर्म )में विश्वास दिया है। करते हैं, वे अन्तमें स्वर्ग में जा कर दुग्धफेननिभ शय्या- पृथ्यांके धर्मोके ऐतिहासिक जी, डब्लिड, लिटनका से भी उत्तम शय्या पर सोते हैं। यहां वह नाना जातोय । यि। कहना है, कि मुसलमानधर्ममें स्त्रियोंको सामाजिक अलौकिक सुखावुपूर्ण फलोंका आहार करते हैं और अवस्था ईसाईधर्मकी स्त्रियोंकी अपेक्षा बहुत उच्च है। अप्सराओं के साथ विषयसुखके सम्भोग में समर्थ होते . केवल हिन्दूधर्मके सिवा सामाजिक व्यवस्था सङ्कलनमें है।" कुरानमें लिखा है, कि “अति निकृष्टगुणसम्पन्न । । मुसलमान धर्मका अन्य कोई प्रतिद्वन्द्वी दिखाई नहीं धर्मविश्वासी भी ७२ खर्गीय अप्सराओं के साथ भोग- ! देता। विलास किया करते हैं। सिवा इसके इहलोकको विवा- मुसलमानोंके मजहबों देवदूतोंको पचिन, सूक्ष्म और हिता स्त्री भी वहां मौजूद रहती है। उन्हें रहनेके लिये। अग्निमय देह लिखा है। उनके पिता माता नहीं। सभी एक मणिमय भवन और भाजनके लिये मनुष्योंक दुर्लभ जगत् पिताके इच्छासे उत्पन्न हैं और उनके द्वारा धर्मको सुखादुपूर्ण भोजन मिलता है। रक्षाके लिये विविध पदों पर अधिष्ठित हैं। वे इन्द्र उनको अवस्थाके भनु र उनकी पोशाक और गृहा- जयी हो कर अतुल स्वर्गीय सुख भोग करते हैं । कोई लङ्कार प्रभृति विविध द्रव्योंसे तय्यार होता है। इसके | खड़ा हो कर, कोई वैठ कर, कोई हिल कर, कोई सो कर, सिवा भी वह मनुष्य इन द्रव्योंके रसास्वादन तथा इस कोई अवनत मस्तक हो कर पूर्व जन्मके पापोंका ( ईश्वर- विषय-सुखका भोग करने के लिये अनेक क्षमता और के गुणानुवाद कर ) प्रक्षालन कर रहे हैं। कोई यमपुर में अनन्त कालव्यापिनी यौवन पाते हैं। वहां इच्छा होते | चित्रगुप्तकी तरह लिखने पढ़ने और हिसाद रखनेमें ही ही उसकी पूर्ति हो जाती है। मस्त है। कोई मनुष्य जातिके पालन करनेका भार महम्मदका वगै उनका कपोलकल्पित नहीं है . इसका | लेते हैं, कोई अनन्त कालसे भगवत्-सिंहासन-रक्षामें