पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१६९

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१६६ मुसलमानधम १२ जलहज-ची तारीखको वकर-ईद (कुर्वानी ) या| अपने खान्दानी और विश्वासो पोरके अनुयायो किसी ईद-उल-जुहा, इसका आर्फा और दावत देनेका साधु पुरुषके स्थानमें जाना पड़ता है। अथवा उनको दिन। या उनके आत्मीयोंको अपने घर धुला अवस्थानुरूप भोजन भारतीय सभी मुसलमान वारहों त्योहारोंको मानते | कराना पड़ता है। इसके बाद 'मुशंद'-को वजू खतम कर हैं। ये इन त्योहारों पर उपवास, पारण, पूजा, शिरनी | मुरीद होनेवालेको दाहने हाथसे पकड़ना पड़ता है। किन्तु चढ़ाना या चिराग दिखलाना आदि उत्सवोंका आयो स्त्रीका हाथ नहीं पकडा जाता, बरन् रुमाल या अञ्चल- जन करते हैं। सिवा इसके कहीं कही' फकीरोंके का एक हिस्सा पकड़ना होता है। इस समय मुर्शद स्थानमें या पिल्लेमें चिराग, चन्दन, उर्श और फतिहा मुरीदको कलमा और रफात पढ़ा कर उनके हाथमें एक देनेकी रीति है। पोरोंके सम्मान दिखलानेके लिये कहीं प्रति निजवा या पीरोंकी फिहरिस्त दे पोरोंके प्रति कही मेला भी होता है । मुहर्रम महोनेको १८वीं तारीख- सम्मान प्रदर्शन करनेका हुक्म देता है। इसके बाद उप- को अखाड़ोंका भोज शुरू होता है। इस दिन भगवान्ने | | युक्त दक्षिणा दे कर सलाम कर मुरोद मुश दको विदा महम्मदके समीप प्रकाशमें ही इस्लाम जगत्को अधिकार करता है। इस तरह गुरु-शिष्यों में भेट मुलाकात होने के देनेका अभिमत प्रकट किया था। मक्का और मदीनेके ! वाद मुर्शद मुरीदके कानमें गुप्त रहस्य कह देता है। बीचमें 'गदीर खुम्' नामक स्थानमें महम्मदकी ईश्वरसे मुरीदसे फकीर होता है, इस समय मुरीदको फिर भेट हुई थी इससे महम्मदके शागिर्द इसको 'गदीर | एक मेला (भोज) देना होता है। विभिन्न श्रेणोके ४०५० त्योहार' कहते हैं। फकीर तथा उनके बंधुवांधव और भिक्षु निमन्त्रित हो कर मुसलमानोंकी हिजरीमें वारह महीनके वारह चन्द्रोंमें । आते हैं। पुष्प, चन्दन, शिरनी, गांजा, भांग, सुरती जो करना कर्तव्य है, ऊपरमे उसकी फिहरिस्त दी गई है। आदि उन अभ्यागत फकीरोंको दिया जाता है। इसके करनेकी रीति या क्रियाकलाप विस्तृत रूपसे यहां मुर्शद आ कर पहले दाढ़ी, मूछ और दोनों भौंहको लिखा न गया। । छांट कर आवरू खोल देते और उसके साथ साथ कुरानका मुसलमानोंका हिजरी सन् चान्द्रमासके अनुसार मन्त्र पढ़ते हैं। इसके बाद उस फकीरको स्नान करा गिना जाता है। किन्तु अमावस्याके वाद जिस दिन , कर कलमा ए-तय-अव, कलमा ए-शहादत्, कलमा-ए-तम- चन्द्र दिखाई देता है वही दिन महीनेका अन्त समझा जिद्, कलमा-ए-तोवजिद और कलमा-ए-रद-ए-कुफुव जाता है। उसके बाद ही दूसरे महीनेको वारीख मानी | तथा साधारण उस्तगफा और फकीर-सम्प्रदायके विशिष्ट जाती है। और भो १० कलमाका पाठ कराया जाता है। इसके बाद इनमें देवके उद्देशसे नजरोनमाज अर्थात पुलाव, उसे फकीरके उपयुक्त कण्ठा, शेली और तसविया आदि रोटी, शिरनी और उत्तम उत्तम फल मूलादि उपहार देने माला लंगोटा, लुगी, तसमा, कमरवंद आदि पहनाया की विधि है। कभी कभी भगवानको पशुबलि चढ़ाते | जाता तथा हाथमें छड़ी, रुमाल और समुद्रसे उत्पन्न एक प्रकारके नारियलको माला आदि पहना कर मुर्शद अपना हैं। प्रत्येक शुभकर्म में शिरनी चढ़ाई जाती और फतिहा |. जूठा शरवत पिला देता है। पढ़ा जाता है। बहुत जगहोंमें मुसलमान फकीर, फकोरका वेश बनानेके समय एक एक साज फकीर. फतिमा, अली आदिके लिये भी प्रार्थना और पूजा के अगमें पहना कर मुर्शद कुरानका मन्लपाठ करता है। अर्थात् शिरनी चढ़ाया करते हैं। इस प्रकार सजधज कर फकीर अपना पहला नाम छोड़ तरिफत या स्वर्ग मार्ग के खोजनेवाले मुसलमानोंको देता और नया नाम ग्रहण करता है। इस समय गुरु- पहले मुरीद (शिष्य), पीछे फकीर और इसके बाद वाली का सदुपदेश पानेके बाद पीरोंकी भक्तिपूर्वक पूजा और (साधु-पुरुष ) होनेके लिये चेष्टा करनी होती है। कोई सम्मान करता और तब उसकी फकोरी दीक्षा सम्पन्न पुरुष या रमणी मुरीद होनेकी इच्छा करे, तो उसे पहले | होती है।