पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७०

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मुसलमानधर्म ११७ फोरोंके मध्य भी वे सारा ( विधिवहिभूत ) और | दाढ़ी मुड़वा लेता उसे इमामशाही दरवेश जानना वा-सारा (विधिसिद्ध) नामक दो विभाग हैं। जो गांजा, | चाहिये। ये लोग ब्रह्मचर्यावलम्बो और भिक्षाजीवी है। . भांग, अफीम, शराव, बोजा (मादक द्रव्यविशेष) ताड़ी, मुशाएक पोर मुर्शद जादी और खुलफाङ्ग नामक दो नारियेली (नारियलसे प्रस्तुत मादकविशेष) पोता है भाग में विभक्त है। ये लोग वा-सारा और गृही हैं। तथा महम्मदके उपदेशानुसार उपवास, देवाराधना और मुरीदोंको दीक्षा देना इनका प्रधान कार्य और उप- चित्तवृत्तिका संयम करना नहीं सीखता उसे वे-सारा ' जीविका है। ये लोग राजाके दिये हुए इनाम और और जो महम्मदके वतलाये हुए आदेशका पालन करता, जागीरका भोग करते है। कोई कोई धनाढ्य उमरा वा भजन और उत्सवादिमें लगा रहता उसे वा सारा नवाव-सरकारसे मासिकवृत्ति भी पाता है। कहते हैं। ___ यह मुशाएक वा मुर्शदगण कभी कभी पीरका खलिफत् इन फकीरों से जो तीर्थयात्रामें अपना जीवन विताते वा प्रतिनिधिका पद पाते हैं। पीर जिसे खलिफत् देते वे दरवेश कहलाते हैं। दरवेश श्रेणीके मध्य जो कृषि,- हैं उसे सङ्गतिसम्पन्न होने में साधारण मुशाएक फकीर वाणिज्य और भिक्षावृत्ति द्वारा स्रोपुत्रका पालन करते और आत्मीय कुटुम्वोंको निमन्त्रण कर भोज देना होता वे वा-सारा और सालिक नानसे प्रसिद्ध हैं। तीर्थ- 1 है। शिरनी वा पुलावके ऊपर फतिहा पढ़नेके वाद यातादि इनके धर्मकर्मका प्रधान अङ्ग है। मजुव | वह उपस्थित जनसाधारणको बांट दिया जाता है तथा (संसार-निर्लिप्स) श्रेणीके दरवेश विवाहादि नहीं करते। सबके सामने वह खलीफाके पद पर अभिषिक्त होता है। सिर्फ कोपीन पहन कर वे वाजार वा रास्ते रास्ते घूमते जो मुशाएक वालो ( महापुरुष ) होना चाहता है हैं। इस श्रेणीके मध्य कितने बुजुगीं दिखा कर पूजनीय हो उसे कृच्छसाध्य कार्यका अनुष्ठान करना पड़ता है । इन- गये हैं। तृतीय आजादगण ब्रह्मचर्यका अवलम्बन कर में जगल, जिक्किर, कम्मव आदि उल्लेखनीय हैं । ये सब निभृत स्थानमें उपासना करते हैं। ये लोग सर्वाग, रियाजत्, और, दीद और जिकिरका विषय अच्छी मुण्डन कर लेते हैं। भिक्षासे जो कुछ मिलता है वही | तरह जाननेके लिये मुशाएकोंसे सहायता मांगनी खा कर रह जाते हैं। तीर्थपर्यटन इनका मुख्य कर्म है। पड़ती है। शेपोक्त दोनों श्रेणीके फकीर गृहहीन होते और वे सारा कोई कोई मुशाएक वा दरवेश पञ्चेन्द्रियको रोकने- कहलाते हैं। की शिक्षा देता है। एक पञ्च इन्द्रिय पञ्चमौजी नामसे इसके अतिरिक्त कलन्दर, रसूलशाही और इमाम | प्रसिद्ध है। १ सर्पमौजी-कर्ण, अच्छी तरह पता लगाए शाही नामक और भो तीन दरवेशश्रेणो हैं। कलन्दरके | विना मुनते ही गुस्सा आना और वदला लेनेको उतारू मध्य भी वे-सारा और वा-सारा नामक दो खतन्त्र दल होना, २ चिल्लमौज-चक्षु, वस्तु-विशेषको देखते ही 'देखने में आते हैं। ये लोग निर्जन स्थानमें घर वना कर लोभ आकर्षण और चित्तहरण, ३ भ्रमरमौजी-नासिका, दिन विताते हैं। गृहस्थ जो कुछ श्रद्धापूर्वक देता है, | सुंधते हो चित्तकी विकृति, ४ कुकुरमौजो-जिला, खाद्य वही इनको उपजीविका है। इस श्रेणोके मध्य कोई कोई। द्रष्यमें लोभ करनेवाला और ५ वृश्चिकमौजी-लिङ्ग विवाह भी करता है, पर अधिकांश ऐसे हैं, जो संसार- कामोहोपनकारी, यह पञ्चन्द्रिय काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह 'शून्य हो ईश्वरकी उपासनामें समय बिताते हैं। रसूल और मात्सर्य नामक छः रिपुओंका प्रवर्तक होनेके कारण शाही लोग मूछ दाढ़ी आदि मुड़वा लेते हैं। कौपीन दरवेशोंने उन्हें रोकनेको व्यवस्था दी है । अर्थात् चित्त- और उत्तरीय वस्त्रके सिवा इनका और कोई पहनावा वृत्तिको कावूमें करके भक्ति और ज्ञानमार्गमें विचरण 'नहीं है। इनमें कोई भी विवाह नहीं करता। मिक्षा करना मानवका एकान्त कर्तव्य है, इसी कारण उन्होंने ही उपजीविका है। जो फकीर नाफसे ले कर जनसाधारणको इन्द्रियसंयम करनेका आदेश दिया है। कपाल तक काली मिट्टीका उर्ध्वपुण्ड लगाता, मूंछ ! मृत्युकाल उपस्थित होने पर मुसलमान मालको