पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७२

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. मुसलमानधर्म चढ़ाना नामसे प्रसिद्ध है। इस दिन प्रेतात्माके उद्देशसे। है । अलावा इसके मृतस्थान, शवधौत स्थान और मृतके आत्मीय तरह तरहके फल, चिउंडा, पान-सुपारी : कब्रिस्तानमें हर एक रातको रोशनो जलाई जाती है। आदि ले कर मुल्लाके. साथ कनिस्तानमें जाते हैं और अवस्थानुसार ३, १० वा.४० रात तक यही नियम चालू प्रेतात्माकी मुक्ति-कामनाके लिये एक दो वा तीन बार | रहता है.। कोई कोई इस अशौचके समय मसजिद में कुरानका पाठ करते हैं। कभी कभी तो ५० से १०० जलपूर्ण नये पात्रके साथ रोटी ऑदि खाद्य द्रष्य भेजा . मुल्ला वैठ कर प्रेतात्माकी मङ्गलकामना करते हैं। इसके करता है। मसजिदका कोई आदमी फतिहा पाउ..कर वाद कनके ऊपर रंगा हुआ कपड़ा पिछा कर उसके | उसे स्वयं खा लेता है। ४० दिन में पूर्वकथित जिया ऊपर फूल छिड़क देते अथवा फूलको मालाकी चादर | रत समाप्त होता है । इस दिन फकीर, आफिजान, ढंक देते हैं। इसके बाद फतिहा पाठ करके सभी घर दरिद्र और अपने वन्धुओंको वड़े. समारोहसे खिलाया लौटते हैं। महम्मदीय स्मृतिमें इस क्रियाका कोई विधान | जाता है। मृत्युके वाद तीसरे,.छठे, नौवे. और वारहवें नहीं है, वह केवल भारतीय हिन्दुओंका अनुकरण देशा महीने में प्रेतात्माकी तृप्तिके लिये मासिक श्राद्ध. और चारमात्र है । इस प्रकार १० दिनमें दशपिण्ड, २० दिन सपिण्डीकरणकी तरह पुलाव, आदि खाद्य द्रष्य प्रस्तुत में पिष्टक पिण्ड और ३० दिनमें फतिहा और भोज तथा| कर फतिहा-पाठके दाद सभीको बांटा जाता है। इस ४० दिनमें श्राद्धाचार किया जाता है। दिन अवस्थापन व्यक्तिमात्र हो दीन दुःखीको वस्त्र और . . ४० दिनका कार्यारम्भ होनेके पहले अर्थात् ३८वें। धन दान करते हैं। शामको कनके ऊपर फूलको चादर दिनमें वे १०३ दिनकी तरह पुलाव आदि यांध कर उस विछाते हैं । त्रियां ४० दिनमें तथा यायिक जियारतमें प्रेतात्माको उत्सर्ग करते हैं। पोछे उस दिन संध्यासे | कब्रिस्तानमें आ सकती हैं। इसके सिवा अन्यान्य समय तरह तरहफी रसोई बना कर एक विरतनमें तथा अर्गजा, उन्हें आना निषेध है। प्रति शुक्रबारको कब्रिस्तान जा सुरमा, काजल, अवीर, पान और सुपारो तथा कुछ वस्त्र कर प्रेतके उद्देशसे फतिहा-पाठ करना प्रत्येक मुसल- और अलङ्कार एक दूसरे वरतनमें सजा कर प्रेतका | मानका कर्तव्य है। भोगविलास चरितार्थ करने के लिये, उसको प्राणवायु ___वार्पिक जियारत वा सपिण्डीकरण होनेके वाद जिस स्थान पर निकली है, ठीक उसी जगह गाड़ रखते । प्रेतात्मा पितृपुरुपोंके साथ गिनी जाती है। इस हैं। पीछे समाधि स्थानके ऊपर मालाका चन्द्रातप | समय एकमात्र शव-ए-वरात वा वकरीद उत्सवमें उन लटका देते हैं। इसको लहद-भरना कहते हैं। मुसल-1 लोगोंके नामसे, एक साथ फतिहा-पाठ किया जाता है। मानोंका विश्वास है, कि ४० दिनमें प्रेतात्मा घर छोड़ मुसलमानोंके मध्य वार्षिकश्राद्धमें भोज्यदान आदिका कर चला जाता है। उसके एक दिन पहले यदि उसके भी विधान है। . . .. उद्देशले खाद्यादिन दिया जाय, तो ४०वें दिनमें वह इन लोगों में प्रकृत अशौच १० दिन तक रहता है। पिएड खानेको नहीं आता ! इस दिन रातको जग इन दश दिनोंमें कोई भी मृत्के आत्मोयके हाथका जल मौलतका पाठ किया जाता है। महम्मदीय नहीं पीता। अशौचके समय वे मांस मछलो कुछ भो . शास्त्रमें ऐसा कोई नियम नहीं है, यह आधुनिक मुसल-1 नहीं खाते। इस समय आचार और वासी खाद्य मान सम्प्रदायका कल्पित है। खाना भी निषिद्ध है। भारतीय मुसलमानोंने कहीं कहीं. मृत्युस्थानमें प्रतिदिन मृत् ध्यक्तिके | हिन्दूके अनुकरण पर इस देशाचारको ग्रहण किया है। उद्देशसे एक आव-खोरा.जल और रोटी रख दी जाती है। कुरानमें इसका कोई विधिनिषेध नहीं देखा जाता। दूसरे दिन सवेरे वह जल एक पेड़के मूलमें डाल कर रोटी ...उक्त उत्सव और क्रियापद्धतिके सिवा आर्यावर्त्तवासी और ग्लास फकीरको दे दिया जाता है तथा फिरसे नया मुसलमान हिन्दुओंकी तरह नौ-रोज नववर्षारम्भ पर्व .प्रवन्ध होता है । इसी प्रकार ४० दिन तक चलता रहता | तथा वसन्त वा वसन्तोत्सव और भाद्रमासमें नौका- Vol, XVIII, 43