पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१७७

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२७२ मुस्किल-मुस्ताक सनि, नौशिरवासी और मेरवारी ब्राहुइ जाति यहाँ अपना | आमदोष और विसूनिका आदि रोग नष्ट होते हैं तथा प्रभाव फैलाए हुई है। वलवीर और अग्निकी वृद्धि होती है। मुस्किल ( अ० स्त्री० ) मुश्किल देखो। (भैषज्यर० ग्रहण्यधिकार) मुस्की (हिं० स्त्री०) मुसकराहट देखो। मुस्तग-मध्यपशियाके चीन तातारमें अवस्थित कौन- मुस्टंडा (हिं० वि०) १ हृष्टपुष्ट, मोटा ताजा । २ वद्माश, | लुन पर्वतमालाके एक अंशका नाम । मुस्तगसङ्कटके गुडा। दक्षिण अक्षु और कोकशाल नदीके सङ्गमस्थल पर अक्षु मुस्त (सं० पु०) मुस्तयति एकत्र संहतोभवतीति मुस्त-क, | नगर वसा हुआ है। यह अक्षा० ७८ ५८ उ० तथा एकशिफायामस्य बहुमूल-सम्बद्ध तया तथात्वं । १, देशा० ४१.६ पू०के मध्य फैला हुआ है। पश्चिम और सुस्तक, नागरमोथा । १ कन्दविषभेद। । पूर्व एशियांके चीन देशोय पण्यद्रष्योंका वाणिज्यकेन्द्र मुस्तक (सं० पु० क्लो०) सुस्त खार्थे कन् । तृणमूल-| होनेके कारण यह नगर वहुत समृद्धिशाली हो गया है। विशेष, मोथा। इसे तैलङ्गमें तुगमेस्ति, सकहतु: । मुस्तगिरि (सं० पु०) पर्वतभेद । गुविय और तामिलमें कोरय कहते है। संस्कृत मुस्तनीस (अ० पु०) १ वह जो किसी प्रकारका इस्त- पर्याय-कुरुविन्द, मेघ, मुस्ता, मुस्त, राजकसेरु, | दोआ या अभियोग उपस्थित करे, फरियादी । २ मुद्दई, मेघाख्य, गाङ्गय भद्रमुस्तक, अभ्रनामक, श्रीभद्रा, भद्रक, | दावेदार । भद्रा । गुण-तिक्त, कटु, वायुनाशक, ग्राहक, दीपन । मुस्तनद (अ० वि०) जो सनदके तौर पर माना जाय, (राजव०) भावप्रकाशके मतसे पर्याय-वारिदनामक, | विश्वास करनेके योग्य, प्रामाणिक । कुरुविन्द, कोरक-सेरुक, भद्रमुस्त, गुन्द्रा, और नागर | मुस्तराना (अ० वि०) १ अलग किया हुआ, छाँटा हुआ। मुस्तक । गुण-कटु, शीतल, प्राहक, तिक्त, दीपन, पाचन २ जो अपवाद स्वरूप हो। ३ जिसका पालन औरों के फषाय, कफ, पित्त, अष्टक, तृष्णा, ज्वर और कृमि- | लिये आवश्यक हो, वरी किया हुआ। नाशक । अनुपदेशमें जो मोथा उपजता है वही वढ़ियां मुस्तहक ( म० वि०) १ हकदार; अधिकारी । २ योग्य, है। सब प्रकारके मोथोंमे नागरमोथेको श्रेष्ठ चतलाया| पान। है। १ स्थावर विषभेद । मुस्ता (सं० स्त्रो०) मुस्त टाप् । मुस्तक, मोथा। "चत्वारि वत्सनामानि मुस्तके द्वे प्रकीर्तिते ॥" मुस्ताइद खाँ-सम्राट बहादुर शाहके वजीर इनायत (सुश्रुत कल्पस्था० २ अ०) | उल्ला खाँका मुन्शी । इसका असल नाम महम्मद शाकी मुस्तकादि ( सं० पु०) विषम ज्वरमें कषायभेद । था । इसने मासिर-इ-आलमगिरो नामसे सम्राट मुस्तकाद्यमोदक (सं० क्लो०) अजीर्ण रोगमें प्रयोज्य मोदक- | मालमगोर वादशाहका इतिहास लिखा है। ४० वर्ष तक औषधविशेष । प्रस्तुत प्रणाली-त्रिकटु, त्रिफला, चितामूला मुगल-राजसरकारमें रह कर इसने जो सब घटनाएं लवड, जीरा, कृष्णजीरा, यमानी, वनयमानी, सौंफ, पान, अपनी आखों देखी थों उन्हींको इस ग्रन्थमें विवरण है। सोयाँ, शतमूली, धनियां, दारचीनी, तेजपत्र, इलायची, | अपने प्रतिपालकके आदेशसे इसने १७१० ई० में उक्त अन्य नागेश्वर, वंशलोचन, मेथी और जायफल, प्रत्येक २ | समाप्त किया। तोला करके, मोथा ४८ तोला और चीनी कुल मिला कर मुस्ताक-पटनावासी मुसलमान-कवि महम्मद कुलीखाँ जितना ही उससे दूनी अर्थात १॥० 'सेर । - का एक नाम । इसके पिताका नाम हासिम कुली साँ इन सब द्रष्योंको यथाविधान पाक करके मोदक था। इसने महम्मद रोशन जोसिस्के समीप लिखना पढ़ना सीखा था। पीछे यह नवाव जैन उद्दीन अह्मद धनावे । मात्रा ॥तोलासे १ तोला, और अनुपान शीतल खां हैवतजङ्गके गृहरक्षक (दारोगा) के पद पर नियुक्त जल वतलाया गया है। प्रति दिन शामको इसका सेवन करनेसे ग्रहणी, अतिसार, अग्निमान्य अरुचि, अजीण, हुआ । १८०१ ई०में इसकी मृत्यु हुई।