पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१८४

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मुहम्म १८१ मुसलिम तथा उसके दो नन्हें लड़कोंके मारे जानेको खवर रोगसे पीड़ित रहने पर भी धर्मके लिये प्राण न्योछावर सुन कर बड़े मर्माहत हुए। इसके कुछ समय बाद हो करने पर उतारू हो गये। उनका अभिप्राय समझ कर सिरियासे आयजिदके दो वजोर हुसेनके विरुद्ध युद्ध करने हुसेनने अपने पुत्रको आलिङ्गन कर कहा, 'मेरे नयनों के के लिये उपस्थित हुए। उन्होंने हुलेनको कहला भेजा, : तारे! ऐसी वात फिर कभी भी मुखसे न निकालना, तुम 'हुसेन ! यदि जीवनमें ममता हो, तो फौरन आयजिदकी। मेरे वंशको रक्षा करोगे। मेरे पिता, पितामह और बड़े अधीनता स्वीकार कर जाओ, नहीं तो तुम्हारा विस्तार भाई जो दैव रहस्य रूपी मन्त्र मेरे कानों में फूक गये हैं, नहीं।' उत्तरमें हुसेनने कहा, 'क्या तुम लोग मुसलमान | मैं उस अमूल्य रत्नको तुम्हें देता हू, प्रलय काल तक हो ? क्या तुम्हारी अक्ल मारी गई है, खिलाफत किसका मेरा वंशधर उस रहस्यका अधिकारी रहेगा।' है ? किसके पिता और किसके नानासे इस्लामधर्मका जैन-उल-आवेदोन पितासे वह गुप्त रहस्य मालूम प्रचार हुआ है ? यदि तुम लोग मेरे विरुद्ध 'जहाद' (धर्म कर उनके आदेशानुसार रणस्थलको छोड़ चले गये। युद्ध ) करना चाहते हो, तो मैं खुदाके पैरों पर अपनी पुत्रको विदा कर हुसेन जुलजन्ना नामक अपने एक जान न्योछावर करनेको तैयार हूं।' प्रियतम घोड़े पर रणस्थलमें प्रकट हुए । उस समय वे सिरियापतिने युद्ध ठान देनेको हुकुम दे दिया । आय: प्याससे छटपटा रहे थे, कहीं भी जल नहीं मिलता था.। जिदको सेनाने फुरात (युटिस) नदीके समीप छावनी शत्रपक्षको सम्बोधन कर उन्होंने कहा, 'मुसलमान डाली। नदीके दूसरे किनारे 'मारिया' नामक जंगलमें भाइयो! क्या तुम लोग नहीं जानते, कि मेरे जिस माता- हुसेन दल वलके साथ उपस्थित हुए। यही स्थान 'कर- महके मूल मन्त्रको तुम लोग उच्चारण करते हो, मैं उन्हीं वला' नामसे मशहूर है। करवलामें पहुँच हुसेनने सवों पैगम्वरका नाती हूँ और अलीका पुत्र हूँ। ईश्वर अथवा से सम्बोधन कर कहा था, "भाई मुसलमान, इस्लाम- अपने पैगम्बरसे क्या तुम लोग डरते नहीं, उस अन्तिम धर्मिगण! यदि किसीको भी स्त्री-पुत्रपरिवारके प्रति विचारके दिन क्या तुम्हें मेरे मातामहकी जरूरत नहीं' ममता हो, तो मैं दिल खोल कर कहता हूं, तुम लोग पड़ेगी ? उस अन्तिम दिनको सोच कर क्या तुम लोग इस करवलाको छोड़ कर अपने घर चले जाओ। क्योंकि भीत और कम्पित नहीं होते १ तुम लोगोंके हाथसे धर्म- दिव्य चक्षसे देखता हूं कि मैं इस करयलामे धर्मके के लिये हमारे आत्मीय कुटुम्ब बन्धु वान्धव सभी प्राण लिये जीवन उत्सर्ग करूंगा, तब फिर व्यर्थ क्यों तुम | विसर्जन कर रहे हैं। यह सव वात तो दूर रहे, अभी लोग मेरे लिये कष्ट और विपद् झेलोगो?" इस प्रकार | मेरा यहो अनुरोध है, कि परिवार सहित मुझे इस अरव हुसेनके कहनेसे कोई तो मक्का और कोई मदोनेकी ओर देशसे आजम (पारस्य ) देश जाने दो। यदि जाने न चल दिया। सिर्फ ७२ आदमो वहां रह गये। पोछे | दोगे, तो खुदाको दुहाई है, थोड़ा जल पिला कर मेरी ओमर और अवदुल्ला के अधीन कुछ दल सिपाही आय- जान वक्षाओ । देखो ! तुम्हारे हाथी, घोड़े, ऊंट, गाय, बैल जिदका पक्ष छोड़ कर हुसेनके दल में मिल गया। शत्रु सभीको काफो जल मिल रहा है, किन्तु मैं ऐसा अभागा पक्षमें ३० हजार आदमी थे। हुसेन मुट्ठी भर सेना ले | हूं कि मेरा परिवार जलके लिये तड़प रहा है (जलाभाव- कर कव तक ठहर सकते थे। उनके प्रिय अनुचरों ने से मातृस्तनमें भी दूध नहीं, बच्चों के कण्ठ सूख रहे हैं। धर्मके लिये सैकड़ों शत्रुसेनाको यमपुर भेज कर अपने हुसेनके कातर स्वरसे सबोंका हृदय पिघल गया। जीवनको उत्सर्ग कर दिया था। उनमेंसे हुर, अवदुला, बहुतेरे उनके सामनेसे हट गये, कुछ समयके लिये शान्ति औवन, हन्तल्ला, हयलाल, अन्वास, अकवर और कासिम डंका बजाया गया। किन्तु शान्ति कहाँ ? उनके परि- हो प्रधान थे। वारके मध्य जलके लिये हृदयभेदी आर्तनाद हो रहा था। .. धर्मयुद्धमें जव सभी एक एक कर प्राण दे रहे थे, दूसरे दिन पुनः रण-डका वजाया गया। आज उसी समय हुसेनके प्रिय पुत्र जैन-उल-आवेदीन कठिन हुसेन जीवन उत्सर्ग करनेके लिये प्रस्तुत हुए । आज Vall xvlil 46