पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१८६

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मुहर्रम कर भाग न जाय इस आशङ्कासे पहरूने दरवाजा खोला इस पर बालकने मर्माहत हो आइजिदसे कहा, 'यह कैसा कर भीतर प्रवेश किया। किन्तु 'पैगम्बर लोग ऊषा- रानादेश ! क्या आपने मुझे खुतबा पढ़नेका हुकुम नहीं लोकमें मुण्ड देखने भाये है, अभी तूने यहां आ कर दिया है ? जितने सभासद वहां उपस्थित थे सोने क्यों उन लोगोंका असम्मान किया' यह कह कर एक वालकसे खुतबा सुनना चाहा। राजाकी आज्ञा पा आदमीने उसके गालमें तमाचा जमाया। उस तमाचे.' कर जैन-उल आवेदीन महम्मद और अलीके वंशधरोंकी से उसके गालमें काला दाग पड़ गया। सबेरे पहरूने : सुख्याति ज्ञा कर जोरसे खुतवा पढ़ने लगा। उसकी आ कर नायकसे अपनी दुरवस्था और पूर्व घटना कह मीठी बातोंसे सिरियावासी प्रेमाशु वहाने लगे । सिरिया सुनाई। पतिने देखा, कि उसके सभी अनुगत वालककी वात पर यथासमय सभो मुण्ड सिरिया लाये गये । आयजिदके विचलित हो गये हैं। पीछे उन्होंने कहीं मेरे विरुद्ध आनन्दका पारावार न रहा । मुण्डोंको देख कर उसने कहा, गधारण न करे, इस आशङ्कासे उसने अपने मोवा "सुफियान और ओमयाका वंशनाश करना जिसका उद्देश्य ' जानको कमातका पाठ अर्थात् धर्मोपदेश देनेका हुकुम था, अरव और आजमका खलीफा होनेकी उच्चाशा-7 दिया । भजना शेष होने पर समस्त मुण्ड और उपयुक्त- से जो उन्मत्त हो गया था ; देखो, खुदाने उसे उपयुक्त राहका खर्च दे कर जैन उल आवेदीनको मदोना भेज दण्ड दिया ।' हुसेनके छोटे लड़के जैन उल आवेदीनको दिया गया। ४० दिनकं वाद आयेदीन करवला पहुंचा यह बात तोरके समान जा लगो। उसने उठ कर कहा, और आत्मीय स्वजनोंकी मृत देहमे मुण्डको जोड़ कर 'सिरियावासी आयजिदके पक्षावलम्वी लोभी अमीरो!। उनकी समाधिक्रिया सम्पन्न की। मदीना आ कर सभी मैं पूछता हूं, कि तुम लोग मेरे पिताके नानाके धर्ममतका महम्मद और हसनकी कबके पास गये और अजस्र आंसू पालन करते हो या आविसुफियानके मतका ? क्या तुम बहाये। पीछे समस्त मदीनाराज्य जैन-उल आवेदीनके लोगोंको खुदाका डर नहीं है ?' छोटे वालककी वात अधिकारमुक्त हुआ। सुन आयजिदने अत्यन्त कुद्ध हो उसी समय वालकका ४६ हिजरीमे हुसेनने अपने जीवनको उत्सगं किया सिर काट डालनेका हुकुम दिया। किन्तु वालकके चाँद- था। उसो दिनसे ईद उत्सवका आमोद प्रमोद उठ गया, सा मुखड़ा देख कर अमीर और उमरा लोगोंको पड़ी। उसकी जगह शोकचिह्नधारणऔर सर्वत्र विलाप प्रच. दया आई। उनको अरजू विनतीसे पापाणहृदय आय- लित हुआ। जिदका भी मत पलट गया। सिरियापतिने जैन-उल- ३ आशुरा अर्थात् मुहर्रमके प्रथम १० दिनका अनुष्टान । आवेदोनसे पूछा, 'बच्चा! वेधड़क कहो, तुम क्या । प्रथम चन्द्रदर्शनके सन्ध्याकालसे मुहर्रम उत्सव चाहते हो ?' वालकने उत्साहपूर्वक कहा, "मैं तोन चोज शुरू होता है। किन्तु दूसरे दिनके प्रातःकालसे मुहर मके चाहता हूँ, १ मेरे पिताके हत्याकारीको मुझ सौंप दें। महीनेका पहला दिन गिना जाता है। २परिवारवर्ग और मण्डोको सरकार र मदाना मज द आर ३ कल शुक्रवार है, मुझ खुतवा | खन वा त्रयोदशी तिथि तक रहता है। किन्तु शुरूके पढ़ने दें।" दश ही दिन आशुरा वा पर्व दिन माने जाते हैं। आयजिद वालकके प्रस्ताव पर सहमत तो हो गया, पर्वके लिये एक खास घर वना रहता है। वह घर पर उसके साथ साथ चुपकेसे अपने सिरीय खतिवको | आशुरखाना (दशाहकाघर ), ताजियाआना (शोकागार) अपने पितृपुरुषकं स्तुतिमूलक खुतवा पढ़नेकी भी और आस्ताना (फकोरका स्थान ) समझा जाता है। सलाह दी। दूसरे दिन सिरीय खतिव राजाके कथना- मुहर्रमसे ५-६ दिन पहले माशुरखाना बनाया जाता है। नुसार महम्मद और अलीके वंशधरोंको निन्दा कर उच्च चन्द्रदर्शन होनेसे हो हुसेनके नाम पर थोड़ी शकरके स्वरसे आविसुफियान और ओमियाको तारोफ को।। ऊपर 'फतिहा' देकर वाजा वजाते हुए आलोया' करनेकी