पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१९

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मुद्राकर-मुद्रातत्त्व ( पाश्चात्य) पाशिनी-कण्ठपृष्ठ पर पाद निक्षेप-पूर्णक पाशके मुद्राङ्क (सं० क्ली० ) मुद्रा परकाचिह्न । समान गुढ़ रूपसे बन्धन करना, पाशिनी मुद्रा है। इस- मुद्राङ्कण (सं० क्ली०) १ मुद्रितकरण, किसी प्रकारको के अभ्याससे शक्ति उपचित होती है। मुद्राकी सहायतासे अंकित करनेका काम । २ छपाने- काकी-काक-चञ्चु-पुटकी तरह मुंहसे धीरे धीरे वायु पान । इससे काकके समान नोरोग देह प्राप्त होती मुद्राङ्कित (संवि०) १ मुद्राचिह्नित, मोहर किया हुआ । का काम, छपाई। है, कोई भी रोग उसे आक्रमण नहीं कर सकता। २ जिसके शरीर पर विष्णुके आयुधके चिह्न गरम लोहेसे मातङ्गिनी-कण्ठ तक जलमें अवस्थान करके नासा- दाग कर बनाए गए हों। रन्ध्र द्वारा जल आहरण करो, फिर उसे मुंहसे निकाल कर फिर उसे महसे ग्रहण करो, पोछे नासारन्ध्रसे | मुद्राटोरी ( स० स्त्री०) एक प्रकारको रागिनी । इसके गानेमें सव कोमल स्वर लगते हैं। निकाल लो। इसी तरह वार वार आहरण और निःसारण ! मुद्रातत्त्व वा मुद्राविज्ञान-( Numismatics ) वह शास्त्र करनेका नाम माकिनी मुद्रा है। इसके अभ्याससे | जिसके अनुसार किसी देशके पुराने सिक्कों आदिकी जरा मृत्यु नष्ट होती है। इसे कहीं एकान्त स्थानमें जा सहायतासे उस देशको ऐतिहासिक वाते जानी जाती हैं। कर साधना चाहिए। जो योगिपुरुष इसमें वास्तविक राजकीय चिह्नित जितने धातुखण्ड हैं उन्हें मुद्रा रूपसे अभ्यस्त होंगे, वे मातङ्गके समान शक्तिशाली होते कहते हैं। प्रत्येक देशको मुद्रामें उस देशके राजचिह्न तथा जहां कहीं भी रहें उनके अन्तरमें एक अपार अनि और जातोय धर्मचिह्न, देशाधिष्ठात्री देवता वा प्रसिद्ध चनीय सुख विराजमान रहेगा। नगरादिकी प्रतिकृति उत्कोण रहती हैं तथा प्रचलित भुजङ्गिनी-मुखविवरको किश्चित् प्रसारित करके वर्णमाला वा साङ्केतिक लिपिमालामें राजवंश और कण्ठसे अनिल पान करना, भुजङ्गिनी मुद्रा हैं। इसके मुद्राकालका परिचय रहता है । उन्हें पढ़नेमे अतीत अभ्याससे उदरस्थ अजीर्णादि विविध रोग शान्त होते है। कालकी बहुत सी बातें जानी जाती हैं। सोने, चांदी, ___ ऊपर कही हुई मुद्राओंका यथाविधि अभ्यास होनेसे तांबे, पीतल, कांसे आदिको धातुओंकी मुद्रा (सिक्का ) साधकोंको समस्त सिद्धियां प्राप्त होती है। रोग, शोक, वनतो है। अरव देशमें कांचकी भी मुद्रा प्रचलित है। बाधा, विघ्न, दैन्य, दुःख और अकालमरण आदि किसी | फिर दो तीन धातु मिली हुई मुद्राका भी प्रचार देखा भी प्रकारका उपद्रव उन्हें नहीं सता सकता। वे बड़े जाता है। आनन्दसे अपनी सुसाधनाके सुफलोंका आस्वादन करते यूरोपीय या पाश्चात्य मुद्रा। हुए अविनश्वर प्रगाढ़ सुखमय परमात्माके परमपदमें पाश्चात्य प्रनतत्त्वविदोंने प्राचीनकालके विभिन्न विलीन हो जाते हैं। देशोंमें प्रचलित मुद्राखण्डका संग्रह किया है। उन सब मुद्राकर (सपु०) १ राज्यका वह प्रधान अधिकारी | मुद्राओंकी परीक्षा कर वे मुद्रातत्त्व प्रकाशित कर गये जिसके अधिकारमें राजाकी मोहर रहती है । ( Lord of | हैं। मुद्रातत्त्वके सम्बन्धने हजारसे ऊपर पुस्तक लिखी the Privy seal)। २ वह जो किसी प्रकारकी जा चुकी हैं। उन्हें पढ़नेसे प्राचीन कालका इतिहास मुद्रा तैयार करता हो । ३ वह जो किसी प्रकारके मुद्रण- जाना जा सकता है । मुद्राखण्ड, ताम्रशासन और शिला- का काम करता हो। ( Printer, Pressman) लिपिकी तरह धातुमय अक्षरमाला और शिल्पनिपुणता मुद्राकान्हाड़ा (संपु०) एक प्रकारका राग । इसमें विभिन्न भाषाके अतीत कोर्तिकलाप और विलुप्त सब कोमल स्वर लगते हैं। साम्राज्तका साक्ष्य देती है। मुद्राक्षर (सं० क्ली०) १ मुद्रणोप-योगी अक्षर, वह अक्षर __ मुद्रा भूतकालका चित्र और मास्कर विद्याका उज्ज्वल जिसका उपयोग किसी प्रकारके मुद्रणके लिये होता हो। निदर्शन है। वाहिक ( Bactria ) साम्राज्यको मुद्रा २ सीसेके ढले हुए अक्षर जो छापनेके काममें आते हैं, द्वारा वहांका इतिहास, जो अन्धकारसे ढका था, कुछ टाइप।