पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१९०

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मुहुर्गिर-मूंगफली १८७ . मुहुर्गिर (सं० लि०) सर्वदागीयमान, जो हमेशा गान | अधिक होनेसे मुहूर्त भी दो दण्डसे अधिक होगा। करता हो। दिवामान जितने दण्डका होगा, उसका पन्द्रहवां भाग मुहुपुची ( हिं० पु० ) काले रंगका एक प्रकारका छोटा | मुहूर्त है। रात्रिकालमें भी इसी नियमले मुहूर्त स्थिर कोड़ा। यह मूंगफलीको फसलको नष्ट कर देता है।। किया जाता है। ८ मिनिटका एक मुहूर्त होता है। रातको ये कीड़े अधिक उड़ते दिखाई देते हैं। ये पत्तियों "प्रांतःकालो मुहुर्ती स्त्रीन्सङ्ग वस्तावदेव तु । पर अंडे देते हैं जिससे पत्तियां सूख जाती हैं। इनसे मध्याह्रस्त्रि मुहर्तस्याद पराह स्ततः परम् ॥ खेतके खेतकी फसल कालो हो जाती है। वर्षा होने पर साथाहनिमुहूर्त: स्यात् श्राद्ध तत्र न कारयेत् । ये सब कीड़े नष्ट हो जाते हैं। राक्षसी नाम सा वेला गहिता सर्वकर्मसु ॥" (तिथितत्व) मुहुर्भाषा (सं० स्त्री० ) मुहुः भाषा भाषणम् । १ पुनः पुनः २ निर्दिष्ट क्षण या फाल, समय । ३ फलित ज्योतिषके कथन, धार वार कहना । पर्याय-अनुलाप । २ विरुक्ति, | अनुसार गणना करके निकाला हुआ कोई समय जिस . दो वार कहना। पर कोई शुभ काम आदि किया जाय । ४ ज्योतिर्विद्, . मुहुभुज् (सं० पु० ) अश्व, घोड़ा। ज्योतिषी। मुहुमुहुस् (सं० अध्य० ) वार वार, फिर फिर। मुहर्शक ( स० वि०) मुहूर्त सम्बन्धयुक्त, एक मुहूर्त। . मुहुर्वचस् (सं० क्ली० ) मुहुः पुनः पुनः वचस् । वार वार | मुहूर्त्तगणपति (स० पु०) समय-निर्णायक प्रसिद्ध ज्योति कहना। नन्थभेद। इस सम्बन्धमें मुहूर्त्तचिन्तामणि, मुहर्त्त- मुहुश्वारो (सं० वि०) वार धार होनेवाला। दीपक, मुहूर्तदीपिका, मुहूर्तमार्शण्ड, मुहूर्तवल्लभा ये सव मुहुस् (सं० अध्य० ) मुह (मुहेः किच्च । उण २२१२१) इति अन्य पाये जाते हैं। उस् किश्च । पुनः पुनः, वार वार। मुहूर्तज (सं० पु० ) मुहूर्तगर्भजात पुत्र । मुहुष्काम (सं० त्रि०) पुनः पुनः प्राप्तेच्छु, वार वार | मुहूर्तस्तोम (सं० पु०) एकाहभेद । पानेकी इच्छा रखनेवाला। | मुहूर्ता (सं० लो०) दक्षकी एक कन्याका नाम । यह महरी (सं० पु.ली.) हुच्छ तीति ( अखिघसिभ्यः क्त। उण | धर्म वा मनुको पत्नी थी। इसके पुन मुहूर्त कह- ३८. ) इत्यत्र बाहुलकात् हुछेरपि उज्वलदत्तः, मुडा- | लाते थे। गमश्च प्राक् ( राल्लोपः । पा ६४।२१ । इति सूत्रण छस्य | मुहेर (सं० पु०) मुह्यति विचित्तीभवतीति मुह-( मुहेरा- लोपः । द्वादशक्षण परिमित काल, दिन रातका तीसवां | दयः। उण् १।३२ ) इति एरक । मूख, जडवुद्धि । भाग। सुश्रुतके मतसे वोस कलाका नाम मुहूर्त है। मू (सं० स्त्री० ) मव्यते इति म किम् ( ज्वरत्वरश्रीव्यविम- एक लघु अक्षरके उच्चारण करनेमें जितना समय लगता | वामुप धायाश्च । पा ६।४।२० ) इति साचीवकारस्योट है उसे अक्षिनिमेष कहते हैं । लघु अक्षर, जैसे क, इस इत्यादेशः। वन्धन । 'क' का उच्चारण करनेमें जो समय लगता है उसका मूंग (हिं० पु.) एक अन्न जिसकी दाल वनतो है। नाम अक्षिनिमेष है। विशेष विवरण मुद् शब्दमें देखो। ____ इस प्रकार पन्द्रह अक्षिनिमेषका एक काष्ठा, तीस | मूंगफली (हि० स्त्री० ) सारे भारतमें होनेवाला एक काष्ठाका एक कला और वीस कलाका एक मुहूर्त होता | प्रकारका क्षुप। यह क्षुप तोन चार फुट तक ऊंचा हो है। कलाके दशवें भागको भी मुहूर्त कहते हैं। तीस कर पृथ्वी पर चारों ओर फैल जाता है। डंठल इसके मुहूर्तकी एक दिन रात होती है। (सुश्रुत सूत्रस्था० ६ अ०) रोएँदार होते हैं और सोकों पर दो दो जोड़े पत्ते होते 'दिनपञ्चदशभागकभाग' प्रायः दो दण्ड होता है। किन्तु | | है। ये पत्ते आकारमें चक्रवंडके पत्तोंके समान अंडा- दिनमान घटता बढ़ता है। इस कारण जव दिनमान कार, पर कुछ लंबाई लिये होते हैं। जब सूर्य डूद ज्ञाते घटता है, तब दो दण्डसे भी कम मुहूर्त होगा। दिनमान | हैं, तब इसके पत्तोंके जोड़े आपसमें मिल जाते हैं और