पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१९१

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१९६ मूंगा-ज सूर्योदय होने पर फिर अलग हो जाते हैं। इसमें अर-| महासागरमें समुद्रके तलमें ऐसे समूह-पिण्ड हजारों हरके फूलोंकेसे चमकीले पोले रंगके २-३ फूल एक साथ मोल तक खड़े मिलते हैं। इनकी वृद्धि बहुत जल्दी और एक जगह लगते हैं। इसको जड़में मिट्टीकी अन्दर जल्दी होतो है। इनके समूह एक दूसरेके ऊपर पटते फल लगते हैं। उन फलोंके ऊपर कड़ा और खुरदुरा चले जाते हैं जिससे समुद्रकी सतह पर एक खासा टापू छिलका होता है तथा अंदर गोल, कुछ लंबोतरा और | निकल आता है। मूंगेकी केवल गुरिया ही नहीं बनती, पतले लाल छिलकेवाला फल होता है। यह फल छड़ी, कुरसी आदि बड़ी बडी चीजें भी बनती हैं। रूप-रंग तथा स्वाद आदिमें वादामसे बहुत कुछ मिलता साधारणतः मूगेका दाना जितना ही बड़ा होता है, जुलता है। इसी कारण इसे चिनियां बादाम भी उतना ही अधिक उसका मूल्य भी होता है। कवि लोग कहते हैं। बहुत पुराने समयसे ओंठोंकी उपमा मंगेले देते आए हैं। फागुनके प्रारम्भमें ही जमोनको अच्छी तरह जोत प्रबाल देखो। कोड़ कर दो दो फुटके फासले पर छः छः इञ्चके २ एक प्रकारका रेशमका कोड़ा जो आसाममें होता गड्ढे बना कर इसके वीज वो देते हैं। एक सप्ताहमें है। (स्रो०) ३ एक प्रकारका गन्ना। इसके रसका गुड़ वीज यदि अंकुरित न हो, तो कुछ सिंचाईको जरूरत है। | अच्छा होता है। आश्विन कार्तिकमें पीले रंगके फूल लगते हैं. ये फूल मूगिया (हि० वि०) १ मूगका सा, हरे रंगका। (पु०) मटरके फूलोंके समान होते हैं। इसके डंठलोंकी गांठों- २एक प्रकारका अमौआ रंग। यह मंग-का सा हरा मेंसे जो सीरें निकलती हैं, वहो जमीनके अन्दर जा कर होता है। ३ एक प्रकारका धारोदार चारखाना । फल बन जाती हैं। जव फल पक जाते हैं, तव मिट्टी मूछ ( हिं० स्त्री० ) ऊपरी ओंठके ऊपरके बाल जो केवल खोद कर उन्हें निकाल लेते हैं और धूपमें सुखा कर पुरुषोंके उगते हैं। ये बाल पुरुषत्वके विशेष चिह्न माने काममें लाते हैं। ये फल या तो साधारणतः यों ही जाते हैं। श्मश्रु देखो। अथवा ऊपरी छिलकों समेत भाड़में भून कर खाए जाते मूछो (हिं० स्त्री०) बेसनकी बनी हुई एक प्रकारको कड़ी। हैं। इनसे तेल भी निकाला जाता है। यह तेल खाने । इसमें बेसनके सेव या पकौड़ियां आदि पड़ो होतो हैं, तथा दूसरे अनेक कामों में आता है। इसका रंग जैतून सेव या पकौड़ियोंकी कड़ी। ' के तेलको तरहका होता है। चिनिया वदाम मधुर, मूंज ( हिं० स्त्री० ) एक प्रकारका तृण। इसमें डंठल या स्निग्ध, वात तथा कफकारक और कोष्ठको वद्ध करने- टहनियाँ नहीं होती, जड़से बहुत हो पतली दो दो हाथ .वाला माना जाता है। किसी किसीके मतसे यह गरम लंबी पत्तियां चारों ओर निकली रहती है। ये पत्तियां बहुत धनी निकलती हैं जिससे पौधा बहुत-सा स्थान और मस्तक तथा वीर्यमे गरमी उत्पन्न करनेवाला घेरता है। पत्तियों के बीच में एक सूत्र यहांसे वहां तक है। २ इस क्षु पका फल, चिनिया वदाम, विलायतो रहता है। पौधेके बीचोवोचसे एक सीधा काण्ड पतली मूंग। मूंगा (हिं० पु०) १ समुद्र में रहनेवाले एक प्रकारके कृमियों | छड़के रूपमें ऊपर निकलता है। इसके सिरे पर मंजरी मा-पिण्डको लाल उठरो जिसकी गुरिया वना कर | या घूएके रूपमें फूल लगते हैं। सरकंडेसे इसमें इतना पहनते हैं। इसकी गिनती रत्नोंमे की जाती है । समुद्र-| ही प्रभेद है, कि इसमें गाँठे नहीं होती और छाल वड़ो चमकीलो तथा चिकनी होती हैं। सीकेसे यह छाल तलमे एक प्रकारके कृमि खोलडोकी तरह घर धना कर एक दूसरेसे लगे हुए जमते चले जाते हैं। ये कृमि अचर उतार कर बहुत सुन्दर सुन्दर डलियाँ बुनो जाती हैं। जोवों में हैं । ज्यों ज्यों इनको वंशवृद्धि होती जाती है, त्यो मूज़ बहुत पवित्र मानी जाती है। ब्राह्मणके उपनयन त्यों इनका : मूह-पिण्ड थूहरके पेड़के आकारमें बढ़ता - संस्कारके समय वटुको मुजमेखला पहनानेका विधान चला जाता है। सुमात्रा और जावाके आसपास.प्रशांत | है।