पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१९४

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मूढगर्भ अलग हो कर जमीन पर गिरता है, गर्भके भी उसी ! "इहामृतञ्च सोमञ्च चित्रभानुश्च भामिनी । प्रकार धीरे धीरे नाड़ीवन्धनसे मुक्त होने पर प्रसवका | उच्चैःश्रवाश्च तुरगो मन्दिरे निवसन्तु ते ॥ समय उपस्थित होता है। कृमि, वायु वा अभिघातके इदम मृतमपा समुद्ध्वतं वै लघु गर्भमिम प्रमुञ्चतु स्त्री। द्वारा फल जिस प्रकार असमयमें जमीन पर गिर पड़ता तदनलपवनार्कवासवास्ते सहःवणाम्बुधरैर्दिशतु शान्तिम् ॥ है, गर्भ भी उसी प्रकार असमयमें निकलता है । चतुर्थ | मुक्ताः पशो विपाशाञ्च मुक्ताः सूर्येण रश्मयः । मास तक गर्भस्राव होता रहता है। उसके बाद छठे - मुक्ता सर्वभयाद्गर्भ एह्यहि विरमाभितः ॥" महीने में गर्भस्थ शिशुका शरीर कुछ कुछ कठिन हो जाता इसके बाद प्रसव करानेके लिये यथोक्त औषधका है, इस कारण पतन द्वारा गर्भ वाहर निकलता है। जो भी प्रयोग करे । गर्भस्थ सन्तानके मर जाने पर गर्भिणी- स्रो गर्भावस्थामें मस्तक न उठा सकती है तथा शीत-। को चित सुला कर दोनों जांघको कुछ टेढ़ा रखे । कमरके लाङ्गी, लजाहीना, नीलवर्ण और उन्नत शिराकी हो नीचे कपड़ा लपेट कर कमर ताने रहे। पीछे गर्भसे मृत जातो है उसका गर्भ नष्ट हो जानेकी सम्भावना है। सन्तानको खींच कर बाहर निकालनेमें धामनी और केवल नष्ट हो नहीं, उसके जान पर भी खतरा है । गर्भ! शाल्मलिका रस, गेरू मट्टो तथा हाथमें घी लगा कर में स्पन्दन तथा समस्त लक्षण नहीं रहनेसे एवं पाण्डु, अपत्यपथमें घुसावे और गर्भको खींचे। गर्भस्थ मृत और श्यामवर्ण दिखाई देनेसे उच्छ्वासमें दुर्गन्ध निक- शिशुके दोनों तक्थी वाहर निकल पड़नेसे अनुलोमभाव- लती है। इस प्रकार दुर्गन्ध निकलने तथा शूलवेदना : में उन्हें खींच कर वाहर करे। यदि एक ही सक्थी होनेसे जानना चाहिये, कि गर्भस्थ सन्तान गर्भ में ही मर प्रसवपथमें आ जाय, तो दूसरेको प्रसारित करा कर गई है। गर्भवती स्त्रोके मानसिक वा आगन्तुक उप-! वाहर खीच निकालना होगा और यदि केवल ताप अथवा पीड़ा द्वारा भी कुक्षिदेशमें गर्भ विनष्ट विसापडले अपयशामायनोतियोगको होता है। ऊपर उठा कर दोनों सक्थीको प्रसारित करा कर बाहर चिकित्सा। निकाले। मूढगर्भरूप शल्यका उद्धार करना अत्यन्त कष्टकर त्यन्त कष्टकर तिर्यगभावमें परिघकी तरह आ जानेसे अर्थात् गर्भा- है। क्योंकि इसमे योनि, यकृत, प्लीहा और अन्नि इन- शयके एक पार्श्वमे शिर और दूसरे पार्श्वमें पैर रहनेसे के मध्यस्थित गर्भाशयके भीतर सिर्फ स्पर्श द्वारा कार्य | प्रसबके द्वारमे नहीं मानेसे पश्चाद् अर्द्धभागको ऊपर करना होता है। उत्कर्षण, आकर्षण, स्थानापवर्तन, उठा कर पूर्वाई भाग (शिरकी ओर )-को अपत्यपथमें उत्कर्तन, भेदन, छेदन, पीड़न, ऋजुकरण और दारण ऋजुभावमें ला कर निकाले। शिरको अपत्यपथके आदि गर्भसम्बन्धमें वा गर्भिणीके सम्बन्धमें ये सव कार्य केवल हाथसे ही करने होते हैं। अतएव इस समय पार्श्वमें घुमा कर कंधेके अपत्यपथमें ला कर वाहर करना विशेष सावधानता रखनो होगी। होगा। शेष दो प्रकारका मूढगर्भ असाध्य है। असाध्य- . मूढगर्भकी गति स्वभावतः ८ प्रकारको वतलाई गई की हालतमें अर्थात् हाथसे वाहर न निकाल सकने पर है। उनमेसे अक्सर तीन ही प्रकारसे गर्भसङ्ग होता है। शस्त्रका प्रयाग करना चाहिय ! गर्भस्थ शिशुकं जावित गर्भ निकलने अथवा प्रसव नहीं होनेको गर्भसङ्ग कहते | रहनेसे कभी भी शस्त्रको काममें न लावे, नहीं तो माता है। मस्तक, स्कन्धदेश वा जघनदेशके अपत्यपथमें। और सन्तान दोनों ही नष्ट होती हैं। . विषमभावसे स्थित होनेसे ही यह त्रिविध गर्भसङ्ग हुआ सन्तानके गर्भमैं मर जानेसे उसे बाहर निकालना करता है। गर्भ में सन्तानके जीवित रहनेसे प्रसव कराने- बहुत कठिन है। मण्डलान वा अंगुली नामक शस्त्र को कोशिश करनी चाहिये । प्रसव नहीं करा सकने- द्वारा मस्तकको विदीर्ण कर शंकु द्वारा पहले सभी से गर्भिणीको महामुनि च्यवन-प्रणीत मन्त्र सुनाना कपालखण्डको बाहर निकाले। पीछे वक्ष वा कक्षदेश- उचित है। मन्त्र इस प्रकार है- को पकड़ कर बाहर करना होगा। मस्तक अलग नहीं