पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/१९६

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१६३ मूढ़ेश्वर (सं० पु०) १ एक विख्यात साधु । (नि.)२ "नेत्यामिपुविक्षेपमतीत्यभ्यधिकं भुवः। मूढप्रभु, निहायत अहमक । तिष्ठेन्नतिचिरं तस्मिन्न व किञ्चिदुदीरयेत् ॥" मूत (सं० वि० ) मव, मू, मूर्व वा क। १ वद्ध, बंधा . • (आहिकतत्त्व) हुआ। (क्लो०)२ धान रखने के लिये घासका बना हुआ। ब्राह्मणको चाहिये, कि वे यज्ञोपवीत दाहिने कान पर आधारविशेष। रख कर मलमूत्र त्याग करे। दिनको उत्तर मुहं और मूत.(हिं० पु०) १ वह जल जो शरीरके विषैले पदार्थोंको रातको दक्षिण मुह बैठ कर मलमूत्र त्याग करना चाहिए। ले कर प्राणियों के उपस्थ मार्गसे निकलता है, पेशाव ।। दिन वा रातको छाया, अन्धकार, माणभय और पीड़ादि मत्र देखो। २ पुत्र, सन्तान। होनेसे जिस किसी दशा में हो, पेशाव कर सकते हैं। मूतना (हिं० कि०) शरीरके गंदे जलको उपस्थ मार्गसे अच्छी हालतमें मलमूत्र त्यागका जो नियम बतलाया निकालना, पेशाव करना। गया है, उसीका पालन करना कर्तव्य है।' मूतरी (हिं० पु०) एक प्रकारका जंगली कौवा, महताव । ___ पथ, भस्म, गोवज अर्थात् गाय जिस स्थान पर मूत्र (सं० क्ली० ) मूत्राने इति भूत्र घञ्, लोकाश्रयत्वात् विचरण करतो है, जोता हुआ खेत, जल, चितिभूमि, क्लोवत्वं, यद्वा मुच्यते त्यज्यते इति मुच् (सिविमुच्योष्ट । अर्थात् जो सव वृक्षमूल देवताका स्थल समझा जाता रूच । उण ४११६२) इति गन् किद्भवति, टेककारादेशः।। है, पर्वत, जीर्ण देवायतन, वल्मीर, ससत्व गर्दा अर्थात् उपस्थ-निर्गत जल, मूत, पेशाव । पर्याय-मेहन, गुह्य वह गर्त जिसमें पिपीलिकादि जीव रहते हैं, नदीतर निस्यन्द, स्रवण। मूत्रविज्ञान देखो। और पर्वतमस्तक, इन सव स्थानों में तथा वायु, अग्नि, "माहारस्य रसः सारः सारहीनो मलद्रवः। विप्र, आदित्य, जल और गाय इन सवकी ओर देख कर शिराभिस्तजलं नीतं वस्ती मूत्रत्वमाप्नुयात् ॥" मलमूत्र त्याग करना बिलकुल निषिद्ध है। चलते चलते (शाङ्गधर ४ २०) तथा खड़ा हो कर मलमूत्रका त्याग नहीं करना चाहिये। हम लोग जो सव वस्तु खाते हैं उसका सारांश रस जूता वा खड़ाऊ भादि पहन कर भी मलमूत्र त्याग और असार मलरूपमें परिणत होता है। ताला करना मना है। जलपानको स्पर्श कर मलमूत्र त्याग का सारांश रस द्वारा और असारांश शिरा द्वारा वस्ति- नहीं करना चाहिये, उस समय जलपात्रको हरा कर देशमं लाये जा कर मूत्ररूपमें परिणत होता है। मूत्र रखना उचित है। मलमूत्र त्यागके वाद उसे दाहिने त्याग करना प्राणीमात्रका धर्म है। किस समय किस हाथसे पकड़ कर शोचादि कार्य करे। मलमूत्र त्याग प्रकार मूत्रत्याग करना चाहिये, शास्त्र में इसकी व्यवस्था करते समय यदि जलपान छू जाय, तो वह मदिरा पात्र- इस प्रकार लिखी है। के और जल मदिराके समान हो जाता है। पोछे उस समाहित हो मलमूत्रका त्याग करना चाहिये अर्थात जलसे यदि आचमनादि किया जाय, तो चान्द्रायणं बत इस समय वोलना नहीं चाहिये। साफ सुथरे स्थानमें | करना उचित है । सशब्दसे मलमूत्र त्याग करनेसे मलमूत्र त्याग करना उचित है। निःख होता है, अतएव शब्द करके मूलत्याग करना "वाचं नियम्य यत्नेन ठीवनोच्छ्वासवर्जितः । उचित नहीं । * • . कुर्म्यान्मूत्रपुरीपे तु शुचौ देशे समाहितः ॥" (आहिकतत्त्व) घरसे नैत कोणमें, तीर फेंकनेसे वह जिस स्थान-- "दिवा सन्ध्यासु कर्यास्थ ब्रह्मसूत्र उदङ मुखः । में जा गिरे, उसके बाद मलमूत्र त्याग करना हो शास्त्र- दक्षिणाभिमुखो रात्रौ सन्ध्ययोश्च यथा दिवा ॥ विधि है। घरके पास मलमूत्र कभी भी त्याग नहीं कृत्वायज्ञोपवीतस्तु पृष्टतः कपठलम्बितम् । . . . करना चाहिये। . . . . . विन्मूत्र च गृही कुर्याद् यद्वा कणं समाहितः॥ Vol. XVIII 49