पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७ . मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) कुछ जाना गया है। उनसे बहुतले राजों और सेना-! अविकृतभावगें आश्चर्य शिल्पनैपुण्यके साथ मुद्रातलमें पतियोंका भी हाल मालूम हुआ है। मुद्राको तरह पदक अङ्कित हैं। इन सब प्राचीन मुद्राओंमें शस्यश्यामला आदि. ( Medals )-में भी प्रसिद्ध व्यक्तियोंकी जीवनी भूमि, कान्तारकुन्तला वसुधा, फेनायमान समुंद्र, गंगन- प्रकट हुई है। चुम्यि शैलमाला, सौधालंकृता नगरी, जनाफोनी राजधानी . मुगाशालाकी सुसजित कोठरीमें प्रवेश करनेसे पुष्पस्तवकित पादप आदि अङ्कित रहनेले इटलीके विविध प्राचीन कालके वादशाहोंके चरित्र भी दर्शकके मनमें प्रत्लतत्त्व निरूपित हुए हैं। इन सब मुद्राओंमें भास्कर विनित हो जाते हैं। वहां दिग्विजयी अलेकसन्दरकी विद्याकी अद्भुत निपुणता दिखाई देती है।

जिगीषा और अदम्य विक्रम, मिथदातको दुद्धपता, मुद्रातत्त्वके प्रणेता रेजिनल और स्टुवाका फहना

आएटोनियसको प्रशान्तता, निरो की निष्ठुरता और है, कि ७वीं सदीके पहले यूरोप आदि देशों में मुद्राका काराकेलकी पाशविकता साफ साफ दिखाई देती है। प्रचार बिलकुल नहीं था। किन्तु हम उसे स्वीकार नहीं . ऐतिहासिक रहस्यपूर्ण हजारों तालपल, भोजपत्र | करते। जिस मिस्रो सभ्यताके वोजसे प्रीसकी सभ्यता और पेपाइरसके प्रन्थोंको कुछ तो कीड़े चट गये और कुछ अंकुरित और पल्लवित हुई थी, उस प्राचीन मिस्रमें कालके उदरमें जीर्ण हो गये हैं। उन्हें फिरसे प्रकाशित ईसा जन्मसे ४००० वर्ष पहले मुद्राका उल्लेख देखनेमें करनेकी कोई सम्भावना नहीं । किन्तु राजोंके नाम आता है। पोछे वाविलन, फिनिसिया और मिदिया अथवा राजधानीके वर्णनले अकित मुद्रा कई शताब्दी | आदि देशों में मुदाका प्रचार हुआ था। " वसुन्धराको कुझिमें रहने पर भी साफ अक्षरों में पूर्व ___एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटानिका (म संस्करण) के तत्वकी घोषणा करती है । कुम्भोरके पेटसे बहुत-सी लेखकका कहना है, कि ४थी सदीमें सारे सभ्य-जगत्में । 'मुद्रा निकाली गई हैं। उसकी तीन जीर्णशक्ति भी उसे धातुमुद्राका प्रचार हुआ था। अभी तो पृथ्वीके पचा नहीं सकी। प्रायः सभी देशोंमें धातुमुद्राका व्यवहार होता है। . . मुद्रा द्वारा भूत कालका शिल्पोत्कर्ष और चित्रनैपुण्य मुद्रातत्त्व पढ़नेसे प्राचीन अनेक शिल्पोंकी वाते तथा प्रचलित धर्म-विश्वास आदि जाना जा सकता है। जानी जाती हैं। इस विषयमें प्रीकमुद्राको पृथ्वी .७वीं सदीसे ले कर अलेकसन्दरके राज्यकाल तक प्रोक के मध्य श्रेष्ठ आसन दिया गया है। रोमक सम्राट मुद्राओं में केवल देवदेवीको प्रतिमूर्ति ही अङ्कित देखी अगस्तसके समयसे ले कर कमोदसके राज्यकाल तक जातो है। उनसे नीक धर्म शास्त्रका बहुत कुछ रहस्य की जो मुद्राए पाई गई हैं उनमें प्रोक-शिल्पका प्रभाव मालूम हुआ है। प्रोक सभ्यताके उस प्राथमिक युगमें दिखाई देता है। भण्टोनियस्पायस और जटिनसको धार्मिक सम्प्रदाय राजा और रानो अथवा सौधमालिनी | स्वर्णमुद्राओंके शिल्पोत्कर्ष देखनेसे विस्मित होना पड़ता राजधानीको अपेक्षा जातोय देवताकी पवित्र प्रतिमूर्ति । है। मुद्रातत्त्व और प्राचीन मूर्तिशिल्पमें घनिष्ठ को मुद्रातलमें अङ्कित करते थे। उस समय व्यक्तित्वको सम्बन्ध है। वास्तुशिल्पका भी आश्चर्य निदर्शन मुद्रा- अपेक्षा सामाजिकता अथवा जातीयताकी प्रधानता अच्छी तत्त्वमें दिखाई देता है। मुद्रा पर जो. सुरम्य हम्यको तरह दिखाई देती थी। मुद्राङ्कित देवदेवोको प्रतिमूतिमें। प्रतिकृति देखी जाती है, वह प्राचीन कालके वैहारिक- . जैसा शिल्प-नैपुण्य दिखाई देता है उससे अनुमान किया | शिल्पका उज्ज्वल निदर्शन है। फिर रोमक साम्राज्य- जाता है, कि ईसाजन्मसे ७वीं सदी पहले प्रोसमें शिल्प | की मुद्राओं पर भी चित्रशिल्पका यथेष्ट उत्कर्ष दिखाई . नैपुण्य उन्नतिकी चरम सीमा तक पहुंच गया था। देता है। आएटोनाइनके शासनकालकी मुद्रा पर भी

इटली देशको प्राचीन मुद्रासे तरह तरहके भौगोलिक चित्रशिल्पको निपुणताका अभाव. नहीं है।

तत्त्व जाने जा सकते हैं। प्राचीन रोम-साम्राज्यके मुद्रासे समसामयिक साहित्यका इतिहास मालम नगरादि जिस स्थान जिस भावमें विद्यमान थे वह | होता है। कवि, दार्शनिक और ऐतिहासिक लोगना . Voi. xTII, 5