पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० मूत्रविज्ञान अतएव आज कल मूनपरीक्षा साधारणतः पाश्चात्य मत-1 महर्षि जतुकर्णके नीचे लिखे हुए श्लोकसे मालूम से ही की जाती है। होता है, कि मूत्र परीक्षा द्वारा पुरुष वा खोका पता पाश्चात्य मतसे शिक्षित चिकित्सकगण मूत्रकी | लगायो जाता था। परीक्षा कर किसी विशेष वातका पता नहीं लगा सकते, | ___" मस्तुल्यमिते तैले मिश्रयेत् म लजं रसम् । केवल अनुमानसे फिसी किसी रोगका निदान बतलाते करकस्य ततो विद्यात् पीताभं यदि तद्भवेत् हैं। जैसे, मूत्र में शकर अधिक रहनेसे वहु मूत्रको उत्पत्ति पुरुषस्येति तन्त्र नीलाभं चेद्धयं स्त्रियः ॥" निर्णय। किन्तु पाश्चात्य जानियोंकी मूत्रपरीक्षा इस मूलमे उत्तना ही तेल मिला कर पीछे करकमूलका वीसवी सदीके उन्नति समयमें भी इतनी अग्रसर नहीं, रस डाल दे। वह मूत्र यदि पीला दिखाई दे, तो पुरुष- हुई, कि मूत्र विश्लेपण द्वारा स्त्रीपुरुष अथवा पुत्रोत्पादिका का मूत्र और यदि नीला दिखाई दे, तो स्त्रोका मूत्र शक्तिका निर्णय कर सके। किन्तु महर्षि जातुकर्ण- | समझना चाहिये। के मूत्रविज्ञानमें मूत्रपरीक्षाको नाना प्रणालीका उल्लेख मूत्र परीक्षा द्वारा स्त्रीको पुत्रोत्पादिका शक्ति और देखने में आता है, पर अभी यह काममें नहीं लाई जाती। पन्ध्यात्वका पता लगाया जाता था। फिलहाल यूरोपीग चिकित्साप्रणालीसे जिस प्रकार "मूत्र कदुष्णे नारीणां निक्षिप्योन्ज्वलहीरकम् । मग्निमें उत्तप्त कर मूत्रको परीक्षाको जाती है, प्राचीन- | दिनत्रयावसाने तदृश्यते वेदनिर्मलम् । कालमें भी उसी प्रकार की जाती थी । जातुकर्णने लिखा सन्तानोत्पादिका शक्तिर्नष्टो ज्ञेया ततः स्त्रियां।' स्त्रीके मूत्रको कुछ गरम कर उसमे एक टुकड़ा सफेद "मूत्र : पयस्तुल्यमितं विमिश्र। हीरा डाल दे । तीन दिनके वाद यदि वह होरेका मूलस्य चूर्ण खलु पुष्करस्य। टुकड़ा मलिन दिखाई दे, तो उस स्त्रीकी सन्तानोत्पादिका प्रक्षिप्य पक्त' मृदुनाग्निना तत् शक्ति नष्ट हो चुकी है, ऐसा जानना चाहिये। मेद्य प्रदुष्ट' यदि लोहितं स्यात् ।” ___ मत्र परीक्षा द्वारा ऋषि लोग यहां तक कह देते थे मूत्र और दुग्ध समान भाग ले कर उसमें कुछ कि यह मन वालकका है या युवा अथवा वृद्धका । पुष्कर मूलका चूर्ण डाल दे और धोमी आंचमें पाक करे। "मौः समञ्चोष्टदुग्धे सेवचूर्णा विमिश्रिते । पोछे उसमें यदि लालवर्ण दिखाई दे, तो जानना चाहिये | प्रक्षिप्य यदि तत्रैव फेनरेखा न दृश्यते । कि वह मेद धातुसे दूषित हुआ है। ततो वालस्य जानीयादधिका चेद्यवीयसः। ___ स्त्रीके गर्भ हुआ है वा नहों, वह मूत्रको परोक्षा करके भल्पा वृद्धस्य तन्मत्र' भवेदिति सुनिश्चितम् ॥" पि लोग बतला देते थे। किन्तु समस्त यूरोपखण्ड में मनमें उतना हो ऊंटका दूध मिला कर सेवका आज तक भी ऐसा कोई चिकित्सक नहीं, जो केवल चूर्ण डाल दे। यदि उसमें फेनरेखा दिखाई न दे, तो मूत्रको परीक्षा करके गत्पित्तिका पता लगा सके । वह वालकका, अधिक फेनरेखा दिखाई देनेसे युवाका और जातुकर्णने कहा है- थोड़ी फेनरेखा रहनेसे वह वृद्धका मूत्र जानना चाहिये मप्र नार्याः क्षिपेत् श्वेतशाल्मली पुष्पचूर्णकम् । ___इस प्रकार मूतपरीक्षा विषयक बहुतसे श्लोक जतु. तत्र व घृतवद्रव्यं दृश्यते चेत् परेऽहनि । कर्णकी पुस्तकमें देखे जाते हैं। विस्तार हो जानेके भय- ततो गर्भ विजानीयात् स्त्रिय इत्थं विशेषतः ॥" से वे सब यहां नहीं लिखे गये। स्त्रोके मूत्र में श्वेत शाल्मली पुष्पका चूर्ण डाल कर कविवल्लभ रामदासको ज्योतिष सारार्णव पुस्तकके रख दे। दूसरे दिन यदि उसमें घीके जैसा तरल पदार्थ | सामुद्रिक अध्यायमें मूत्रपरीक्षाकी जगह इस प्रकार वहता दिखाई दे, तो समझना चाहिये, कि वह स्त्री गर्भ- लिखा है, वती हुई है।