पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२०४

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मूवविज्ञाना २०१, "न मूत्र फेनिलं यस्य विष्ठा चाप्सु निमजति । सायनिक। अर्थात् मूत्रत्यागके समय जिनकी फेनरेखा (भाग) मूत्रको परीक्षा करते समय उसके वर्ण, खच्छता, 'नहीं देखी जाती उन्हें अपुत्रक समझना चाहिये। इस अस्वच्छता, गन्ध और नीचे कोई अधाक्षेप है वा नहीं, प्रकार मूत्रपरीक्षा विषयक सैकड़ों श्लोक हैं जिनसे विज्ञ पहले इसीकी ओर लक्षा करना परमावश्यक है । पीछे चिकित्सकगण प्राच्य और पाश्चात्य मूत्रविज्ञानके उत्क- उसका आपेक्षिक गुरुत्व तथा वह अम्लाक है वा क्षार- पिकर्षका विचार कर सकते हैं। युक्त, जानना होता है । अग्लरसयुक्त मूत्रमें नील- . . वर्तमान पाश्चात्य चिकित्सकोंने मूत्रतत्त्वके संबंध वर्णका लिटमस ( bltre litmus paper) कागज में बहुतसे ग्रन्थ लिखे हैं, यहां संक्षेपमें लिखा जाता है। और क्षारयुक्त मूत्रमें ( alkaline urine ) लोहित वर्ण- - जोवोंके लिङ्गद्धार हो कर प्रवाहित शारीरिक जलीय | का लिटमस कागज डुवानेसे वह यथाक्रम लाल और नीलवर्णमें तथा क्षारयुक्त मूनमें टर्मारिक पेपर डुवानेसे मल ही मूत्र है। हम लोग खानेके समय जो जल पीते हैं | | वह पाटलवर्णमें पलट जाता है। अभी यह परीक्षा बंद उसका तथा खाद्यद्रध्यका जलभाग कुछ तो पसीनेमें परि- कर दी गई है। मूतक्षारमें यदि एमोनियाकी अधिकता णत होता और कुछ मूत्ररूपमें परिणत हो कर लिङ्गद्धार- रहे, तो पूर्वोक्त भीगे और परिवर्तित कागज सुखानेके से बाहर निकल जाता है। शारीरिक असुस्थताके कारण वाद फिरसे यथाक्रम लाल और पीले हो जाते हैं। पहले कभी कभी मूत्र में विकृति देखी जाती है । सुस्थ शरीरका! मूत्र जलके समान स्वच्छ और तरल, सामान्य रोग, | मूत्रके स्वाभाविक पदार्थों की परीक्षा करना आवश्यक पीलापन लिये लाल और मेहादि दोष दुष्ट होनेसे वह । है। अधिक परिमाणमें युरेटस रहनेसे मूत अस्वच्छ और गदला दिखाई देता है, किन्तु आंच पर चढ़ानेसे अस्वच्छ और अपेक्षाकृत गाढ़ा होता है। रोगविशेषमें वह साफ हो जाता है। क्लोराइड परीक्षाके लिये पहले रकस्राव भी हुआ करता है। मूत्रको नाइट्रिक एसिड ( Nitric acid ) द्वारा सामान्य द्रष्यरसका विकृतिप्राप्त जल-भाग पहले वृक्क (Kid- अम्लाक कर ले, पीछे उसमें नाइट्रेट आफ सिलभर- ney ) में आ कर जमा होता है। पीछे वहांसे bladder लोशन मिलावे, इससे शुभ्र क्लोराइड आफ सिलभर वा मूत्राशयमें चालित होनेसे तलपेट टन टन करने | अधःक्षिप्त देखनेमें आयेगा । युरिया परीक्षाके लिये लगता है। इसी समय स्वभावतः मूत्रत्यागकी इच्छा वाटरवाथमें मूत्रको गरम कर ले। पीछे उसमें नाइद्रिक . होती है। यह मूत्र शरीरत्यक्त दूषित जलीय मलके सिवा पसिड मिलानेसे नाइट्रेड आव युरिया. नीचे और कुछ भी नहीं है। बैठ जायगा । अणुवीक्षण यन्लके ..द्वारा उसकी मनपरीक्षा। परीक्षा करनेसे वह चौकोन वा छः कोनवाले खपड़े की 'शरीरके भीतरके अन्यान्य यन्त्रोंकी तरह मूत्रयन्त्रमें | तरह दिखाई देता है। २४ घटेके मध्य युरिया । भी जलन और पीड़ा हुआ करती है। इस समय मूत्र- कितना निकला है उसे जाननेके लिये एक स्वतन्त्र यन्त्र का रंग कई तरहका हो जाता है और उसमें शर्करादि वना है। कप्टिक सोडा और ब्रोमिन सोल्युशनको नाना प्रकारके पदार्थ दिखाई देते हैं। स्वभावतः मूत्रके मूत्रके साथ मिलानेसे उसमेंसे. क्रमशः नाइट्रोजन गैस हजार भागमें ९६७ भाग जल, १४॥ भाग युरिया, आध निकलता है । उसीके परिमाण द्वारा युरियाका अश भाग युरिक एसिड, १० म्युकस तथा ८ भाग सलफेट निकाला जा सकता है। और फस्फेट आफ सोड़ा, पोटास, मगनेसिया और मूत्रमें यदि ( Uric acid ) युरिक एमिडकी परीक्षा 'क्लोराइड आव-सोडियम रहता है। · वृक्कमें पीड़ा होनेसे करनी हो, तो मूत्रको आंच पर चढ़ा कर गाढ़ा कर ले। उन सब पदार्थीका न्यूनाधिक्य तथा अन्यान्यः अस्वाभा- पीछे उसमें Hydrochlorid एसिड डाले। कुछ समय विक वस्तु भी दिखाई देती है। . . , . वाद Uric acid का Crystals नीचे बैठ जायगा । Vol, XVIII. 51