पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२०७

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२०४ मूत्रविज्ञान ४ फोस्फेटस ( Phosphates )-क्षारयुक मूत्रको | व्याधियोंमें प्रधानतः कौन कौन औषध और मुष्टियोग कुछ देर तक रखनेसे उसके नीचे फोस्फेटसका अधःक्षेप प्रयोग किया जा सकता है नीचे उसीकी एक संक्षिप्त होता है। इससे मूत्र गदला दिखाई देता है । आव | तालिका दो गई है। . पर चढ़ानेसे उसका गदलापन और भी बढ़ जाता है, साधारण औषध । - परन्तु एक बुंद नाइट्रिक एसिड डाल देनेसे फोस्फेटस १ मूत्रकारक औषध ( Diureties )-स्निग्ध गल जाता है। इस प्रकार मूत्र में प्रधानतः दो प्रकारके | पानीयसेवन, टैप द्वारा उदरका जल निकालना, कमरमें दाने देखे जाते हैं। उनमेंसे पहला फोस्फेट आव. ' सरसोंका लेप (Sinapism ), शुष्क कापि सैन्धन लवण लाइम टेलर फोस्फेटस नामसे और दूसरा फोस्फेट और सोरा मिले हुए जलकी तलपेटमें पट्टी, तेल और जल आव एमोनियम और मागानेसियम त्रिकोणाकार ( Tri- की मालिश, नाभिकुण्डमें खटमलोंका दाव रखना, आदि ple phosphates) नामसे परिचित है। कार्य द्वारा मूत्रवृद्धि होती है। औषधके मध्य एसिटेट ५ कार्वनेट आव लाइमका भी कभी कभी अधःक्षेप। वा नाइट्रेट आव पोटाश, एसिटेट वा. नाइट्रेट आव होता है। इसके दाने विलकुल स्वतन्त्र हैं। एमोनिया, आइओडाइडस, लिथियर लवण, जिन नामक ६ सिष्टिन (Cystine ) वा कोपज पदार्थ अधिक : मद्य नाइद्रिक इथर, डिजिटेलिस, ष्ट्रोकैन्थस, इस्कुल, रहनेसे मूत्र स्वभावतः तं लकी तरह गदला और पीताम, सेनेगा, साइट्रेट आव कैफिन, स्कोपेरियम, स्पार्टिन हरिद्वर्ण दिखाई देता है। उसमें थोड़ा असुरस भी कलचिकम्, वकु, युभायरसाई, पैरिरा, टाएटाइन, बैल- पाया जाता है। कष्टिक एमोनिया और मिनरल एसिड सम, कोपेवा, फ्युवेव, वेञ्जयिक एसिड और टि फैन्थराइ- द्वारा वह गल जाता है। अणुवोक्षण द्वारा वे सब छ। डिस आदि मूत्रकारक माने जाते हैं। कोनवाले खपड़े को तरह परोक्षित हुए हैं। ____२ मूलनिवारक औषध ( .Inti-diuretics)-धेले. ७ ल्युसिन ( Lcucine )-यह देखनेमें गाढ़ा हरित् | डोना, अफोम, कोडिन और आर्गट। वा कृष्णवर्ण तैलविन्दुकी तरह है। ३मूत्रयन्नकी श्लैष्मिक झिल्लीमें काम करनेवाली ८ टाइरोसिन-सूचिकाफै जैसे दाने। औषध ये सव हैं, पेरिरा, बकु, द्रिटिकम-रेपेन्स, नाना चवीं-पाललिक ( Pancreas ) की पीड़ामें | प्रकारका वैलसम, वेञ्जयिक एसिड और वेञ्जयेट आवं मूत्रमें चवीं रहती है। वह मूल अस्वच्छ और दूधके । एमोनिया, कोपेवा, तारपीन तेल, चन्दनका तेल आदि | समान दिखाई देता है। इधर मिलानेले वह साफ हो | मूत्रयन्त्रमें कंकर या पथरी होनेसे निम्न लिखित जाता है। अणुवीक्षण द्वारा बहुत बारीक रेणु दिखाई औपधका व्यवहार किया जा सकता है। यथा-(क) युरिक एसिड कैलक्युलाइ गलानेके लिये एसिटेट वा १० म्युकस और एपिथेलियम-मूत्रमें सभी समय | साइट्रेट आव पोटाशियम, पाइपारयेजिन और लिथियर प्रायः श्लैष्मिक झिल्लोका त्वक् ( Epithelium )| लवण समूह , (ख) सफफेटिक फैलक्युली होनेसे और श्लैग्मिक पदार्थ ( Alucens) विद्यमान रहता है। वेञ्जयिक और साइलिसिलिक एसिड का हवहार करना पीपके साथ अनेक समय इसका भ्रम होता है । अणु-1 उचित है। वीक्षण द्वारा एपिथेलियम अंकुरयुक्त बृहत् कोषक ५ मूलाधारमें पीड़ा होनेसे रोमाइडस, अफीम, मफिया, जैसा दिखाई देता है । शल्क जैसा होनेसे उस हाइयोसाइमस और बेलडोना आदि औषधोंका प्रयोग स्कोएमस ( Stqldlnous ) और लम्वाकृति होनेसे उसे करे । विशेष विशेष स्थलमें-पैरिरा, बकु, युभायाइ Columnar कहते हैं। एपिथेलियम और पीपकी पृथक्ता आदिका प्रयोग किया जा सकता है। नक्सभमिका और टिकनिया वलकारक माना गया है। हमेशा मूत्रत्याग पहले हो लिखी जा चुकी है। मृलयन्त्रकी पीड़ाओंका वर्णन करनेसे पहले उन सव) होनेसे वेलेडोना विशेष फलप्रद है।