पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२१

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- मुद्रातत्व ( पाश्चात्य) तत्त्वसे ज्ञान-भाण्डारके अनेक रत्न सङ्कलन कर सकते. वा रानीको प्रतिमूर्ति नहीं है। पूर्वसे ले कर पश्चिम हैं। जव मध्ययुगके अवसान पर १५वीं सदीमें यूरोप । प्रदेशको मुद्राए वाई ओर सजी हुई हैं। जिन मुद्राओं में के साहित्याकाशने विद्या-रविको उज्ज्वल किरणोंसे । राजाको मूर्ति अङ्कित है उनस ग्रीक मुद्रामें अधिक. ऐति- आलोकित हो नवयुगको अवतारणा को थी उस समय हासिकतत्त्व दिखाई देता है। इन सब मुद्राओंमें साधा- मुद्रातत्त्वने विशेष सहायता पहुंचाई थी। उस प्राचीन रणतः सोने, चांदी और तांबेकी मुद्रा ही देखी जाती है। साहित्यग्रन्थादिके संस्करणमें मुद्राकी प्रतिकृति दी। उसके बाद रोमक-साम्राज्यकी मुद्रा है। रोममें साधारण तन्त्र मुद्राकी संख्या हो अधिक है। नागरिक और मुद्रातत्त्वशास्त्र प्राचीन कालका नहीं है । वह आधुनिक प्रादेशिक दोनों प्रकारको मुद्रामें साधारण तन्त्रके चिह्न विज्ञान है, पूर्वकालमें मुद्रासंग्रहका कोई प्रमाण नहीं मिलता, अङ्कित हैं। पर हां किसी किसी व्यक्तिने निर्दिष्ट मुद्राकी सुन्दरताके यूरोपके अन्यान्य देशोंकी प्राचीन और आधुनिक लिये दो चार विभिन्न मुद्राका संग्रह भले ही किया था। मुद्राएं भौगोलिक और ऐतिहासिक विभागानुसार पिनार्क (Petrarch)ने ही यूरोप आदि देशोंमें सबसे पहले सज्जित हैं। केवल वाइजेण्टाइन प्रदेशको मुद्राएं नाना प्रकारको मुद्रा संग्रह करनेकी चेष्टा की थी। मुद्रातत्त्व स्वतन्त्र प्रणाली में विभक्त हैं। मध्ययुगके मुद्रा-तत्त्वमें समसामयिक इतिहासकी अपेक्षा विभिन युगके पृथक् । वाइजेण्टाइनकी मुद्राका ही विशेष आदर था । मध्य पृथक् परवत्ती आदर्शको प्रकट करता है। कौन शिल्प युगकी मुद्रामें राज चिह्नित मुद्रा ही अधिक प्रयोजनीय परवत्ती है और कौन अग्रवत्ती, मुद्रासे हो इसका पता है। राजकीय पदक मुद्राको वगलमें रखे हुए हैं। प्राच्य लगता है । कोई कोई शिल्पादर्श पृथिवीसे विलुप्त हो गया मुद्रा में यहूदी, फिनिकीय और कार्थेजीय मुद्राये पीक है। मुद्रातत्त्ववित्गण उसका पुनरुद्धार कर प्राचीन | आदर्श पर विभक्त हैं। उसके बाद प्राचीन पारस्य, आदर्शको प्रचलित करनेको कोशिश करते हैं। अरव, आधुनिक पारस्य, भारतीय और चीन देशीय मुद्रा- वर्तमान कालको मुद्रा में कोई शिल्पनैपुण्य नहीं देखा | का परस्पर श्रेणी विभाग देखा जाता है। फिर अनेक जाता। इस विषयमें प्राचीन मुद्रा ही श्रेष्ठ है। क्योंकि, प्रकारके कृत्रिम विभाग भी कल्पित हुए है।। वह अनेक प्रकारको ऐतिहासिक तत्वोंसे पूर्ण है। प्रीक-शिल्पकी छाया ले कर जो सब मुद्रा कित मुद्राशालामें साधारणतः मुद्राओंका निम्नलिखित | हुई थी वा रोमक-आधिपत्यकालमें भिन्न भिन्न देशमें श्रेणीविभाग देखा जाता है । प्रीक, रोगक, मध्ययुगोय, जिन सब मुद्राओंका प्रचार हुआ वे सव इच्छानुसार आधुनिक और प्राच्यमुद्रा। इनके भी फिर कई भेद हो । भिन्न भिन्न श्रेणोके अन्तर्निविष्ट हो सकती हैं । रोमक गये हैं। प्रीसदेशकी मुद्राएं पहले देशके विभागानुसार वादशाहोंकी मुद्रा और साधारण तन्त्रकी मुद्रा अथवा सजित हो पीछे ऐतिहासिक सिलसिलेवार श्रेणीवद्ध अष्ट्रोगथ और वाइजेण्टाइन तथा मध्ययुग और आधु. हुई है। किन्तु रोमक मुद्राओंके भौगोलिक-संस्थानके निक मुद्राका क्रमविकाश देखा जाता है। राजा और मत.नुसार सजानेकी सुविधा न रहनेके कारण वे केवल शासनपरिवर्तनसे मुद्राङ्कणमें भी कैसा परिवर्तन हुआ कालानुक्रमिक भावमें सजाई गई हैं। मध्ययुग और वह वाइजेण्टाइनको ताम्रमुद्रासे साफ साफ मालूम होता अधुनातन प्रतीच्य मुद्रायें ग्रोकके ढंग पर सजित हैं। है। रोमक-साम्राज्यको अवनतिका इतिहास उज्ज्वल प्राच्य मद्रा भो ग्रीक-आदर्श पर. विभक्त हुई है। फिर अक्षरों में उन सब मुद्रा पट पर खोदित देखा जाता है। कोई कोई मुद्रातत्वविद् धातुके श्रेणीविभागके अनुसार एक हजार वर्षकी ग्रीक मुद्राय मुद्राशालामें रखी हुई मुद्रामोको सजाते हैं। हैं। केवल लण्डन नगरकी प्राचीन और आधुनिक प्रोक मुद्राविभागमें प्रथम श्रेणोकी मुद्राएं रोमक | मुद्रासे दो हजार वर्षका इतिहास मालूम हुआ है। रोमक- अधिकारके पहलेकी हैं। उन सव मुद्राओंमें किसी राजा सम्राट्, दियोफिशियनके अधिकार-कालमें लण्डनकी-