पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मुद्रातत्त्व (पाश्चात्य) प्रथम मुद्रा, पीछे कारसियस और आलेकृसके शासन-1 ग्रीसको मुद्राएं प्रतिमूर्तिको विभिन्नताके अनुसार ६ कालकी मुद्रा है। इसके बाद साकसन जातिको मुद्रा श्रेणियों में विभक्त हैं,- और अलफ्रेडकी मुद्रा रखो हुई है। इस प्रकार परवत्ति- १, जातीय देवता अथवा देशाधिष्ठात्री तथा नगरा- कालकी मुद्राए ऐतिहासिक क्रमानुसार सजित हैं। धिष्ठात्रीको प्रतिमूर्तियुक्त मुद्रा। किसी मुद्रामें केवल इसके अतिरिक्त धातुके गुणागुण, मान, आपेक्षिक- मस्तक ही अङ्कित है। फिर किसीमें नखसे सिख तक गुरुत्व आदि भी मुद्रातत्त्वशास्त्र के अन्तर्गत हैं। ईसा- चित्रित देखा जाता है। जैसे, आथेन्सको मुद्रामें पल्लास जन्मके पहले ७वी सदीसे ले कर २६८ ई० में गालिएनस- (Pallas)का तथा व्युसियर और थिवकी मुद्रामें हेरा- के मृत्युकाल तक श्रीकमुद्राका प्रचलन देखा जाता है। क्लिसकी प्रतिमूर्ति अडित है। वे सब मुद्राये तोन श्रेणियों में विभक्त हैं, पौराणिक- २, उक्त देवदेवीके वाहनखरूप जो सव पदार्थ वा ग्रीक, लौकिकनीक और रोमक-साम्राज्याधीन ग्रीकमद्रा। प्राणी पवित्र समझे जाते थे उनकी प्रतिमूर्ति । प्रथम श्रेणीको अधिकांश मुद्रा चांदी और इलेक्ट्रम जैसे, आथेन्सकी मुद्रा में पेचक (लक्ष्मीका वाहन), इजाइन- ( Electrum) को बनी हुई है। इस युगमें स्वर्ण- की मुद्रामें कच्छप, साइरिनमें आलिभ वृक्षपत्र, हेरा- मुद्राकी संख्या बहुत थोड़ी है। उनका आकार गोल ! क्लिसमें इराइथा ( अन) और वलकानमें इमार्णिया है। एक ओर शासन-संक्रान्त खोदित लिपि और दूसरो (भन ) । उपरोक्त मुद्राविवरणसे उस समयके और वृत्त अथवा चतुर्भुजकी तरह एक निर्दिष्ट चिढ़ है। प्रोक-समाजका बहुत कुछ ऐतिहासिक तत्त्व मालूम तृतीय श्रेणी की मुद्रायें सोने, इलेक्ट्रम, चांदी और पीतल , होता है। उस प्राथमिक समाजमें भक्तिप्रवण मनुष्य- को धनी हैं। ये सब वजनमें कम हैं । ऊपरी भाग हृदय मानवीय स्वाधीनताको अपेक्षा दैवसम्पद्के प्रति कछुएके और निचला भाग कड़ाहके जैसा है। तृतीय विशेष झुका हुआ था। जातीय एकताके मूलमन्त्ररूप श्रेणीकी अधिकांश मुद्रा पोतलको वनो हैं। इन सव उपास्य देवता मुद्रातलमें अङ्कित होते थे जिससे समाज- मुद्राओंमें रोमक-सम्राटों की प्रतिमूर्ति खोदी हुई हैं। दीव न्धन बहुत कुछ हृढ़ हो गया था। इन सव ग्रीक मुद्राओंका परिमाण भी परस्पर विभिन्न । ३, इस युगकी मुद्रामें नदीदेवता गेला (Gela ), है। डाकर ब्राण्डिसने वहुत खोज कर यह स्थिर किया ह्रददवता कमारना ( Camarina ) आर साइराक्युस- है, कि ग्रीक देशीय मुद्राओंका वजन और परिमाण का निर्भर देवता आरिखुसा (Arikhusa)-की प्रतिमूर्ति बाविलनीयका अनुकरणमात्र है। किसी किसी विभागमे देखी जाती है। मिस्रदेशका प्रभाव दिखाई देता है । भारी मुद्रा आसिरीय ____8, इसके वादको मुद्रामें नृसिंहावतारकी सरह अर्द्ध- नराकृति माकिदनके गर्गन (Gorgon ) और मिनाट वा मुद्राका अनुकरण है। इसका आधा वाविलन देशीय नाससकी प्रतिमूर्ति खोदी हुई है। मुद्राके समान है। वाविलनके निनेभ नगरके खण्डहर | ५, परवत्ती मुद्रा में नाना प्रकार के कल्पित जन्तुओं- से निमरुडकी जो सव मुद्रायें आविष्कृत हुई है, वही की प्रतिमूत्ति देखी जाती है। इनमें करिन्थका पेगासस परवती कालकी ग्रीकमुद्राका आदर्श है। ( Pegasus ), पान्तिकेपिपमका ग्रिफिन ( Griflin ) ____वाविलनीय भारी मुद्रायें वाणिज्यप्रधान फिनिकीय और साइफनका चाइमिरा अच्छी तरह उल्लेखनीय है। जातिसे समुद्रगथ द्वारा ग्रीस देशमें लाई गई थी। ____६, प्रसिद्ध चोरोंकी मूर्ति और कार्यविवरण। इनमें अन्यान्य मुद्राओंका स्थलपथ द्वारा लिदोय ( Lydia ) इथकाका गुलेसिस और पाटीका आजाकस और टरा- देशसे प्रोस देशमें प्रचार हुआ । ग्रीक लोगोने थोड़ा एटमका टारस प्रधान है। अदल-बदल करके ही उन सब मुद्राओंका प्रचार किया ७, वो के संश्लिष्ट अन्य पदार्थादि । इनमें इटोलियामें था । बाविलनको मुद्रा मानाकी मुद्राका साठवां भाग है। कालिदोनीय सूअरके चित्रुककी हड़ी और विविध अख किन्तु प्रीसकी मुद्रा मीनाकी मुद्राका पञ्चासत्रां भाग है। खोदित है। .